ये है भारत की पहली महिला ट्रेन डाइवर सुरेखा यादव की कहानी

सुरेखा यादव अब 51 वर्ष की हो रही हैं। पिछले 30 वर्षों से वह भारतीय रेल को अपनी सेवाएं बतौर ट्रेन ड्राइवर दे रही हैं। पुरुष प्रधान पेशे में सफलतापूर्वक इतना लंबा वक्त गुजारना सुरेखा के लिए आसान नहीं था। हालांकि, उनकी शुरुआत के बाद अब महिलाओं के लिए भी इस पेशे के दरवाजे पूरी तरह से खोल दिए गए हैं।
बनना था शिक्षक, बन गईं ट्रेन ड्राइवर
महाराष्ट्र के सतारा निवासी किसान स्व. रामचंद्र भोसले और सोनबाई के घर पैदा हुईं सुरेखा पांच बच्चों में सबसे बड़ी हैं। पढ़ाई और खेलकूद में अव्वल रहने वाली सुरेखा की शुरुआती स्कूलिंग सेंट पॉल कॉन्वेंट हाईस्कूल से हुई है। सुरेखा ने इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा भी किया है। पहले वह शिक्षिका बनना चाहती थीं, पर किस्मत उन्हें रेलवे ट्रैक पर आई। 1990 में उनकी शादी पुलिस इंस्पेक्टर शंकर यादव से हुई। उनके दोनों बेटे अजिंक्य और अजितेश इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे हैं।
पहली एप्लीकेशन पर मिल गई जॉब
अपनी उपलब्धि को सुरेखा एक साधारण कहानी ही मानती हैं। वह बताती हैं कि डिप्लोमा पूरा करने के बाद मैं सभी स्टूडेंट्स की तरह एक नौकरी की तलाश कर रही थी, तभी पता चला कि रेलवे में सहायक ड्राइवर के पदों पर भर्ती निकली है। अन्य साथियों की तरह मैंने भी एप्लाई कर दिया। खास बात यह थी यह मेरी पहली जॉब एप्लीकेशन थी। मैं अकेली लड़की थी जो लिखित परीक्षा और वायवा में शामिल हुई थी। उनका कहना है कि तब तक उन्हें यह नहीं पता था कि इंडियन रेलवेज में कोई महिला ट्रेन ड्राइवर नहीं है। मगर, किसी को तो शुरुआत करनी थी, और मैं जानती थी कि मेरे पास देश, परिवार और अपने लिए कुछ खास करने का मौका है। तब से शुरू हुए सफर में फिर कभी मुड़कर नहीं देखा।
दूसरों के लिए कायम की मिसाल
यह सुरेखा की शुरुआत है कि वर्ष 2011 तक भारतीय रेल में लगभग 50 महिला ट्रेन ड्राइवर सफलतापूर्वक अपनी ड्यूटी कर रही हैं। उन्होंने वाडीबंदर और कल्याण के बीच लोकल मालगाड़ी से अपना सफर शुरू किया था। नई होने के कारण शुरुआत में उनको इंजन, सिग्नल व उससे जुड़ी जानकारी रखने का काम दिया गया। मगर, 1998 तक मालगाड़ी की ड्राइवर बन गईं। अब तक की ड्यूटी में सबसे मुश्किल काम वर्ष 2010 में वेस्टर्न घाट रेलवे लाइन का रहा। यहां उन्हें दो इंजन वाली यात्री ट्रेन चलाने के लिए विशेष प्रशिक्षण दिया गया। हालांकि, इस दौरान महिला होने के कारण मुझे इतनी बड़ी जिम्मेदारी देने का विरोध किया गया। मगर, मैंने ट्रेनिंग पूरी की और चयनित हुई, क्योंकि मैं अपनी क्षमताएं जानती थी कि मैं इसे कर सकती हूं।
तोड़नी होगी झिझक की दीवार
वह बताती हैं कि महिला ट्रेन ड्राइवर को देख अकसर उत्साह में लोग फोटो खिंचवाने व ऑटोग्राफ भी मांगते हैं। कई बार मीडिया में भी इंटरव्यू आते हैं तो अच्छा लगता है। महिलाओं के लिए उनका कहना है कि किसी भी काम को करने के लिए पहला कदम उठाना पड़ता है। अगर आप अपनी क्षमता पहचानती हैं तो झिझक की दीवार तोड़नी होगी।
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