रात में सड़कों पर किताब बेच मैनेजमेंट की पढ़ाई कर रही है यह लड़की

आज के जमाने में भी एक लड़की का अपना गांव छोड़कर किसी शहर में अकेले रहना अपने आप में एक चुनौती है। ये चुनौती तब और बढ़ जाती है जब उसके पास कोई फायनेंशियल सपोर्ट बेहतर न हो! ऐसे में शहर में रहकर पढ़ाई करते हुए अपना जीवन चलाना उस लड़की के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी। लेकिन हम आज जिस लड़की के बारे में आपको बताने जा रहे हैं वो इन सभी परिस्थितियों से पार पाकर हंसते हुए अपनी जिंदगी जी रही है।
टाइम्स ऑफ इंडिया की एक खबर के मुताबिक 22 साल की प्रिया का घर वैसे तो रांची में है, लेकिन वो अभी कोलकाता में रहकर मैनेजमेंट की पढ़ाई कर रही हैं। कोलकाता के सॉल्ट लेक के एक मैनेजमेंट कॉलेज में दाखिला लेने लायक पैसे का इंतजाम तो उनके परिवार ने किसी तरह कर दिया, लेकिन यहां रहने-खाने और जेबखर्च का जुगाड़ कैसे हो, यह सबसे बड़ी चुनौती थी।
किताबे बेचने का किया फैसला
प्रिया का क्लॉस सुबह 7 बजे शुरू हो जाता है जिसके बाद छुट्टी होते-होते शाम हो जाती है, जिस वजह से कहीं पार्ट टाइम काम भी नहीं कर सकतीं। ऐसे में उन्होंने रात 8 बजे के बाद कोई काम करने का फैसला किया। उन्हीं के मैनेजमेंट स्कूल के एक दोस्त ने प्रिया को कमिशन के आधार पर किताबें बेचने की जगह बताई। यह संस्था विज्ञान और अन्य विषयों पर आधारित किताबें बेचती थी। प्रिया शाम के बाद इन पाठकों तक पहुंचने का एक दुस्साहसिक काम करती हैं।
प्रिया सड़कों पर घूम-घूम कर अलग-अलग जगहों से आए लोगों को अपनी किताबें बेचने के लिए पहुंचती हैं। ये जरूरी नहीं कि किताबें बिक ही जाएं! ऐसा भी होता है जब कई दिनों तक उनके बैग से एक भी किताब नहीं बिक पाती। फिर भी वो परेशान नहीं होतीं। फिर काम करते करते उन्हें उन्हें अंदाजा होने लगा कि इस तरह की किताबें खरीदने वाले देर रात मिल सकते हैं तो उन्होंने इस काम को रात 12 बजे तक करने का फैसला किया।
आज प्रिया अपने दम पर किताबें बेच कर अपनी जिंदगी अच्छे से गुजार रही हैं। आधी रात को घर जाने के सवाल पर प्रिया बताती हैं कि जो बसें डिपो की ओर जाती हैं, उसी के साथ चली जाती हूं। अगर कभी बस न मिले तो पैदल लौट आती हूं, आधा घंटा लगता है। यह पूछे जाने पर कि क्या आधी रात तक बाइपास रोड पर रहने से उन्हें डर नहीं लगता, प्रिया ने कहा, 'यहां डरने की कोई बात नहीं। आधी रात को कई लोग अपने परिवार के साथ यहां खाना खाने आते हैं। पुलिस भी होती है और ढाबे के कर्मचारी भी हैं। और इससे भी बड़ी बात यह कि क्या सिर्फ चंद मानसिक रूप से बीमार लोगों के डर से घर में बैठ जाना चाहिए? क्या यह देश विकृत लोगों का है?' प्रिया के इस जज्बे के लिए टीम इंडियावेव उन्हें सलाम करता है!
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