मजदूर के बेटे का छोटे से गांव से गूगल तक पहुंचने की अनोखी कहानी

हर कोई 'गोल्डन स्पून' के साथ पैदा नहीं होता, लेकिन कर्मों का फल उसे सातवें आसमान तक पहुंचाने का माद्दा जरूर रखता है। इसलिए अक्सर देखा गया है कि किस्मत से लड़ाई में अक्सर कर्म जीत जाता है। आज की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। जब एक मां-बाप मजदूरी कर अपने बेटे रामचंद्र को गूगल तक पहुंचा दिए। राम आज गूगल के सीएटल, अमेरिका के ऑफिस में कार्यरत हैं।
ये है रामचंद्र की कहानी
देखा जाय तो ये कहानी तेजाराम की है, उनके तीन लड़के हैं। उनमे से रामचंद्र सबसे बड़े हैं। राजस्थान के पाली जिले से करीब 40 किलोमीटर दूर एक कस्बे सोजात में रहने वाले तेजाराम सब्जियां बेचते हैं और उनकी पत्नी कंस्ट्रक्शन कंपनी में काम करती थीं। तेजाराम अपने बेटे रामचंद्र की प्रतिभा को जानते हुए भी पैसों के अभाव में अच्छे स्कूल में दाखिला नहीं करा पाए। रामचंद्र ने 10वीं की पढ़ाई सरकारी स्कूल से हिंदी मीडियम से की, जहां उन्हें 90 फीसदी अंक मिले जिसके बाद उन्हें स्कॉलरशिप मिली, हालांकि सरकार की तरफ से कोई आर्थिक मदद नहीं मिल पाई।
रामचंद्र को अंग्रेजी नहीं आती थी
रामचंद्र को अंग्रेजी नहीं आती थी, क्योंकि उन्होंने स्कूली पढ़ाई हिंदी माध्यम से की थी। रामचंद्र की अंग्रेजी सीखने की कला भी वाकई जुदा है। उसने अंग्रेजी फिल्म के सब टाइटल्स को देखते हुए अंग्रेजी सीखी।
इसके बाद तेजाराम ने बेटे की प्रतिभा को देखते हुए किसी तरह पाली से आगे की पढ़ाई के लिए भेजा। इस परिवार की गरीबी का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि रोज रामचंद्र के लिए खाना उनके गांव से टिफिन में पैक होकर पाली जाता था। यह खाना उस रूट पर चलने वाली बस में रख दिया जाता जिसे रामचंद्र पाली में ले लेते थे। 12वीं की पढ़ाई पूरी करने बाद रामचंद्र कोटा जाकर आईआईटी की करने लगे। इसका फायदा यह हुआ कि राम को आईआईटी रुड़की में एडमिशन मिल गया।
राम के गांव वालों ने इकठ्ठा किए 30 हजार रुपये
रुड़की IIT में राम का एडमिशन तो किसी तरह हो तो गया। लेकिन उनको वहां रहने और खाने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा। इस बीच एक अच्छी बात राम के साथ हुई, जब वो आईआईटी में एडमिशन के बाद पहली बार गांव आए तो उनके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। पूरे गांव वालों ने राम के लिए 30 हजार रुपये इकठ्ठा किए थे। राम ने उन रुपयों से अपने लिए कंप्यूटर खरीदा। हालांकि राम ने IIT में दूसरे ही साल 30 हजार की स्कॉलरशिप जीत ली, जिसकी पहली किस्त से उन्होंने अपने पिता के लिए एक मोपेड खरीदी।
तेजाराम आज भी करते हैं काम
राम आज गूगल के सीएटल, अमेरिका के ऑफिस में कार्यरत हैं। लेकिन उनके पिता आज भी मजदूरी करते हैं। पिता तेजाराम संखला ने घर बैठना उचित नहीं समझा और पहले की तरह ट्रकों पर सामान लोडिंग का काम करते रहने का फैसला किया। इसके एवज में तेजाराम रोजाना 100 से 400 रुपये कमाते हैं। राम कहते हैं कि उन्होंने अपने पिता को मना किया लेकिन वह खाली नहीं बैठना चाहते। उनके पिता तेजाराम रोजाना मेंहदी की बोरियां ढोने का काम करते हैं और 100 से लेकर 400 रुपये तक कमा लेते हैं।
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