बुंदेलखंड में हर कोई पूछता है, कौन है वो 23 साल वाली लड़की?
चित्रकूट यानी बुंदेलखंड का एक नामी जिला। राम के लिए भी और डकैतों के कारण भी। लेकिन अगर आप इन दिनों चित्रकूट गए और कारवी कस्बे पहुंचे तो वहां आपको भी एक चर्चा आम मिलेगी। वो 23 साल की लड़की कौन है। आइए आपको मिलवाते हैं।
हम बात कर रहे हैं चित्रकूट के मानिकपुर ब्लॉक में सरहट गांव की प्रधान प्रियंका की। नहीं, अगर आप सोच रहे हैं कि प्रियंका ग्रमीण उत्तर प्रदेश की बाकी महिला प्रधानों की तरह बस एक रबर स्टैंप हैं तो आप गलत हैं। यह कहानी इसीलिए खास है क्योंकि प्रियंका सिर्फ प्रधान की गद्दी पर बैठीं मुखौटा भर नहीं हैं। न ही उनकी शादी हुई कि फोटो पर प्रियंका को उनके पति के नाम पर वोट दिया जाए।
'अभी शादी नहीं, मेरी पहचान भी जरूरी है'
खबर लहरिया को दिए इंटरव्यू में प्रियंका बताती हैं कि शादी उनके लिए प्राथमिकता नहीं है। बकौल प्रियंका, 'शादी करने के मतलब है अपना वजूद खत्म कर देना और बंद हो जाना चहारदीवारी के भीतर। आपको हर पल बताया जाता है कि औरतों के लिए घर की दहलीज के बाहर कितनी समस्याएं हैं। और फिर आप घर के बाहर कदम भी नहीं निकला सकते।' प्रियंका को ये सुझाव दिए जाते हैं और उनका दो टूक जवाब यही होता है कि आप घर के भीतर ही अच्छी हैं।
लेकिन...प्रियंका भी भारत की एक 'औरत' हैं
प्रियंका ने महज 23 साल की उम्र में ग्राम प्रधानी का चुनाव लड़ा, दिनभर प्रचार किया और लोगों की खरी-खोटी भी सुनी। आखिरकार जीत भी गईं, लेकिन कुछ चीजें नहीं बदलीं। जिम्मेदारियां जो औरत के हिस्से ही पड़ती हैं। हालांकि, प्रियंका को इसका दुख भी नहीं है। वह बताती हैं, 'सुबह 6 बजे से मैं अपने भाइयों के लिए नाश्ता तैयार करने लगती हूं और उन्हें स्कूल भेजने के बाद कुछ काम घर के और निपटाती हूं फिर प्रधानी वाली जिम्मेदारियों को पूरा करती हूं।' प्रियंका को शिक्षा की अहमियत पता है और वह नहीं चाहतीं कि उनके छोटे भाई पढ़ाई से दूर जाएं।
सबसे बड़ा काम, लोगों की सोच बदलना
एक लड़की के लिए पुरुषवादी सोच वाले समाज में रह ज्यादा देर तक कंधे से कंधा मिलाकर चल पाना ही मुश्किल होता है, लेकिन प्रियंका को इस बात का डर नहीं है। प्रियंका की नजर में उनकी सबसे बड़ी चुनौती लोगों की सोच बदलने की है कि प्रधान सिर्फ भ्रष्टाचार ही नहीं, काम भी कर सकते हैं। यही वजह है कि प्रियंका अपने गांव के लोगों की हर शिकायत पर ऐक्शन लेती हैं और विकास कार्यों का जायजा भी वह रोज लेने जाती हैं।
हसरतें जवां हैं, बाकी जहां और भी है
प्रियंका के गांव वालों और आस-पास के कस्बों के लिए भले ही वो अजूबा हों कि एक लड़की भी प्रधान बन सकती है, लेकिन उनके लिए यह सफर की शुरुआत भर है। वह बताती हैं कि प्रधानी का काम निपटाने के बाद वह अपने लिए भी वक्त निकालती हैं ताकि पढ़ाई कर सकें। पढ़ाई जारी ऱखकर प्रियंका अपने बेहतर भविष्य की रेखाएं अभी से बना रही हैं।
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