देश की पहली महिला, जिसकी न कोई जाति है और न धर्म
भारत में पिछले कुछ सालों से जहां जाति आधारित अपराध बढ़ा है, वहीं 5 फरवरी को देश की एक अकेली महिला ने जाति और धर्म के बंधनों को तोड़ने की बड़ी लड़ाई जीत ली। तमिलनाडु के वेल्लोर जिले की स्नेहा पार्थीबारजा ने ऐसा काम कर दिखाया है, जो इससे पहले किसी ने नहीं किया था। स्नेहा को आधिकारिक रूप से 'नो कास्ट, नो रिलीजन' सर्टिफिकेट मिल गया है, यानि अब उन्हें किसी भी सरकारी दस्तावेज में अपनी जाति या धर्म का प्रमाण पत्र लगाने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
स्नेहा का जन्म एक ऐसे घर में हुआ, जहां उन्हें बचपन से ही जाति और धर्म से आजाद रखा गया। उनके माता-पिता चाहते थे कि उन्हें बर्थ और स्कूल सर्टिफिकेट हर जगह सिर्फ एक भारतीय के तौर पर जाना जाए। इसीलिए वे हमेशा स्नेहा के फॉर्म में धर्म और जाति का कॉलम खाली छोड़ते थे। एमए स्नेहा वेल्लोर जिले के तिरुपत्तूर की रहने वाली हैं। वह बतौर वकील तिरुपत्तूर में प्रैक्टिस कर रही हैं और अब सरकार के द्वारा उन्हें जाति और धर्म न रखने की भी इजाजत मिल गई है।
यह भी पढ़ें : पैरालाइज्ड मां के लिए घर में बनाई मोबाइल बायो टॉयलेट चेयर, हो गया मशहूर
लंबे समय से जाति-धर्म से अलग होने के उनके इस संघर्ष की 5 फरवरी को जीत हुई, जब उन्हें सरकार की ओर से यह प्रमाण पत्र मिला। 5 फरवरी को तिरुपत्तूर जिले के तहसीलदार टीएस सत्यमूर्ति ने स्नेहा को 'नो कास्ट- नो रिलिजन' सर्टिफिकेट सौंपा.।स्नेहा इस कदम को एक सामाजिक बदलाव के तौर पर देखती हैं। यहां तक कि वहां के अधिकारियों का भी कहना है कि उन्होंने इस तरह का सर्टिफिकेट पहली बार बनाया है।
द हिंदू से बात करते हुए स्नेहा बताती हैं कि मेरे स्कूल और बर्थ के सर्टिफिकेट में मेरे पापा-मम्मी हमेशा जाति और धर्म का कॉलम खाली छोड़ देते थे, लेकिन जब मैंने एप्लीकेशन फॉर्म भरना शुरू किए तब मैंने देखा कि वहां जाति और धर्म का कॉलम भरना मैंडेटरी होता था। इसलिए मैंने एक एफिडेविट बनवाया। वह कहती हैं कि जो लोग जाति धर्म मानते हैं उन्हें जाति प्रमाण पत्र दे दिया जाता है तो मेरे जैसे लोग जो ये नहीं मानते उन्हें प्रमाण पत्र क्यों नहीं दिया जा सकता।
यह भी पढ़ें : प्रसव पीड़ा से कराह रही महिला के लिए फरिश्ते बने सेना के ये जवान
स्नेहा ने इस सर्टिफिकेट के लिए 2010 में अप्लाई किया था लेकिन अधिकारी उनके आवेदन को टाल रहे थे, लेकिन 2017 में उन्होंने अधिकारियों के सामने अपना पक्ष रखना शुरू किया. स्नेहा ने कहा कि तिरुपत्तूर की सब-कलेक्टर बी प्रियंका पंकजम ने सबसे पहले इसे हरी झंडी दीद्ध इसके लिए उनके स्कूल के सभी दस्तावेज खंगाले गए जिनमें किसी में भी उनका जाति-धर्म नहीं लगा था।
यह भी पढ़ें : एयर होस्टेस ने अपनी सूझबूझ से टाला बड़ा हादसा
स्नेहा ने एक इंटरव्यू में बताया कि उनके परिवार में उनके अलावा उनके माता-पिता और तीन बहनें हैं। स्नेहा के माता-पिता समेत उनकी सभी बहनें भी पेशे से वकील हैं। उनके माता-पिता ने अपनी तीनों बेटियों का नाम स्नेहा, मुमताज और जेनिफर रखा जिससे जाति या धर्म की पहचान न हो सके। स्नेहा के पति के प्रतिभा राजा पेशे से तमिल प्रोफेसर हैं। ये दोनों अपनी तीनों बच्चियों के भी सभी स्कूल सर्टिफिकेट में जाति और धर्म की जगह खाली छोड़ते हैं। यहां तक कि उनकी बेटियों के नाम भी दो धर्मों के कॉम्बिनेशन से बने हुए हैं; अधिरई नसरीन, अधिला इरीन, आरिफा जैसी।
स्नेहा की ये जीत उनके परिवार के साथ उन लोगों के लिए भी बहुत मायने रखती है और उम्मीद के दरवाजे खोलती है, जिन्हें जाति और धर्म की वजह से भेदभाव का शिकार होना पड़ता है। स्नेहा के इस कदम की अभिनेता कमल हासन ने भी तारीफ की है।
इस सेक्शन की और खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
संबंधित खबरें
सोसाइटी से
अन्य खबरें
Loading next News...