जब रात के दो बजे भगवान बनकर पहुंचा कैब ड्राइवर

कभी-कभी इंसान ऐसी मुसीबत में फंस जाता है जब उसके पास कोई रास्ता नहीं होता जिससे कि वो उस मुसीबत से निकल सके। ऐसे में वो हर आदमी से सहायता मांगने लगता है भले ही वो उसका जानने वाला भी न हो। ऐसी ही कुछ घटना वैभव व्यास के साथ घटी जब वो हैदराबाद से लौट रहे थे। आगे की कहानी वैभव की जुबानी...
वैभव की कहानी
'मैं हैदराबाद से एक कम्पटीशन से वापस लौट रहा था। रात के दो बजे बेंगलुरु के कारपोरेशन सर्किल के पास मैंने एक शेयरिंग कैब बुक कराई। जब कैब पहुंचने वाली थी तभी मुझे याद आया कि मैं अपना बैग बस में ही भूल आया हूं। ये मेरे लिए बहुत ही दुखद भरा पल था क्योंकि बस एक-डेढ़ घंटे पहले निकल चुकी थी। बैग मिलने के चांस बेहद कम थे।'
मैंने किसी तरह से बस कंपनी से ड्राइवर का नंबर हासिल किया। लेकिन वह अबतक 25 किमी आगे निकल चुका था और इंतजार करने के मूड में नहीं था। इसके अलावा सबसे बड़ी समस्या ये थी कि उसे तेलुगु और मुझे हिंदी आती थी। इसी बीच मेरी कैब भी आ गयी, जो शेयरिंग थी। उसका आखिरी ड्रॉप-पॉइंट मेरा कॉलेज था।
कैब ड्राइवर ने बिना कुछ सोचे बढ़ाया मदद का हाथ
मैंने कैब ड्राइवर को अपनी अबतक की कहानी बताई और उससे ट्रिप कैंसिल करने और नई कैब बुक कराने की बात कही। लेकिन उसके जवाब ने मुझे हैरान कर दिया। उसने कहा, “ पहले बस पकड़ते हैं।” रात दो बजे उसकी इस बात से मुझे लगा कि भगवान उसे मेरी मदद करने के लिए ही भेजा था। उसे तेलुगु भी आती थी, जिससे उसने फ़ोन ड्राइवर से बात भी की। 30 किमी की यात्रा के बाद हम बस तक पहुंचे। जिसके बाद मुझे मेरा बैग वापस मिल गया। बैग पाने के बाद 50 किमी का रास्ता तय करके मैं अपने कॉलेज हॉस्टल वापस पहुंचा।
उस कैब ड्राइवर ने न सिर्फ मुझे हॉस्टल तक पहुंचाया बल्कि अतिरिक्त यात्रा के एवज में एक भी पैसा नहीं मांगे। उसने साथ ही मुझे पुरानी बातें बताई कि कब-कब उसने लोगों की मदद की। उसने अतिरिक्त पैसे लेने से साफ़ इनकार कर दिया। उस दिन उस ड्राइवर ने एक-दूसरे की मदद करने और सबकी भलाई के बारे में सोचने वाला एक बेहतरीन पाठ पढ़ाया।
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