बिहार के इस गांव का IAS की पत्नी ने किया कायापलट

अगर आप से कोई गांव के मुखिया के बारे में कहे तो सबसे पहले आपके दिमाग जो तस्वीर बनेगी एक कुर्ता धारी आदमी जिसकी लंबी चौड़ी मुंछ हो। लेकिन आज हम जिस मुखिया के बारे में बताने जा रहे हैं वो अपनी सोच से बिलकुल उलट है। आज हम रितू जयसवाल की कहानी आप सबको बताने जा रहे हैं, जोकि सिंघवाहिनी पंचायत की मुखिया है। रितू जयसवाल ने अपने काम से सिंघवाहिनी पंचायत की तस्वीर बदल दी है। लेकिन इन सबको करना इतना आसान नहीं था।
दिखने में खूबसूरत और स्वभाव से सुशील रितू ने अपने एशोआराम वाले जीवन को छोड़कर गांव के विकास कार्यों में लगा दिया। अब सिंघवाहिनी गांव में विकास दिख रहा है। वहां सड़कें बन चुकी हैं। बच्चे स्कूल जाने लेगे हैं। 40 साल की रितू जयसवाल के 2 बच्चे हैं। वो अपने बच्चों के अलावा गांव के बच्चों को पढ़ाती भी हैं। उनके पढ़ाए बच्चे बोर्ड की परीक्षा में अच्चे नंबरों से पास भी कर रहे हैं।
आसान नहीं था सफर
रितू जयसवाल की शादी 1996 में 1995 बैच के आईएएस (अलायड) अरुण कुमार से हुई थी। शादी के बाद रितू पति के साथ ही रहती थीं। रितू ने बताया कि शादी के 15 साल तक जहां पति की पोस्टिंग होती थी मैं उनके साथ रहती थी लेकिन एक बार मैंने पति से कहा कि शादी के इतने साल हो गए है। आज तक ससुराल नहीं गई हूं। एक बार चलना चाहिए। यह सोच कर रितू अपने ससुराल गई तो उसकी गाड़ी गांव से जाने से पहले ही रास्ते में फंस गई। गाड़ी निकालने की हर कोशिश बेकार होने पर हमलोग बैलगाड़ी पर सवार हुए और आगे बढ़े। कुछ दूर जाते ही बैलगाड़ी भी कीचड़ में फंस गई। इस घटना ने मुझे क्षेत्र के विकास के लिए कुछ करने को प्रेरित किया। तब मैंने सोच इस गांव का विकास करने के बारे में लेकिन सड़क के लिए कोई भी एक इंच जमीन छोड़ने के लिए तैयार नहीं था।
बच्चों को पढ़ाना शुरू किया
रितू ने बताया मैं गांव में रहने लगी और लड़कियों को पढ़ाने लगी। 2015 में नरकटिया गांव की 12 लड़कियां पहली बार मैट्रिक की परीक्षा पास की। ये तो शुरुआत थी लेकिन बाद में अब यहां 150-150 के ग्रुप बनाकर पंचायत के बच्चों को फ्री में पढ़ाया जा रहा है। पढ़ाने वाली गांव की ही लड़कियां हैं। उन्होंने बताया कि पहले मैंने 20 लड़कियों को ट्रेंड किया था। अकेले लोगों को जागरूक करना संभव न था। इसके बाद कम्प्यूटर ट्रेनिंग दिलाई। ये सब बच्चों को कम्प्यूटर सिखा रही हैं। कई लड़कियां महिलाओं को सिलाई-कढ़ाई सिखा रही हैं। इसके लिए सरकार से लेकर एनजीओ तक का सहयोग लिया जा रहा है।
32 कैंडिडेट के बीच से रितू ने जीत हासिल की
रितू ने कहा कि 2016 में सिंहवाहिनी पंचायत से मुखिया पद के लिए मैं चुनाव लड़ी। मेरे खिलाफ 32 उम्मीदवार थे। लोगों ने कहा कि तुम हार जाओगी। तुम्हारे जाति के मात्र पांच परिवार के लोग हैं। वोट जाति के आधार पर मिलता है। मैं नहीं मानी और मैं जीत गई।
विकास कार्य के लिए करना पड़ा संघर्ष
रितू ने बताया गांव की मुख्य सड़क बनाने के लिए कई बार टेंडर हुआ। कुछ असामाजिक तत्व अड़ंगा लगाने लगे, जिससे टेंडर कैंसिल हो गया। अब फिर से काम शुरू हुआ है। इस दौरान गांव के लोग सड़क के लिए अपनी एक-एक इंच जमीन छोड़ने को तैयार न थे। लोगों को समझाने में कड़ी मेहनत करनी पड़ी। मैंने बताया कि अगर सड़क नहीं बनेगी तो गांव का कैसे विकास होगा। आप के बच्चे कैसे गांव से बाहर जाएंगे। आप खेती करते हैं। उसको बाजार में बेचेंगे तो अधिक पैसा मिलेगा। गांव के बीमार लोग जब गांव से बाहर नहीं जाएंगे तो कैसे इलाज होगा। इन बातों का असर लोगों पर हुआ और वे एक-एक कर जमीन देने को तैयार हुए।
गांव के विकास के लिए हमेशा रहीं तत्पर
रितू जयसवाल बताती हैं कि वो गांव के विकास कार्य के लिए हमेशा तत्पर रहीं। वो विकास के काम की खुद निगरानी करती हैं। इसके लिए वह कभी बाइक ड्राइव करती दिखती हैं तो कभी ट्रैक्टर और JCB पर सवार हो जाती हैं। इन कार्यों के लिए रितू को उच्च शिक्षित मुखिया का अवार्ड भी मिल चुका है। इसके साथ ही उन्हें पंचायत के विकास के लिए कई अवार्ड भी मिले हैं।
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