रेतीले इलाके में सेब उगाकर इस किसान ने असंभव को किया संभव, कृषि वैज्ञानिक भी हैरान
जब सेब की खेती की बात होती है, तब कश्मीर यह हिमाचल का ही ख्याल आता है क्योंकि इन प्रदेशों में ठंड अधिक होती है और सेब की फसल भी ठंडे प्रदेशों में होती है। मगर हरियाणा के दादरी जिले में एक किसान ने रेतीली मिट्टी में ही सेब की खेती करनी की ठानी है। महज ठानी ही नहीं बल्कि सेब के पौधे भी लगा लिए जो कि खेतों में लहला रहे हैं। अब तो इन पर फल लगना भी शुरू हो गए हैं। गांव कान्हड़ा निवासी धर्मेंद्र सिंह ने अपने खेत के डेढ़ एकड़ रकबे में सेब का बाग लगाया है। इससे पहले भी वह दर्जन भर पेड़ लगाकर सेबों का उत्पादन कर कृषि जगत के वरिष्ठ वैज्ञानिकों को हैरान कर चुके हैं, क्योंकि देश में सेब की खेती केवल बर्फीले सर्द क्षेत्र के पहाड़ी इलाकों में ही संभव है।
कृषि वैज्ञानिक थपथपा रहे पीठ
हरियाणा में गांव कान्हड़ा के किसान ने अपने खेत में पहली बार दर्जन भर सेब के पेड़ लगा कर कृषि वैज्ञानिकों की टीम को बुलाकर दिखाया तो सभी ने यहां के गर्म मौसम को देखते हुए ऐसी खेती को नाकामयाब बताया था। वैज्ञानिकों ने इस इस खेती पर बेवजह पैसे, समय व खेतीबाड़ी व्यवस्था बर्बाद न करने की सलाह दी। किसान धर्मेद्र सिंह ने एक विशेष कीटनाशक का इस्तेमाल कर उन पेड़ पौधों का संरक्षण किया तो आज वह फल देने के लायक बन गए। जिसके बाद दोबारा पहुंची वैज्ञानिकों की टीमों ने सेब के पेड़ों की मजबूत स्थिति को देख कर उसकी पीठ थपथपाई और उनके हौसलों को बधाई दी।
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खेती के लिए स्वयं बनाते हैं एक दवा
धर्मेन्द्र के बताया उन्होंने वर्ष 2016 में सेब का पौधा लगाया था और आज उस पर फल आ गया है। धर्मेन्द्र बताते हैं कि वे खेती के लिए स्वयं एक दवा बनाते है, जिसका नाम उन्होंने पेड़ों का अमृत रखा है। इससे पहले वो गेहूं, चना, आदि फसल उगाते थे, लेकिन उससे उनका घर-गुजारा अच्छी प्रकार से नहीं होता था। इसी के चलते उन्होनें यह प्रयास किया। इसी दवा के बलबूते उन्होंने दक्षिण हरियाणा जैसे गर्म क्षेत्र में सेब उगाने में कामयाबी हासिल की है। इस दवा का प्रयोग किसी भी फसल, फल-फूल आदि में बीमारी के लिए किया जा सकता है।
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जो वैज्ञानिक नहीं कर पाए वो धर्मेंद्र ने कर दिखाया
धर्मेन्द्र केवल बारहवीं तक पढ़े हैं और देश में कृषि और किसानों की हालत में सकारात्मक सुधार लाने की दिशा में प्रयास कर रहे हैं। किसान धर्मेंद्र सिंह ने बताया कि दक्षिणी हरियाणा की रेतीली भूमि को कम आंकना सबसे लिए बुरी बात हैं क्योंकि यहां पर बीस वर्ष पहले हर तरह का फल, सब्जी बाहर से मंगवाया जाता था लेकिन मौजूदा समय में संतरा, माल्टा, आंवला, निबू, टमाटर इत्यादि सभी फल सब्जी आज यहीं पर अधिक मात्रा में उगाकर दूसरे शहरों में भेजी जा रही हैं। आज का किसान किसी तरह के भय में आने की बजाए नवीनतम तकनीकी के इस्तेमाल से कृषि के साथ ही बागवानी से बड़ा मुनाफा कमा सकता है। उन्होंने कहा कि दस वर्ष पहले ही पहले उन्नत किस्म के आंवले, माल्टा, नींबू की नई किस्मों का उत्पादन कर खेती की परंपरागत व्यवस्था में बदलाव किया। अब सेब के दर्जन भर से अधिक पेड़ दो वर्ष पहले बोऐ थे।
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काजू, बादाम औऱ केसर के भी लगाए हैं पेड़
धर्मेन्द्र ने काजू, बादाम, केशर व अंजीर जैसे पेड़ भी उन्होंने अपने घर पर लगा रखे हैं। धर्मेन्द्र कोशिश में हैं कि अगले साल इन पर फल आएं। जो बागू बेर केवल सर्दी के मौसम में लगता है, धर्मेन्द्र के यहां अब भी लगा हुआ है।
डेढ़ एकड़ में सेब की बागवानी
किसान धर्मेंद्र सिंह ने बताया कि कृषि के अलावा बागवानी में भी ध्यान देगा तो उसका भविष्य संवर जाएगा और कृषि को घाटे का सौदा कहने से निजात मिलेगी। उन्होंने अपने खेत में पहले बोऐ गए पेड़ों की मजबूती स्थिति से मिले ज्ञान से अब डेढ़ एकड़ भूमि में दो से तीन फिट गहरे गड्ढे खुदवा कर उनमें एक विशेष प्रकार से घर पर तैयार देशी खाद समेत काली मिट्टी डाली गई है और जनवरी के प्रथम सप्ताह में कश्मीर व हिमाचल प्रदेश से नई किस्मों के सेब के पौधे लाकर लगाए जाऐंगे।
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फसलों पर देना पड़ता है पूरा ध्यान
कृषि विकास अधिकारी डा. रणबीर सिंह मान ने बताया कि प्रत्येक कृषि की फसलों के अलावा फल, सब्जी अलग अलग मौसम के वातावरण पर निर्भर करती है। सर्दी के आगमन के साथ ही अब कई फसलों की बिजाई की गई है वहीं नरमा, बाजरा, ग्वार की फसलें व कुछ फल अप्रैल माह के बाद बोई जाती हैं। किसान धर्मेंद्र सिंह ने पहले भी उन्नत किस्म के कई फल उत्पादन किए हैं और अब सेब पर भी उनका पूरा ध्यान है। उनके खेत में दर्जनभर पेड़ पहले से ही सेब का उत्पादन दे रहे हैं। इसलिए वे अब और भूमि के रकबे पर हजारों पेड़ लगाने में जुटे हैं।
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