एलोवेरा की खेती से हरीश की चमकी किस्मत, बने करोड़पति

हरीश धनदेव एक ऐसा नाम है जो सरकारी नौकरी छोड़कर एलोवेरा की खेती कर करोड़पति बनने के लिए जाना जाता है। मूलरूप से जैसलमेर के रहने वाले हरीश की कुछ अलग करने की चाहत ने उन्हें भीड़ से अलग एक पहचान दी।
दिल्ली से लौटकर जैसलमेर जैसे छोटे से शहर में अपनी सफलता की कहानी लिखने वाले हरीश आज दूसरों के लिए किसी मिसाल से कम नहीं हैं। 2012 में जयपुर से बीटेक करने वाले हरीश ने दिल्ली के एक कॉलेज से एमबीए किया और पढ़ाई के बीच में ही उनकी जैसलमेर की नगरपालिका में जूनियर इंजीनियर पद पर नौकरी लग गई, लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। उन्होंने सरकारी नौकरी छोड़कर एलोवेरा की खेती करने का फैसला किया और करोड़पति बन गए। आइए करीब से जानते हैं हरीश के संघर्ष और सफलता के सफर को...
एक इंसान की सलाह से हरीश की बदल गई जिंदगी
दूसरों से कुछ करने के ललक से लबरेज हरीश की मुलाकात बीकानेर एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी में एक व्यक्ति होती। जो व्यक्ति उन्हें चर्चा के दौरान एलोवेरा की खेती के बारे में सलाह देता है।
सलाह पाते ही हरीश इस दिशा में काम करने लगते हैं और दिल्ली जाकर खेती-किसानी पर आयोजित एक एक्सपो में नई तकनीक और नए जमाने की खेती के बारे में जानकारी हासिल करते हैं। दिल्ली से लौटकर हरीश बीकानेर गए और एलोवेरा के 25 हजार प्लांट लेकर जैसलमेर लौटे।
ऐसे आया एलोवेरा की मार्केटिंग का आइडिया
हरीश ने जब इन प्लांटों को खेत में लगाने जाने लगे तब कुछ लोगों ने बताया कि जैसलमेर में कुछ लोग इससे पहले भी एलोवेरा की खेती कर चुके हैं, लेकिन उन सभी को सफलता नहीं मिली। फसल को खरीदने कोई नहीं आया सो उन किसानों ने अपने एलोवेरा के पौधों को खेत से निकाल दूसरी फ़सलें लगा दी।
हरिश कहते हैं इस बात से मन में थोड़ी आशंका तो घर कर गई लेकिन पता करने पर जानकारी मिली कि खेती तो लगाई गई थी, लेकिन किसान ख़रीददार से सम्पर्क नहीं कर पाए सो कोई ख़रीददार नहीं आया। अत: हरीश को ये समझते देर नहीं लगी कि यहां उनकी मार्केटिंग स्किल से काम बन सकता है।
यूं बढ़ता गया कारवां
हरीश बताते है, 'घर में इस बात को लेकर कोई दिक्कत नहीं थी कि मैंने नौकरी छोड़ दी, लेकिन मेरे सामने खुद को साबित करने की चुनौती थी।' काफी खोज-बीन के बाद 2013 के आखिरी में एलोवेरा की खेती की शुरुआत हुई। मैंने करीब 10 बीघे में उसे लगाया गया। आज की तारीख में हरीश 700 सौ बीघे में एलोवेरा उगाते हैं, जिसमें कुछ उनकी अपनी ज़मीन है और बाक़ी लीज़ पर ली गई है।
पल्प बेचकर बाजार में बनाई पकड़
हरीश बताते हैं कि खेती की शुरुआत होते ही जयपुर से कुछ एजेंसियों से बातचीत हुई और अप्रोच करने के बाद हमारे एलोवेरा के पत्तों की बिक्री का एग्रीमेंट इन कंपनियों से हो गया। फिर इसके बाद उन्होंने अपने सेंटर पर ही एलोवेरा लीव्स से निकलने वाला पहला प्रोडक्ट जो कि पल्प होता है निकालना शुरु कर दिया। शुरुआत के कुछ दिनों बाद राजस्थान के ही कुछ ख़रीददारों को हमने ये पल्प बेचना शुरु कर दिया।
अब पतंजलि को पल्प सप्लाई करते हैं हरीश
ये सब चल ही रहा था कि एक दिन मैं ऑनलाइन सर्च से ये देखने की कोशिश कर रहा था कि कौन-कौन बड़े प्लेयर हैं जो एलोवेरा का पल्प बड़े पैमाने पर खपाते हैं। मुझे बड़े ख़रीददारों की तलाश थी क्योंकि खेती का दायरा बढ़ चुका था और उत्पाद भी अधिक मात्रा में आने लगे थे।
इसी दौरान मुझे पतंजलि के बारे में पता चला, भारत में पतंजलि एलोवेरा का एक बड़ा ख़रीददार है। बस क्या था मैंने पतंजलि को मेल भेजकर अपने बारे में बताया। पतंजलि का जवाब आया और फिर मुझसे मिलने उनके प्रतिनिधी भी आए। करीब डेढ़ साल से हरीश एलोवेरा पल्प की सप्लाई बाबा रामदेव द्वारा संचालित पतंजली आयुर्वेद को करते हैं।
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