बिना टांगों के नक्सलियों से मुकाबला करने के लिए तैयार हुआ ये जवान, इस तरह मचाएंगे कोहराम

बिना टांगों के चलना तो मुश्किल हो जाता है, तो आप सोच रहे होंगे कि कैसे ये जवान नक्सलियों से मुकाबला करेगा। ऐसा बिल्कुल मत सोचिए, नक्सलियों से मुकाबला करने के लिए एक बार फिर से कोबारा कमांडो रामदास आ रहे हैं।
21 माह तक नक्सलियों के सिर पर काल बनकर मंडराने वाले सीआरपीएफ जवान फिर से वापसी करने जा रहा है। लैंड माईन ब्लास्ट में अपने दोनों ही पैरों को गंवाने के बाद भी इस जवान ने हौसला नहीं हारा है। एक नए विश्वास व दृढ़संकल्प के साथ फिर से कृत्रिम पैरों के सहारे खड़े होकर नक्सलियों से मुकाबला करने के लिए आ रहे हैं। जिस तरह वह नक्सलियों को मात देते हैं अब वही गुण वह सीआरपीएफ के जवानों को सिखाएंगे। बता दें कि जांबाज कोबरा कमांडो रामदास की गिनती सीआरपीएफ के चुनिंदा कमांडोज में होती है। उन्होंने नक्सलियों के गढ़ में कोहराम मचा रखा था, लेकिन छह माह पहले एक हादसे में वह बुरी तरह से घायल हो गए थे।
कमांडों रामदास कुछ इस तरह करते थे काम
कमांडो रामदास की बाज सी निगाह, चीते सी फुर्ती और अचूक निशाने और दुश्मनों पर झपटना ये सब देखकर हर कोई उनका कायल था। कमांडो रामदास के इसी हुनर को देखते हुए करीब ढाई साल पहले सीआरपीएफ मुख्यालय ने उसका तबादला जम्मू कश्मीर से छत्तीसगढ़ के जंगलों में कर दिया गया था। यहां की स्थिति बहुत ही खराब थी और ऐसे में उनको जिम्मेदारी और एक नया टॉस्क दिया था नक्सलियों से मुकाबला करने का का। नक्सलियों का सफाया करने की तरफ उन्होंने कदम बढ़ाए और देश की सबसे खतरनाक मानी जाने वाली कोबरा कमांडो टीम में उन्होंने 20 फरवरी 2016 को ज्वाइन किया। ज्वाइनिंग के साथ कमांडो रामदास नक्सलियों के ऊपर कहर बन कर टूटे पड़े थे।
बीते ढाई सालों में कमांडो रामदास ने अपने साथियों के साथ मिलकर कई बड़े ऑपरेशन को अंजाम दिया, जिसमें नक्सलियों को भारी जान और माल का नुकसान उठाना पड़ा। महज चंद दिनों में ही कमांडो रामदास का खौफ इस कदर नक्सलियों के दिलों दिमाग में छा चुका था कि वे हर कीमत में कमांडो रामदास को हटाना चाहते थे। उन्होंने उनको मारने के लिए पूरी तरह से लाइन बिछा ली और आखिरकार कमांडो फंस गए। उनसे चूक गए हो ही गई। छह माह पहले छत्तीसगढ़ के किस्तराम और पलोड़ी के जंगलों में हुआ।
जब फिर से इच्छा जताई कि जंगलों में जाना है
टांगों को गंवाने के बाद उनका कई महीनों तक इलाज चला आखिरकार इलाज के बाद कुछ न कुछ सुधार हुआ। रायपुर के हॉस्पिटल में इलाज के दौरन उनको पता चला कि उनके पैर चले गए। बता दें कि जिस समय घायल हुए थे, उस समय वे आईसीयू में भर्ती थे। रामदास ने एक न्यूज चैनल को बताया कि जिस वक्त मेरे जेहन में बार बार एक ही सवाल कौंध रहा था कि अब मैं टांगों के बिना नक्सलियों का खात्मा कैसे करूंगा। मेरा यही सवाल मेरे आत्मविश्वास को कमजोर किये जा रहा था। इस दौरान मेरे सीओ (कमांडिंग ऑफिसर) और मेरी बटालियन के साथियों ने मेरे मनोबल को एक बार फिर मजबूत किया।
मेरे साहबान और साथियों की बातों से मेरा आत्मविश्वास एक बार फिर पूरी तरह से मजबूत हो चुका था। इसी आत्मविश्वास का नतीजा था कि मैं महज तीन दिनों में आईसीयू से निकल कर प्राइवेट वार्ड में पहुँच गया था। दो महीनों के इंतजार के बाद मुझे अस्पताल से छुट्टी मिल गई। जिसके बाद मैं अपने बटालियन हेडक्वार्टर चला गया। उन्होंने बताया कि दुबारा नया जीवन पाने के बाद जब मैं हेडक्वार्टर पहुंचा, तो मेरा स्वागत किया गया। यहां पर रामदास करीब दो महीने तक रहे। इसके बाद मैं फोर्स हेडक्वॉर्टर चला आया, एक दिन बड़े साहब बोले तुमने फौज के लिए बहुत किया है अब हमारे साथ आॅफिस में रहना। मैं बोला, साहब मैंने अपनी टांगे 208 कोबरा बटालियन में गवाई है, अब मैं पूरी जिंदगी 208 कोबरा बटालियन के साथ जंगलों में रहूँगा। अब वे यहां पर रहकर नक्सलियों के निपटने के तरीकों को सिखाएंगे। अब वे यहां पर बटालियन में आने वाले नए कमांडों को अपने से बेहतर तैयार कर सकूंगा।
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