लाखों लोगों के दिलों को झकझोर गई जीएमबी आकाश की ये फेसबुक पोस्ट

हर मां-बाप का सपना होता है कि उसके बच्चों का भविष्य उज्ज्वल हो। वो दिन पर दिन ऊंचाइयों के नए कीर्तिमान स्थापित करे। अपने इस सपने को पूरा करने के लिए मां-बाप अपने जीवन की गाढ़ी ही नहीं बल्कि अपना सुकून और चैन तक दांव पर लगा देते हैं।
फोटोग्राफर जीएमबी आकाश ने अपने फेसबुक पेज पर एक ऐसे ही गरीब मजदूर पिता की कहानी साझा की है जो अपने बच्चों का भविष्य संवारना चाहता है। लोगों से मिलकर उनकी असल कहानियां लिखने वाले आकाश की यह पोस्ट कुछ दिनों में लाखों लोगों को प्रभावित कर चुकी है।
पोस्ट पर 3,76,000 से ज्यादा लाइक्स हैं और 1,20,000 से ज्यादा लोगों ने इस कहानी को शेयर किया है। आकाश की पोस्ट का हिन्दी अनुवाद आप भी पढ़े और माता-पिता के प्रेम को गहराई से समझें-
आत्मसम्मान के लिए मजदूरी की बात बच्चों छिपाई
'मैंने अपने बच्चों को कभी नहीं बताया कि मैं क्या काम करता था। मैं उन्हें कभी मेरी वजह से शर्मिंदा महसूस नहीं कराना चाहता था। जब मेरी छोटी बेटी ने मुझसे पूछा करती कि मैं क्या करता हूं तो मैं उसे हिचकिचाते हुए बताता, मैं एक मजदूर हूं। रोज घर जाने से पहले मैं सार्वजनिक गुसलखाने में नहाता था, ताकि उन्हें पता न चले कि मैं क्या कर रहा हूं। मैं अपनी बेटियों को स्कूल भेजना, उन्हें पढ़ाना चाहता था। मैं लोगों के सामने उन्हें आत्मसम्मान के साथ खड़ा देखना चाहता था। मैंने कभी नहीं चाहा कि कोई उनकी तरफ उन्हीं हिकारत भरी नजरों से देखें, जैसे सब मुझे देखते थे।
लोग हमेशा मेरा अपमान करते। मैंने अपनी कमाई की एक-एक पाई बेटियों की पढ़ाई में लगाई। मैंने कभी नई कमीज नहीं खरीदी, उसकी जगह बच्चों के लिए किताबें खरीदीं। सम्मान, मैं अपने लिए उन्हें यही कमाते देखना चाहता था। मैं सफाई किया करता था। बेटी के कॉलेज एडमिशन की आखिरी तारीख से एक एक दिन पहले, मैं उसकी एडमिशन फीस का जुगाड़ नहीं कर सका।
मैं उस दिन काम नहीं कर सका। मैं कूड़े के ढेर के किनारे बैठा हुआ अपने आंसुओं को छिपाने की कोशिश कर रहा था। मैं उस दिन काम नहीं कर पाया। मेरे सभी साथी मेरी ओर देखते रहे मगर कोई बात करने नहीं आया।”
'जिसके ऐसे बच्चे हों, वो गरीब कैसे हो सकता है'
”मैं नाकाम, बेबस था, मुझे नहीं समझ आ रहा था कि घर जाकर बेटी का सामना कैसे कर पाऊंगा जब वह मुझसे एडमिशन फीस के बारे में पूछेगी। मैं गरीब पैदा हुआ था। एक गरीब के साथ कुछ अच्छा नहीं हो सकता, ये मेरा मानना था।
काम के बाद सभी सफाई वाले मेरे पास आए, पास बैठे और पूछा कि क्या मैं उन्हें भाई मानता हूं। मैं कुछ कह पाता, उससे पहले ही उन्होंने एक दिन की कमाई मेरे हाथों में रख दी। जब मैंने मना किया तो वे बोले, ‘जरूरत पड़ी तो हम आज भूखे रह लेंगे मगर हमारी बिटिया को कॉलेज जाना ही होगा।’
मैं जवाब नहीं दे सका। उस दिन मैं नहीं नहाया। उस दिन मैं एक सफाईकर्मी की तरह घर गया। मेरी बेटी जल्द ही अपना कॉलेज खत्म करने वाली है। वे तीनों मुझे और काम नहीं करते देतीं। छोटी बेटी पार्ट टाइम नौकरी करती है और बाकी ट्यूशन पढ़ाती हैं। कभी-कभी वो मुझे मेरे पुराने काम वाली जगह ले जाती है। मेरे साथ-साथ पुराने साथियों को खाना खिलाती है।
वे हंसते हैं और उससे पूछते हैं कि वह उन्हें खाना क्यों खिलाती है। मेरी बेटी ने उनसे कहा, ”आप सब उस दिन मेरे लिए भूखे रहे ताकि मैं वो बन पाऊं जो मैं आज हूं। दुआ कीजिए कि मैं आपको खिला सकूं, रोज।’ आजकल मुझे नहीं लगता कि मैं गरीब हूं। जिसके ऐसे बच्चे हों, वो गरीब कैसे हो सकता है।”
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