छोटे से गांव की बंदना ने 13,000 रुपये से शुरू की थी कंपनी, अब एक करोड़ का हुआ टर्नओवर

10 साल पहले अपने घर को छोड़कर निकलने वाली परिवार की पहली लड़की बंदना आज एक सफल व्यवसायी हैं। 50 लोगों वाले परिवार में जन्मी बंदना का घर बिहार के छोटे से गांव ठाकुरगंज में था। वह बताती हैं कि मेरे परिवार में सिर्फ पुरुष ही घर से बाहर निकलकर काम करते थे। महिलाएं शादी से पहले तक सिर्फ घर में ही रहती थीं लेकिन मैं ऐसी पहली लड़की थी जिसने 2008 में बिहार को छोड़ दिया था लेकिन अपनी शादी के बाद।
बंदना आज सफल उद्यमी हैं। वह घर की सजावट और फर्नीचर के सामान बनाने वाली कंपनी की फाउंडर हैं। खास बात यह है कि उनके फर्नीचर और सजावटी सामान गत्ते के बने होते हैं जो पूरी तरह से इको फ्रेंडली माने जाते हैं। बंदना ने गत्ते से हैंडीक्राफ्ट लैंप और फर्नीचर बनाना शुरू किया। उन्होंने शादी से लेकर घर के लिए इको फ्रेंडली सजावट के सामान बनाए। बंदना कहती हैं कि हम ग्राहकों को सिर्फ प्रॉडक्ट नहीं देते बल्कि उन्हें एक आर्ट का पीस देते हैं।
वह गृह सज्जा और फर्नीचर के सामान बनाने वाली कंपनी की फाउंडर हैं। खास बात यह है कि उनके फर्नीचर और सजावटी सामान गत्ते के बने होते हैं जो पूरी तरह से इको फ्रेंडली माने जाते हैं। 30 साल की बंदना ने सिर्फ 13 हजार रुपयों से अपने बिजनेस की शुरुआत की थी। आज उनकी कंपनी का रेवेन्यू 1 करोड़ रुपये पहुंच गया है। उनकी कंपनी का नाम सिल्वन स्टूडियो (Sylvn Studio) है।
बचपन से था कला का शौक
बंदना को बचपन से ही कला का शौक था। वह बचपन में दुर्गा पंडाल में जाती थीं तो वहां दुर्गा की मूर्ति देखकर उनका उसे बनाने वाले कारीगरों से मिलने का मन करता था लेकिन उन्हें यह मौका नहीं मिला। बाद में जब वह बड़ी हुईं तो उन्होंने आर्ट के क्षेत्र में काम करने का मन बनाया, लेकिन घर से अनुमति नहीं मिली। बंदना को मुंबई के प्रतिष्ठित आर्ट स्कूल जेजे स्कूल ऑफ आर्ट के बारे में जानने को मिला लेकिन वे वहां पढ़ाई के लिए नहीं जा सकती थीं। बंदना बताती हैं कि उन्होंने सिर्फ 8वीं तक स्कूल जाकर पढ़ाई की इसके बाद वह सिर्फ एग्जाम देने स्कूल जाती थीं।
किस्मत ने नहीं दिया साथ
बंदना कम उम्र में शादी नहीं करना चाहती थीं। वह पढ़ना चाहती थीं और आर्ट के क्षेत्र में ही कुछ करना चाहती थीं लेकिन उनके घर वाले इस के लिए राजी नहीं थी। लेकिन उन्होंने किसी तरह अपने घरवालों को मनाया और इंटीरियर डिजाइनिंग का कोर्स करने के लिए दिल्ली जाने का प्लान बनाया। लेकिन इसी दौरान एक दुखद घटना घटी। उनके दिल्ली जाने से दो दिन पहले ही उनकी मां को ब्रेन हैमरेज हो गया और उन्हें दिल्ली जाने का प्लान कैंसल करना पड़ा। एक महीने बाद ही बंदना की मां का देहांत हो गया।
जब हो गई शादी
बंदना के दो छोटे भाई थे और उनकी दो बहनों की शादी हो गई थी। मां की मौत के बाद घर की जिम्मेदारी बंदना पर ही आ गई। कुछ दिनों के लिए वे अपनी बहन के ससुराल दिल्ली गईं, जहां उनकी मुलाकात मनीष से हुई। उन्होंने सोचा कि शादी के बाद ही शायद उन्हें उनकी आजादी मिले। उन्होंने मनीष से शादी की, जो उस वक्त आईआईएम लखनऊ से पढ़ाई कर रहे थे। बाद में मनीष ने मुंबई में जॉब खोजी और वहीं सेटल हो गए। बंदना के पति मनीष एक कॉर्पोरेट कंपनी में काम करते थे।
और बदल गई जिंदगी
मनीष बंदना के भविष्य के बारे में चिंतित थे और काफी संजीदगी से सोचते थे। उन्होंने इसके लिए बंदना को काफी प्रोत्साहित भी किया। इसीलिए शादी के बाद बंदना ने मुंबई के जेजे स्कूल आॅफ आर्ट्स में पढ़ाई करने के बारे में सोचा। लेकिन फिर उन्हें पता चला कि वहां एडमिशन पाना इतना आसान नहीं है। इसके बाद उन्होंने वहां से पढ़ाई कर निकल चुके छात्रों से गाइडेंस लिया और मन लगाकर एंट्रेंस की तैयारी की। बंदना की मेहनत रंग लाई और उन्हें जेजे स्कूल में दाखिला मिल गया।

नहीं मिल रहा था गत्ता
कोर्स खत्म होने के बाद बंदना को समझ नहीं आ रहा था कि अब आगे वह क्या करें। इसी बीच उनके पति ने एक नया घर ले लिया। फिर घर सजाने की पूरी जिम्मेदारी बंदना ने अपने कंधों पर ले ली। बंदना के पास ढेर सारा वक्त था जिसका इस्तेमाल वह घर सजाने में करती थीं। उन्होंने कुछ हटकर करने का सोचा और सामान को पैक करने में इस्तेमाल करने वाले गत्तों को इस्तेमाल किया। लेकिन उन्हें अच्छी क्वॉलिटी का गत्ता नहीं मिल रहा था। इसे खोजने के लिए वह धारावी जैसे भीड़भाड़ वाले इलाके के चक्कर लगाती रहीं और कबाड़ियों से मिलती रहीं।
दोस्त ने की मदद
आखिरकार बंदना को गत्ता मिल गया, लेकिन उसे काटना काफी मुश्किल काम था। उन्होंने किसी तरह इस गत्ते से कुर्सी बनाई। जिसे देखने के बाद उन्हें लगा कि यह सही आइडिया नहीं है। इसी दौरान उन्होंने अपने एक दोस्त से इसके बारे में पूछा उसने बंदना की काफी तारीफ की और इसे इंप्रूव करने के लिए कुछ आइडिया भी दिए। इसके बाद बंदना के भीतर कॉन्फिडेंस आया और उन्होंने सिल्वन नाम से एक कंपनी भी खोल दी। यह नाम सिल्वेनस से लिया गया जो कि रोमन लकड़ी होती है जो जंगल को सुरक्षित रखती है। बंदना को लगा कि यह सबसे सही नाम रहेगा क्योंकि उनका आइडिया भी पर्यावरण को बचाने से जुड़ा हुआ था।
बंदना ने इस गत्ते से हैंडीक्राफ्ट लैंप और फर्नीचर बनाना शुरू किया। उन्होंने शादी से लेकर घर के लिए इको फ्रेंडली सजावट के सामान बनाए। बंदना कहती हैं कि हम ग्राहकों को सिर्फ प्रोडक्ट नहीं देते बल्कि उन्हें एक आर्ट का पीस देते हैं। साथ ही प्रकृति को बचाने के लिए भी काम करते हैं। बंदना मुंबई की गरीब महिलाओं को रोजगार भी देती हैं। उनकी कंपनी में ऐसी तमाम महिलाएं काम करती हैं जो फाइनैंशियली काफी कमजोर होती हैं।
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