5 रुपये में एक प्लेट इडली, चाय और एक अनमोल सीख...

यह हमारी कहानी नहीं है, न ही हमारे किसी साथी ने इसे खोजा है। यह कहानी हमें फेसबुक के जरिए मिली। दिलीप मेंजिस की वॉल पर। पर, यह कहानी उसकी भी नहीं है। यह कहानी मानवता की है, गरीबी में भी ममता और जीवटता की है। और...यह कहानी है आत्म सम्मान की।
-एडिटर, इंडियावेव
साइकोड नाम की एक कंपनी के सीईओ रहे दिलीप अपनी बाइक से आंध्र प्रदेश के नरसीपटनम से लंबासिन्गी लौट रहे थे। रास्ते में नाश्ते के लिए वह एक गांव में रुके। गांव की मुख्य सड़क पर ही एक झोपड़ी के बाहर एक मेज रखी थी और बुजुर्ग दंपती मेज के पीछे खड़े चाय बना रहे थे। दिलीप ने उनसे एक प्याली चाय मांगी और कहा कि कुछ खाने को भी दे दीजिए। बुजुर्ग ने चाय के कप की तरफ इशारा किया और अपनी स्थानीय बोली में कुछ कहा, जो दिलीप समझ नहीं पाए। दिलीप ने खाने का इशारा किया और बुजुर्ग बगल में ही खड़ी अपनी पत्नी की तरफ मुड़ गए। इसके बाद, झोपड़ी के बाहर ही पड़ी एक बेंच की तरफ दिलीप को बैठने का इशारा करते हुए बुजुर्ग महिला अंदर चली गईं।

कुछ देर बाद, वह एक प्लेट में इडली और चटनी लेकर लौटीं। दिलीप ने बडे़ मजे से चाय के साथ इडली खाई और हाथ धोकर उनसे पूछा कि कितने रुपये हुए। बुजुर्ग ने कहा, पांच रुपये। दिलीप को यह तो अंदाजा था कि वह भारत के सबसे पिछड़े इलाकों में से एक में हैं, लेकिन एक प्लेट इडली और चाय के लिए पांच रुपये बेहद कम थे।
दिलीप ने इशारों में ही फिर पूछा और बुजुर्ग ने शांति से चाय की तरफ इशारा कर दिया। जब दिलीप ने इडली की प्लेट की तरफ इशारा किया, तो महिला ने फिर अपनी बोली में कुछ कहा जो दिलीप की समझ से परे था। दिलीप इतना जरूर समझ चुके थे कि उनसे सिर्फ चाय के पैसे मांगे जा रहे हैं। दिलीप ने एक बार फिर इडली की प्लेट की तरफ इशारा किया और बुजुर्ग दंपती इस पर मुस्कुरा दिए।
दिलीप समझ गए कि वह सिर्फ चाय बेचते थे और खाने के लिए इडली उन्होंने अपने नाश्ते से दे दी थी। मतलब साफ था। उनका नाश्ता कम पड़ गया होगा। दिलीप कुछ देर खामोश रहे, उनके लिए यह एकदम अगल अहसास था। दिलीप समझ नहीं पा रहे थे कि यह क्या हुआ है और अब उन्हें क्या करना चाहिए।
दिलीप ने अपनी पर्स निकाली, कुछ पैसे निकाले और बुजुर्ग के हाथ में रख दिए। इसके बाद जो हुआ, वह और भी हैरान करने वाला था।
बुजुर्ग ने पैसे लेने से इनकार कर दिया। दिलीप ने समझाने की कोशिश की और इशारों में ही जोर दिया कि वे पैसे रख लें। आखिरकार, कुछ देर की मान-मनौव्वल रंग लाई और बुजुर्ग ने पैसे ले लिए।
एडवेंचर के शौकीन दिलीप के लिए यह उन तमाम यात्राओं की तरह ही थी, लेकिन इससे मिली जिंदगी की एक अनमोल सीख किसी यात्रा ने नहीं दी थी। वह लौटे, उन्होंने यह पोस्ट लिखी और इंडियावेव के जरिए हम चाहते हैं कि आप सब भी इसे ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाएं और बताएं कि गरीबी में भी खुद्दारी बची रहती है।
बुजुर्ग ने पैसे लेने से इनकार कर दिया। दिलीप ने समझाने की कोशिश की और इशारों में ही जोर दिया कि वे पैसे रख लें। आखिरकार, कुछ देर की मान-मनौव्वल रंग लाई और बुजुर्ग ने पैसे ले लिए।
एडवेंचर के शौकीन दिलीप के लिए यह उन तमाम यात्राओं की तरह ही थी, लेकिन इससे मिली जिंदगी की एक अनमोल सीख किसी यात्रा ने नहीं दी थी। वह लौटे, उन्होंने यह पोस्ट लिखी और इंडियावेव के जरिए हम चाहते हैं कि आप सब भी इसे ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाएं और बताएं कि गरीबी में भी खुद्दारी बची रहती है।
नोट : सभी तस्वीरें दिलीप की ही वॉल से साभार ली गई हैं। इस खबर के जरिए हम दिलीप का भी शुक्रिया अदा करते हैं।
संबंधित खबरें
सोसाइटी से
अन्य खबरें
Loading next News...
