इस डॉक्टर को लोग कह रहे हैं 'धरती का भगवान', जानिए क्यों मिल रहा इतना सम्मान

शहरों में रहकर डॉक्टरी की पढ़ाई करने के बाद गांव में डॉक्टरी करने कोई भी युवा नहीं जाना जाता है, लेकिन आदिवासी क्षेत्र में मरीजों की सेवा करने वाले डॉ यागनादत्ता ऐसे लोगों के लिए एक आइना है जिन्होंने फर्ज और इंसानियत की मिसाल दी है। डॉ. यागनदत्ता आदिवासी इलाके के उस दुर्गम रास्ते में पैदल चलकर नदी व पहाड़ पार करके एक बच्चा और मां की जान बचाने पहुंचे। इतनी मेहनत के करने के बाद उन्हें सफलता मिली और उन्होंने जच्चा व बच्चा दोनों को बचा लिया।
नदी व पहाड़ पार करके महिला की जान बचाने वाले डॉ. यागनदत्ता उड़ीसा में रोल मॉडल बन गए और उन्होंने दाना मांझी की घटना के बाद आलोचना झेलने वाले स्वास्थ्य विभाग की एक बेहतर छवि पूरे देश के सामने पेश की है। डॉ. यागनादत्ता की तारीफ अर्न्तराष्ट्रीय संगठनों द्वारा भी की गई है। उनकी प्रशंसा बियांका जैगर ह्यूमन राइट्स फाउंडेशन के संस्थापक और सीईओ बियांका जेगर ने भी की है।
गांव तक जाने के लिए नहीं था रास्ता
ओडिशा के कंधमाल जिले के आदिवासी क्षेत्र में स्थित बलाम गांव तक जाने का कोई भी रास्ता नहीं है। जिसकी वजह से गांव तक कोई भी साधन नहीं आ जा सकते हैं। गांव तक पहुंचने के लिए जंगलों के साथ ही साथ पहाड़ी और नदी को भी पार करना पड़ता है। इस गांव में रहने वाली 23 वर्षीय सीतादाडू रयता को 25 मार्च को लेबर पेन हुआ। उनके पति व परिजन सीतादाडू को गांव से 7 किलोमीटर दूर तमूडीबंधा स्थित समुदाय स्वास्थ्य केंद्र पैदल लेकर चले, लेकिन बहुत दर्द होने की वजह से रयता कुछ दूरी चलने के बाद बैठ गईं। वह एक कदम भी आगे चलने में पूरी तरह से अक्षम थीं। ऐसे में उनके पति, परिजन और रिश्तेदार मदद मांगने के लिए ब्लॉक डेवलपमेंट ऑफिरसर (बीडीओ) के पहुंचे। बीडीओ ने तत्काल में स्वास्थ्य केंद्र से संपर्क और उन्होंने वहां पर पूरी घटना बताई।
फोन पर बात होने के बाद डॉ यागनादत्ता एम्बुलेंस से तत्काल में इलाज देने के लिए चल दिए, लेकिन 4 किलोमीटर तक ही वे जा पाए। इसके बाद उन्हें महिला तक पहुंचने के लिए करीब 1.5 किलोमीटर पैदल चलना पड़ा और पहाड़ी और नदी को पार करना पड़ा। महिला के पास पहुंचकर उन्होंने तत्काल में वही जंगल में डिलीवरी कराई। महिला ने बच्ची को जन्म दिया जो कि 2.1 किलोग्राम था। उन्होंने हिन्दुस्तान टाइम्स को बताया कि जच्चा और बच्चा दोनों ही ठीक थे, लेकिन जननी की एक नली निकल आई थी। ऐसी स्थित अक्सर जननी के खून बहता रहता है, लेकिन वे सौभाग्यशाली थी कि उसके साथ ऐसी कोई स्थिति नहीं थी। उन्होंने बताया कि इसके बाद बेहतर इलाज के लिए महिला को एम्बुलेंस से इलाज के लिए स्वास्थ्य केंद्र पर लगाया गया। जहां से उन्हें शुक्रवार को छुट्टी दे दी गई है।
भुवनेश्वर से पढ़े है डॉक्टर यागनादत्ता

बेहतरीन तरीके से कर्तव्य का निर्वहन करने वाले डॉक्टर यागनादत्ता ने 2012 में, भुवनेश्वर इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस से एमबीबीएस किया है। उन्होंने कहा कि जब सुना कि रयता पैदल अपने गांव से आ रही थी वो पूरी तरह से चिंतित हो गए थे। उन्होंने कहा कि मैं कुछ साल पहले अपने सहयोगी के साथ टीकाकरण अभियान के दौरान गया था। मैं नदी पार करने को लेकर काफी चिंतित था। उनके इस काम पर अब हर जगह पर प्रशंसा हो रही है। तमूडीबंधा में एक सामाजिक कार्यकर्ता नेत्रा मानसे ने कहा, "वह हमारे जिले के डॉक्टरों के लिए एक प्रेरणा हैं।"
विभाग ने बनाया पोस्टर ब्वॉय, बियांका जेगर ने की तारीफ

दाना मांझी की घटना के बाद जिस तरीके से ओडिशा की स्वास्थ्य प्रणाली पर सब उठ रहे थे, उसी तरह से डॉ. यागनादत्ता द्वारा बखूबी अपना फर्ज निभाने की इस घटना के बाद पूरे देश मे तारीफ हो रही है। ऐसी स्थित में ओडिशा के स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में युवा डॉक्टर को पोस्टर ब्वॉय बना दिया है। ओडिशा के हेल्फ स्टिम के लिए बड़ी मिसाल है, क्योंकि इसी सूबे में आदिवासी किसान दाना मांझी को उनकी पत्नी को कंधे पर अपनी पत्नी की लाश के साथ देखा था, जिसके बाद ओडिशा स्वास्थ्य प्रणाली की काफी आलोचना हुई थी। राज्य के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग ने अपने समर्पण के लिए डॉ. रथ की सराहना की। विभाग ने एक फेसबुक पोस्ट में कहा, "विभाग में इस तरह के रोल मॉडल पर हमें गर्व है"। बियांका जैगर ह्यूमन राइट्स फाउंडेशन के संस्थापक और सीईओ बियांका जेगर ने स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग के इस पोस्ट को ट्वीट किया और डॉ रथ की उनके उत्कृष्ट काम की प्रशंसा की। "प्रिय डॉ. यागनादत्ता, आप अपने पेशे को गर्व करते हैं, हमें दुनिया में आपके जैसे और अधिक रोल मॉडल की जरूरत है।"
दाना मांझी की ये थी घटना
ओडिशा के कालाहांडी ज़िले के भवानीपटना के एक अस्पपाल से आदिवासी दाना मांझी को अगस्त 2016 में अपनी पत्नी के शव को कंधे पर रखकर 12 किलोमीटर पैदल चलना पड़ा। जिस अस्पताल में महिला की मौत हुई थी, उस अस्पताल ने कथित तौर पर शव ले जाने के लिए एंबुलेंस मुहैया कराने से इनकार कर दिया था। दाना मांझी की पत्नी अमांग भवानीपटना के एक अस्पताल में टीबी के इलाज के लिए भर्ती थीं, जहां उनकी मौत हो गई। दाना के मुताबिक उनका गांव वहां से करीब 60 किलोमीटर की दूरी पर है। वो गरीब है और उसके पास वाहन का किराया देने के लिए पैसे नहीं थे। अस्पताल ने कथित तौर पर उसकी मदद नहीं की थी। इस मामले के बाद स्वास्थ्य विभाग की बहुत आलोचना हुई थी।
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