4 साल की उम्र में मां-बाप ने छोड़ दिया था, अब करेगी भारत का प्रतिनिधित्व
19 फरवरी 2000 को अमृतसर में एक सर्द सुबह पद्मिनी श्रीवास्तव को आल इंडिया पिंगलवाड़ा चैरिटेबल सोसायटी के बाहर 4 साल की एक बच्ची मिली। उस वक्त न तो उस बच्ची के साथ कोई था और न ही वह कुछ बता पा रही थी। सोसाइटी की एक स्वयंसेवक, पद्मिनी ने इस बच्ची की जिम्मेदारी ली, क्योंकि यह सोसाइटी बहुत-से अनाथ और बेसहारा बच्चों को आसरा देती है। अब 19 साल बाद वही बच्ची स्पेशल ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व करेगी।
19 साल की दिव्यांग शालू पावरलिफ्टिंग की चैंपियन है। वह अबू धाबी में 14 मार्च से 21 मार्च तक होने वाले स्पेशल ओलंपिक वर्ल्ड गेम्स में हिस्सा लेने जा रही है। इन खेलों का अयोजन हर दो साल में दिव्यांग बच्चों के लिए किया जाता है।
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टाइम्स ऑफ इंडिया से बात करते हुए पद्मिनी कहती हैं, उस वक्त सुबह के 8 बज रहे थे। मैं उस वक्त दरवाजे पर थी जब मैंने ठंड से ठिठुरती और रोती लड़की को देखा। मैं उसे ऑफिस ले गई। मैंने उसका नाम पूछा, लेकिन उसने कोई जवाब नहीं दिया। मैं उसी वक्त समझ गई कि उसके पेरेंट्स ने उसे छोड़ दिया है। अनाथ आश्रम की प्रिंसिपल पद्मिनी कहती हैं कि हम 19 फरवरी को ही शालू का जन्मदिन मनाते हैं, इसी दिन वह मुझे मिली थी। उस दिन से लेकर आज तक इस बच्ची की पूरी जिम्मेदारी पद्मिनी और इस सोसाइटी ने उठाई है। पद्मिनी बताती हैं, “हमने बहुत कोशिश की, कि उसके माता-पिता के बारे में कुछ पता चल सके, पर यह नहीं हो पाया। हमने उसे ‘शालू’ नाम दिया।”
पद्मिनी आगे बताती हैं कि शालू के साथ उन्हें काफी मेहनत करनी पड़ी। शुरू में उसे संभालना थोड़ा मुश्किल था, पर फिर वह सबके साथ घुलने-मिलने लगी। आज शालू की उम्र 22 साल है और अभी भी वह ढंग से नहीं बोल पाती है। पर आज वह बेहतरीन पॉवरलिफ्टर है। अगर आप उससे कुछ पूछेंगे तो वह सिर्फ चार शब्द बोलेगी - शालू, इंडिया, गोल्ड और मां। पिछले कई सालों में अपने खेल और एथलेटिक्स में अच्छे प्रदर्शन के चलते शालू ने कई गोल्ड और सिल्वर मेडल जीते हैं।
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शालू भले ही एक दिव्यांग बच्ची है, पर इस सोसाइटी और पद्मिनी ने उसकी क्षमताओं को खेल और एथलेटिक्स में दिशा दी। बचपन से ही शालू स्पोर्ट्स में आगे रही। हालांकि, यहां भी कई तरह की चुनौतियां थीं, पर हर एक परेशानी से लड़कर शालू ने अपनी पहचान बनाई है।
पिंगलवाड़ा के इस अनाथ-आश्रम में शालू के आलावा और भी 223 बच्चे रहते हैं। यह सोसाइटी हर एक बच्चे के जीवन को संवार कर उसे एक नयी पहचान दे रही है। अब शालू भारत का प्रतिनिधित्व आगामी स्पेशल विश्व ओलिंपिक में करेगी। यह विशेष ओलिंपिक प्रोग्राम दुनियाभर के दिव्यांग खिलाड़ियों को एक साथ लाकर उनकी क्षमता और प्रतिभा को वैश्विक स्तर पर पहचान देने की एक कोशिश है।
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शालू ने साल 2012 में पॉवरलिफ्टिंग शुरू की, पर कुछ ही महीने में उसकी दिलचस्पी चली गई। हालांकि, उसके कोच ने उसे प्रेरित करने के काफ़ी प्रयास किये, लेकिन शालू फिर फुटबॉल खेलने लगी। कई महीने तक वह फुटबॉल पर अपना सारा समय देती थी। फिर एक दिन मैच में उसे फाउल मिला और इस पर उसे बहुत गुस्सा आया। शालू ने उसी दिन फुटबॉल छोड़ दी और अपना गुस्सा जाहिर करने के लिए पॉवरलिफ्टिंग करने लगी। शालू के कोच ने उसके गुस्से को सही दिशा दी और शालू को इस खेल में और भी अच्छा करने के लिए प्रेरित किया। तब से पॉवरलिफ्टिंग ही शालू के लिए सब कुछ बन गया।
पद्मिनी का कहना है कि शालू ओलिंपिक के लिए कड़ी-मेहनत कर रही है और उन्हें उम्मीद है कि वह देश के गोल्ड जरूर जीतेगी। हालांकि, शालू पर हार या जीत का कोई भी दबाव नहीं है और अभी वह अपनी पहली हवाई यात्रा के लिए उत्साहित है।
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