भारतीय सेना में शामिल होने के लिए घर से चोरी कर भागे थे दिलबहादुर

17 साल की उम्र में मैंने अपने के बक्से से 400 रुपये चुराए और भारतीय सेना में भर्ती होने के लिए हिन्दुस्तान भाग आया। हालांकि यह आसान नहीं था, क्योंकि हमारे पास एक ही कमरा था और सब उसी में सो रहे थे। बक्से की चाबी पिताजी के पास ही रहती थी, वह उसे धागे के सहारे गले में लटकाए रखते थे, कई बार तकिए के नीचे भी रखते थे। इसलिए मुझे धैर्यपूर्वक इंतजार करना पड़ा, मैंने घर और खेतों के काम में उनकी मदद की। मुझे सेना में जाने के लिए गांव छोड़ना ही था। चार दिन के इंतजार के बाद मुझे अलसुबह मौका मिल गया और मैंने बक्सा खोलकर 400 रुपये निकाल लिए।
मेरा हमउम्र एक और लड़का भी मेरे साथ अगली सुबह गांव छोड़कर दो दिन में पोखरा आ गए। यहां हमें एक आदमी मिला जो हमें सेना में भर्ती कराने के लिए गोरखपुर ले गया। इसके बाद हमें भर्ती के लिए कई परीक्षणों से गुजरना पड़ा। नौवें दिन सबको जमा किया गया और एक-एक कर सबसे नाम बुलाए गए। जिनके नाम बुलाए गए वे धीरे-धीरे एक कोने में खड़ा कर दिए गए। नाम नहीं पुकारे जाने पर मेरी आंखें भर आईं, ऐसा लगा जैसे मैंने अपने सपने पूरे होने का मौका खो दिया। इससे पहले कि मैं खुद से अपना नियंत्रण खो देता, हमारे कप्तान ने उन लोगों बधाई दी जिनका नाम नहीं लिया गया था। नाम पुकारे जाने वाले लोगों को घर भेज दिया गया। यह सुनकर मेरी छाती से बहुत बड़ा बोझ उतर गया था, मुझे अपने पिता और उनके जैसे लोगों के नक्शे कदम पर चलना था। कुछ दिन बाद वह हमें ट्रेनिंग के लिए देहरादून ले गए। 16 महीने की कड़ी ट्रेनिंग के बाद हम जान गए थे कि कैसे हमें दुश्मन को मार गिराना और खुद की रक्षा करनी है। इस दौरान मैंने पत्र लिखना भी सीखा, ताकि अपनी गलती के लिए उनसे माफी मांग सकूं। इसके बाद मैंने उनको एक पत्र लिखा।
चार महीने बाद मुझे पिताजी का एक पत्र मिला। उसमें लिखा था, प्रिय पुत्र, सेना में शामिल होने के लिए शुभकामनाएं। पैसे के बारे में चिंता मत करो। हमें खुशी है कि तुम भारतीय सेना में शामिल हो गए हो। अपने सीनियर्स के आदेशों का पालन करना और जीवन के लिए अनुशासन सीखना। उसके बाद मैंने अपने पिता की सलाह का पालन किया। 24 साल भारतीय सेना की सेवा करने के बाद 42 साल की उम्र में मैंने रिटायरमेंट ले लिया और नेपाल में अपने गांव लौट आया। पेंशन के साथ मैं यहां पानी की दो मीलें चला रहा हूं। मैं आपको बता सकता हूं कि जीवन क्या है। जीवन सूर्योदय और सूर्यास्त, गर्मी और ठंड, हँसी और आँसू, रक्त और पसीना, क्रोध और पछतावा है। मुझे इस बात पर गर्व है कि मैं अपने पिता के नक्शेकदम पर चला और उसके जैसे बहुत से पुरुषों की तरह हूं।
- दिल बहादुर गुरुंग, भुजंग, लामजुंग
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