एसिड अटैक सर्वाइवर के जज्बे पर बनेगी फिल्म

एसिड अटैक सर्वाइवर लक्ष्मी की हिम्मत को हर कोई सलाम करता है। तेजाब से झुलसी लक्ष्मी ने न केवल हिम्मत करके खुद को साबित किया बल्कि अन्य सर्वाइवर्स के लिए भी मिसाल बनीं।
लक्ष्मी ने अपने साहस से बाकी लड़कियों को भी हिम्मत दी कि भले उनका चेहरा जला हो सपने अभी भी वैसे ही हैं। लक्ष्मी की इसी हिम्मत और हौसले को दुनिया जानें इसके लिए उनपर मेघना फिल्म बनाने जा रही हैं। इस फिल्म में लक्ष्मी का किरदार निभाने दीपिका पादुकोण निभाएंगी।
दीपिका पादुकोण ने पुणे मिरर से एक इंटरव्यू के दौरान कहा, “जब मैंने लक्ष्मी की कहानी सुनी तो मुझे काफी दुख हुआ। उनकी कहानी केवल हिंसा की कहानी नहीं बल्कि संघर्ष और साहस की भी कहानी है। लक्ष्मी की जिंदगी का मुझपर गहरा प्रभाव पड़ा है। इसी वजह से ही मैंने फिल्म करने का फैसला किया।”
दिल्ली की रहने वाली लक्ष्मी अग्रवाल मध्यम परिवार से थीं। वह दिल्ली के खान मार्केट में एक किताब की दुकान पर बतौर असिस्टेंट काम करती थीं। जिंदगी अच्छी थी, परिवार, दोस्त सभी पास थे लेकिन 22 अप्रैल 2005 का दिन था जिसने लक्ष्मी की जिंदगी बदल कर रख दी। लक्ष्मी ने अपने से दोगुने उम्र के एक व्यक्ति का प्रेम प्रस्ताव ठुकराया था और इसका बदला लेने के लिए उसने लक्ष्मी के ऊपर तेजाब फेंक दिया। पूरा चेहरा बुरी तरह से झुलस चुका था, उन्हें तुरंत दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में भर्ती कराया गया।

अस्पताल से शीशा हटा दिया गया था कि मैं खुद को देख न सकूं। हर सुबह नर्स मेरा चेहरा साफ करने के लिए एक कटोरे में पानी लेकर आती थी। मैं उसमें अपना चेहरा देखने की कोशिश करती थी। पूरे चेहरे पर पट्टियां बंधी थीं। ”
लक्ष्मी ने तीन महीने अस्पताल में गुजारे। दर्द और तकलीफों को बड़ी हिम्मत से झेला। वो बताती हैं, 'अस्पताल से शीशा हटा दिया गया था कि मैं खुद को देख न सकूं। हर सुबह नर्स मेरा चेहरा साफ करने के लिए एक कटोरे में पानी लेकर आती थी। मैं उसमें अपना चेहरा देखने की कोशिश करती थी। पूरे चेहरे पर पट्टियां बंधी थीं। कुछ समय के लिए लगा कि सबकुछ खत्म हो गया है, मैं इस चेहरे के साथ कैसे आगे बढूंगीं।
इसके बाद लक्ष्मी की कई सर्जरी हुई लेकिन उनका ज्यादा असर नहीं हुआ। दिल और दिमाग के जख्म अभी भी वैसे थे। ये जिंदगी का सबसे कठिन वक्त था जब अमूमन लड़कियां हिम्मत हारकर बैठ जाती हैं लेकिन लक्ष्मी ने ऐसा नहीं किया। वो दोबारा पूरी हिम्मत से खड़ी हुईं और अपनी खुद को अपनी जैसे ही सर्वाइवर्स की मदद के लिए तैयार किया। लक्ष्मी ने छांव फाउंडेशन की स्थापना की और इसी के तहत आगरा में एक कैफे खोला जहां पर कई एसिड सर्वाइवर्स को रोजगार मिला।

निर्देशक मेघना गुलजार के साथ लक्ष्मी।
लक्ष्मी के प्रयासों से ही एसिड बिक्री पर लगी रोक
2006 में लक्ष्मी अग्रवाल द्वारा एक याचिका के बाद सुप्रीम कोर्ट ने जुलाई 2013 में आदेश पारित किया, जिसके तहत एसिड की बिक्री का नियमन हुआ, पीड़ितों की देखभाल और पुनर्वास के बाद मुआवजे, सरकार से सीमित मुआवजा, शैक्षिक संस्थानों में आरक्षण और नौकरियों का प्रावधान दिया गया। लक्ष्मी को 2014 में अंतर्राष्ट्रीय महिला साहस पुरस्कार से भी नवाजा गया। लक्ष्मी के प्रयासों से ही देश में एसिड हिंसा पर बात होने लगी। पीड़ित महिलाएं घर में खुद को छुपाने के बजाय सामान्य जिंदगी जीने के लिए बाहर निकलीं। लक्ष्मी की इस हौसले और जज्बे को सलाम।
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