समाज से लड़कर इस पिता ने बिटिया को पढ़ाकर बनाया एसडीएम

आमिर खान की फिल्म दंगल का एक डॉयलॉग बहुत मशहूर हुआ था ‘म्हारी छोरियां छोरों से कम हैं के’। यह महिलाओं को सशक्त बनाने और लैंगिक समानता में एक कदम आगे बढ़ाने की सोच को प्रोत्साहन करता है। दंगल फिल्म साल 2016 में आई थी तब देशभर में यह डॉयलॉग बहुत ही मशहूर हुआ था। इसी फिल्म जैसी कुछ कहानी आज हम आपको एक बेटी और पिता के संघर्ष की बताने जा रहे हैं। यह कहानी कुश्ती की नहीं बल्कि बेटी को पढ़ाने के लिए गांव और समाज से किए गए संघर्ष की है। जिसके पिता ने अपनी बेटी के सपनों को साकार करने के लिए न सिर्फ गांव से शहर पढ़ाई के लिए भेजा बल्कि शहर में सालों तक उसे सपनों को पूरा करने का मौका दिया।
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अपनी बेटी को पढ़ने के लिए जब गांव से शहर साल 2014 में उस पिता ने भेजा, तो उसे समाज से ताने सुनने को मिले थे, कि लगता है जैसे उनकी बेटी कलेक्टर ही बन जाएंगी। इन तानों का सिलसिला तब और बढ़ गया जब बेटी को सालों तक सफलता ही नहीं मिली। लेकिन, यूपीपीसीएस 2019 के आए परिणाम में उस बेटी ने डिप्टी कलेक्टर बनकर अपने पिता का सपना पूरा कर दिखाया है। अब उसी समाज के लोग उस बेटी की तारीफ कर रहे हैं। तारीफ आखिर करें भी क्यों न क्योंकि वह बेटी अपने पूरे क्षेत्र में इतनी बड़ी कामयाबी पाने वाली पहली बेटी बन गई हैं।
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अब वह बेटी अपने गांव के आसपास की हजारों बेटियों की आइडियल बन गई है। लेकिन अफसोस की बेटी के सपनों को पूरा करने के लिए समाज के ताने सुनने वाले पिता अब इस दुनिया में नहीं रहे। वह अपनी बेटी को डिप्टी कलेक्टर बनता हुआ नहीं देख पाएं। वह बेटी अपने पिता को याद करते हुए अपने इस संघर्ष को पिता के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि मानती है। वह कहती है कि मेरे पिता और भाई मेरे लिए भगवान है, अगर मुझ पर भरोसा करते हुए मुझे पढ़ने के लिए शहर न भेजा होता, तो शायद मैं आज अपने को साकार न कर पाती। रीतू की पढ़ाई में उनके भाईयों ने भी साथ दिया, जब पिता की मृत्यु हो गई, तो उसके बाद उनके भाईयों ने अपनी बहन का सपना पूरा करने के लिए तैयारी का मौका दिया।
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जी हां, यह बेटी और कोई नहीं बल्कि यूपीपीसीएस 2019 के आए परिणाम में 34वीं रैंक हासिल करके डिप्टी कलेक्टर का पद हासिल करने वाली रीतू रानी है। बेटियों को लेकर बदनाम रहने वाले पश्चिमी यूपी के मुजफ्फरनगर जिले की रहने वाली रीतू रानी के सपनों को पूरा करने में उनके किसान पिता वेद पाल सिंह ने साथ दिया। गांव में रहकर किसानी करने वाले रितू के पिता ने अपनी बेटी का सपना पूरा करने के लिए गांव से बाहर पढ़ने के लिए भेजा। रीतू रानी गांव से बाहर जाकर पढ़ने वाली पहली बेटी बनीं और अपने क्षेत्र में कामयाब होने वाली भी पहली बेटी।
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बेटी के प्रति रीतू के पिता का कितना समर्पण था इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उन्होंने रीतू रानी ने पहले एमबीए कराया फिर जॉब्स को छोड़ा कर बेटी को सिविल सर्विसेज की तैयारी करने के लिए प्रेरित किया। रीतू ने अपने पिता से जो भी कहा उसे हर समय पूरा करने की कोशिश की। उन्होंने बेटी के सपने को पूरा करने के खातिर कभी भी समाज की कोई प्रवाह नहीं की। उन्हें समाज क्या कहेगा, उनके बिरादरी के लोग क्या कहेंगे और उनके गांव की पंचायत क्या कहेंगी। लेकिन अफसोस यही है कि जब बेटियां ने उनके सपने को साकार किया तब वे ही नहीं है। उनके लिए अब वे दिन आए थे जब उनकी पहचान अपने बेटी के नाम के साथ होती।
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रीतू को पहले खुद के लिए करना पड़ा तैयार
गांवों में पली-बढ़ी रीतू रानी को घर से बाहर पढ़ाई करने के लिए कदम निकालने के लिए पहले कई बार सोचना पड़ा था। वह मेहनत करके एक दिन जरूर सफल होगी, इसके लिए पहले उन्हें खुद को तैयार करना पड़ा। इसके बाद जब घर से कदम निकाले तो रीतू रानी ने अपने गांव ही नहीं बल्कि पूरी चौहदी (आसपास के इलाके) में अपना नाम रोशन कर दिया है। वैसे, एसडीएम रीतू रानी आज भले ही गांव समाज की बेटियों के लिए आइडियल हो, लेकिन उन्हें यहां तक पहुंचने के लिए बहुत संघर्ष घर से नहीं बल्कि समाज के लोगों से करना पड़ा।
उन्होंने ऐसे समय में पढ़ाई के लिए बाहर जाने का निर्णय लिया था जब गांव में बेटियों को घर से बाहर पढ़ने के लिए नहीं भेजा जाता था। गांवों में हर तरफ बेटियों की पढ़ाई को लेकर विरोध किया जाता था। पश्चिमी यूपी के गांवों में बेटियों को लेकर पहले के लोग क्या सोच रखते थे यह किसी से छिपा नहीं है। ऐसे समय में रीतू रानी का साथ उनके परिवार के सदस्यों और पापा ने दिया और बिटिया को पढ़ने के लिए बाहर भेजा।
अब जब रीतू रानी एसडीएम के रूप में चयनित हो गई है तो वे इस समय मुजफ्फरनगर जिले की हजारों बेटियों के लिए आइडियल बन गई है। अब हर कोई रीतू जैसा बनना चाहता है। पश्चिमी यूपी की रहने वाली बेटी रीतू रानी की कामयाबी कितनी बड़ी इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इस साल अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर जिलाधिकारी, महिला एवं बाल विकास विभाग और विधायक ने सम्मानित किया। यही नहीं, जिला प्रशासन ने रीतू रानी के सम्मान में उनके गांव में बने तालाब का नामकरण भी उनके नाम पर ही करने का निर्णय लिया है। इस तरह से रीतू रानी के संघर्ष की कहानी इस समय गांवों में उन हजारों बेटियों के लिए प्रेरणा बनी है जो कि बाहर निकलकर पढ़ना चाहती है लेकिन उन्हें समाज की वजह से अपने सपनों को वीराम देना पड़ता है।
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ट्यूशन पढ़ाकर निकाला अपना खर्चा
रीतू रानी को अपनी तैयारी के लिए काफी लम्बा समय देना पड़ा है। उन्हें कामयाबी इतनी जल्दी नहीं मिली है। तैयारी के दौरान उन्हें कई तरह का संघर्ष करना पड़ा। परिवार की स्थिति इतनी बेहतर थी नहीं कि वह रीतू रानी को दिल्ली में रहकर पढ़ाई कराएं। पिता के इलाज में परिवार कर्ज में डूब गया था, ऐसी स्थिति में रीतू रानी ने अपना खर्च स्वयं ही निकालना शुरू कर दिया। उन्होंने दिल्ली में रहते ही अपना खर्च निकालने के लिए ट्यूशन और कोचिंग पढ़ाना शुरू किया। उन्होंने अपनी तैयारी से समय निकालकर ये काम शुरू किया, इसी दौरान वह अनेक कोचिंग संस्थानों में कापियों को जांचा करती थी।
रीतू रानी ने ऑनलाइन क्लॉसेज भी पढ़ाई। आप यू-ट्यूब पर जाकर रीतू रानी की इतिहास, संविधान सहित अन्य विषयों की क्लॉसेज को देख सकते हैं। अगर कहा जाए रीतू रानी ने सीमित संसाधनों के बीच में पढ़ाई करके यह मुकाम हासिल किया है तो यह गलत नहीं होगा। रीतू कहती है कि संसाधनों के अभाव में किसी को भी अपने सपनों को नहीं छोड़ना चाहिए। उन्हें हार नहीं माननी चाहिए, ऐसे समय में उन्हें डटकर मुकाबला करना चाहिए। रीतू रानी चयनित होने के बाद भी इस समय उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से सिविल सर्विसेज के लिए संचालित अभ्युदय कोचिंग में पढ़ा रही है। अब कोविड के दौरान वह अपने गांव में लोगों की विभिन्न हेल्पलाइन से जुड़कर मदद कर रही है।
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किसान के घर जन्मीं, गांव से हुई शुरुआती पढ़ाई
मुजफ्फनगर जिले के चरथावल कस्बे के महाबलीपुर गांव की रहने वाली रीतू रानी के पिता वेद पाल सिंह गांव में किसानी करते थे। मध्यवर्गीय परिवार में जन्मीं रीतू रानी के परिवार की स्थिति इतनी अच्छी नहीं थी कि वे अपनी बेटी को किसी बेहतर स्कूल में पढ़ा सकें। रीतू की प्रारंभिक पढ़ाई गांव के ही सरकार स्कूल से हुई। इसके बाद क्लॉस 6 से लेकर 12वीं तक की पढ़ाई चरथावल कस्बे में स्थित सरकारी स्कूल आर्य कन्या इंटर कॉलेज स्कूल में हुई। इसके बाद स्नातक की पढ़ाई उन्होंने चरथावल में स्थित महाराजा अग्रसेन कॉलेज से की। इसके बाद उन्होंने देहरादून से एमबीए की पढ़ाई की। एमबीए की पढ़ाई के दौरान ही उनकी नौकरी लग गई कुछ समय के बाद रीतू ने तैयारी करने का मन बनाया। रीतू नौकरी छोड़कर तैयारी में जुट गई। इसी दौरान रीतू रानी ने बीएड किया। बीएड के बाद रीतू ने यूपीटीईटी की परीक्षा के साथ ही सीटेट की परीक्षा भी पास की।
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रीतू रानी के भाई भी है किसान
रीतू रानी अपने चार भाई बहनों में सबसे छोटी है। रीतू रानी के सपनों को पूरा करने में पूरे परिवार का बहुत बड़ा योगदान रहा है। रीतू रानी की तैयारी के दौरान उनके पिता वेद पाल सिंह की मृत्यु साल 2017 में हो गई। रीतू रानी के मां सरेमला गृहणी है। भाई भगत सिंह और रविन्द्र चौधरी किसान है। उनकी भाभी नीलम और नीतू रानी भी गृहणी है। रीतू की बड़ी बहन पारुल की भी शादी हो चुकी है। इसके अलावा भतीजी वाणी, वर्णित और भतीजा अर्पण चौधरी है। रीतू रानी के सपनों को पूरा करने में उनका परिवार हमेशा ही साथ में खड़ा रहा। परिवार के सहयोग से ही रीतू रानी ने बड़ी कामयाबी पाकर इतिहास रच दिया है।

रीतू की यह रही तैयारी की रणनीति
रीतू रानी ने साल 2014 में नौकरी छोड़ने के बाद सबसे पहले एनसीईआरटी का अध्ययन किया। एनसीईआरटी पढ़ने के बाद वह तैयारी के लिए दिल्ली गई। दिल्ली में आकर उन्होंने मेंस की तैयारी शुरू की और साथ में प्री के लिए भी पढ़ती रही। रीतू का यही सुझाव है कि तैयारी की शुरुआत करने वाले परीक्षार्थी को सबसे एनसीईआरटी को पढ़ना चाहिए। बेसिक अध्ययन के बाद सिलेब्स के हिसाब से तैयारी करनी चाहिए। वह कहती है कि हमें करेंट अफेयर्स को लगातार पढ़ते रहना चाहिए। वह बताती है मैंगजीन के साथ में एक न्यूज पेपर भी पढ़ना चाहिए। उन्होंने बताया कि हिन्दी माध्यम के बच्चों को भी किसी बेहतर प्रतियोगी कोचिंग की वेबसाइट को भी फॉलो करना चाहिए, जिसमें प्रतिदिन की अपडेट आती रहती है। कोशिश करनी चाहिए कि हम लोग प्रतिदिन के नोट्स को भी तैयार करते रहे। हमें कुछ अच्छी वेबसाइटों को फॉलो करते हुए डेली के शेड्यूल में शामिल करना चाहिए। वह कहती है कि प्री और मेंस के लिए अभ्यर्थियों को पूर्व के पेपरों का अवलोकन करना चाहिए ताकि उन्हें पता चल सकें कि आखिर कैसे करके पेपर आता है।
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सिलेबस चेंज के बाद ऐसे बनाई रणनीति
उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग की तरफ से पीसीएस 2018 की परीक्षा से पहले पैटर्न को पूरा बदल दिया गया है। आयोग की तरफ से पैटर्न बदल दिए जाने के बाद रीतू को नए हिसाब से तैयारी शुरू करनी पड़ी क्योंकि यूपीपीसीएस का पैटर्न भी यूपीएससी की तरह ही हो गया था। मुख्य परीक्षा अब पहले से अधिक चुनौतीपूर्ण हो गया। ऐसे में उन्होंने बेहतर रणनीति बनाकर किताबों का अध्ययन शुरू किया और फिर वह कामयाब रही।
पीसीएस की मुख्य परीक्षा में सामान्य अध्ययन के चार पेपर अब होते हैं। चारों ही पेपर में तीन घंटे के अंदर 20 प्रश्नों का जवाब देना होता है। अगर लेखन अभ्यास न होतो ऐसा संभव नहीं हो सकता है। इसलिए वह कहती है कि अब परीक्षा की तैयारी के दौरान ही प्रश्नों को लिखने का अभ्यास भी करते रहना चाहिए।
रीतू रानी ने मेंस की तैयारी के बारे में बताया कि पुराने वर्षों के सभी पेपरों को हमें बार-बार लिखना चाहिए। इसके अलावा करेंट से जोड़कर उत्तर को लिखना चाहिए। PIB की रिपोर्ट का नियमित अध्ययन करते रहना चाहिए। आंकड़ों को एकत्रित करने के लिए एक अलग डायरी होनी चाहिए, जिसमें सभी विषयों के आंकड़ों का संकलन किया जाना चाहिए। इस डायरी के आंकड़ें आपकी प्री और मेंस दोनों में ही बहुत मदद करेंगे।

इंटरव्यू की बेहतर से करें तैयारी
प्री और मेंस की बाधा को पार करने के बाद इंटरव्यू का मौका आता है। इंटरव्यू की तैयारी किसी भी अभ्यर्थी को बहुत ही अच्छे से करनी चाहिए। अपने खुद के अनुभव को शेयर करते हुए वह अभ्यर्थियों को सलाह देती है इंटरव्यू के लिए भी अभ्यर्थी को एक खास डायरी बनानी चाहिए। जिसमें अभ्यर्थी को व्यक्तित्व, शैक्षणिक योग्यता, पारिवारिक पृष्ठभूमि सहित विषयों से संबंधित आवश्यक प्रश्नों की सूची बनाकर उनका बार-बार अभ्यास किया जाना चाहिए। इसके अलावा लगातार समाचार पत्र को भी पढ़ते रहना चाहिए। समाचार पत्र में क्षेत्रीय, राष्ट्रीय व अंतर्राष्टीय मुद्दों को भी बहुत ही गंभीरता से पढ़ना चाहिए।
रीतू रानी ने इन किताबों का किया अध्ययन
अच्छी और मानक वाली किताबें ही किसी भी व्यक्ति की सफलता में सबसे बड़ी भूमिका निभाती है। अगर सही किताबों का अध्ययन किया जाए तो कम समय में सफलता अर्जित की जा सकती है। रीतू रानी ने अपने अनुभवों को शेयर करते हुए बताया कि मैंने प्री से लेकर मेंस तक में इन किताबों का अध्ययन किया।
एनसीईआरटी (6 से लेकर 12वीं तक कला वर्ग की)
आधुनिक इतिहास- विपिन चंद्र
मध्य कालीन इतिहास- सतीश चंद्र
प्राचीन इतिहास- आरएस शर्मा
भूगोल- महेश वर्णवाल
अर्थशास्त्र- मिश्रा एंड पुरी, लाल एण्ड लाल
एथिक्स- लैक्सिकोन की बुक के साथ ही करेंट के केसों से उदाहरण दिया
अन्तरार्ष्टीय संबंध- पुष्पेश पंत सर ओर राजेश मिश्रा की बुक
सामाजिक मुद्दे- क्लॉस नोट्स के साथ ही करेंट के उदाहरण व रिपोर्ट का डाटा
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कोचिंग एक माध्यम न ही सफलता दिलाती है
कोचिंग के बारे में रीतू रानी का साफ कहना है कि कोचिंग आपके लिए एक बेहतर गाइड हो सकती है, लेकिन सफलता नहीं दिला सकती है। सफलता के लिए अभ्यर्थी को स्वयं ही पढ़ना पड़ता है। इसके साथ ही वह कहती है कि कोचिंग करना परिवेश के ऊपर भी निर्भर करता है। उन्होंने बताया कि जिन प्रतियोगी छात्रों को उचित मार्गदर्शन, उचित सामाजिक एवं शैक्षणिक परिवेश नहीं मिल पाता है, वहां पर कोचिंग की अहम भूमिका निभाती है। बदले पैटर्न के बाद अब विषयों की अधिकता और व्यापक अधिक होने की वजह से गाइडेंस की आवश्यकता पड़ रही है। वह कहती है कि सही मार्गदर्शन की आवश्यकता सिविल परीक्षा की तैयारी में होती है। बेहतर मार्गदर्शन अभ्यर्थी को कोचिंग से मिल जाता है।
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नए प्रतियोगी अभ्यर्थी ऐसे करें तैयारी
रीतू रानी नए प्रतियोगी छात्रों को सलाह देते हुए कहती है कि सबसे पहले सिलेबस का बेहतरीन तरीके से अध्ययन करना चाहिए। इसके बाद में पुराने वर्षों के प्रश्नों को भी बहुत ही गंभीरता से देखना चाहिए। एनसीईआरटी के जरिए अपना बेस मजबूत करें। किताबों का अध्ययन अधिक से अधिक करें और अपने नोट्स भी तैयारी करते रहे। वह कहती है कि जब भी तैयारी शुरू करें पहले ही दिन से करेंट पर फोकस करना चाहिए। अभ्यर्थी को समाचार पत्र और आवश्यक मैगजीन का भी अध्ययन करना चाहिए। रीतू नए अभ्यर्थियों को सलाह देते हुए कहती है कि यह परीक्षा समय मांगती है और अभ्यर्थी को परेशान नहीं होना चाहिए। सही दिशा में मेहनत करें और आत्मविश्वास को बनाए रखें। वह कहती है कि प्रतियोगी छात्रों को उत्तर लेखन पर भी अधिक जोर देना चाहिए।

हिन्दी माध्यम के अभ्यर्थी न हो परेशान
हिन्दी माध्यम के अभ्यर्थियों का अक्सर यही प्रश्न रहता है कि अब उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग की भर्ती कें अंग्रेजी के अभ्यर्थियों का अधिक दबदबा रहता है। यूपीएससी की तरफ अब यूपीपीएससी में भी हिन्दी मीडियम कर रिजल्ट गिरने लगा है। हिन्दी के बारे में रीतू रानी कहती है कि प्रतियोगी छात्र को वही भाषा का चयन करना चाहिए जिसके जरिए वे अपनी बात को परीक्षा भवन में सहजता से प्रेरित कर सकें वही माध्यम सबसे बेस्ट होता है। कभी भी किसी के दवाब में आकर कोई माध्यम नहीं लेना चाहिए। अपनी योग्यता और रुचि के हिसाब से ही माध्यम का चयन करना चाहिए। रीतू रानी ने स्वयं ही हिन्दी माध्यम लेकर सफलता अर्जित की है।
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