देश की सेवा में फिर से लौटे 'चीता', पिछले साल शरीर में लगी थीं 9 गोलियां
यह चमत्कार नहीं तो और क्या है जिस व्यक्ति की शरीर में 9 गोलियां लग गई हो, इसके बाद भी वह व्यक्ति दुबारा ड्यूटी पर आ जाए। पेट, हाथ, हिप्स, आंख और दिमाग समेत कई अंगों में गोलियां लगने के बाद भी व्यक्ति जिंदा रहा और एक साल बार फिर से ड्यूटी पर आ गया है। जी हां, हम बात कर रहे हैं जम्मू-कश्मीर में आतंकियों से मुठभेड़ दौरान गंभीर रूप से घायल हुए सीआरपीएफ के 92वीं बटालियन के कमांडेंट चेतन चीता की।
आतंकियों से लोहा लेते हुए करीब एक साल पहले 9 गोलियां लगने से बुरी तरह जख्मी हुए सीआरपीएफ कमांडेंट चेतन चीता ड्यूटी पर वापस लौट आए हैं। मौत के मुंह से निकलने वाले चेतन कुमार चीता का वापस ड्यूटी पर ऐक्टिव होना किसी चमत्कार से कम नहीं है। पिछले साल 15 अगस्त को शांतिकाल का दूसरा सबसे बड़ा गैलेंट्री अवॉर्ड कीर्ति चक्र हासिल करने वाले चीता ने सीआरपीएफ के निदेशालय में जॉइन किया है। फिलहाल वह पोस्टिंग का इंतजार कर रहे हैं।
युवाओं को देश लिए देना चाहिए 100 प्रतिशत: चेतन
राजस्थान में कोटा के रहने वाले चेतन कुमार ने ज्वाइन करने के बाद कहा कि देश कि युवा पीढ़ी को भी अपने देश के लिए 100 फीसदी योगदान दें। यही मैंने भी किया। मैं चाहता तो उस वक्त वहां से भाग भी सकता था, लेकिन मैं डटा रहा और गोलियों का सामना किया। चेतन कुमार ने अपने शब्दों में कहा कि, 'जम्मू कश्मीर में स्थिति को सामान्य होने में अभी समय लगेगा। एक जवान आदमी अपना फर्ज निभा सकता है और इच्छा शक्ति ही वहां कि स्थिति सुधार सकती है। चीता ने यह भी बताया कहा, 'मेरी फिजियोथेरेपी अभी भी चल रही है और मैं फिट होने की कोशिश कर रहा हूं। अगर मेरा देश और फोर्स चाहेगी तो एक बार फिर मैं फील्ड पर जाकर सर्च ऑपरेशन करूंगा। मुझे कोई परेशानी नहीं है।' जिस तरह से चेतन कुमार घायल हुए थे उससे उनके पूरी तरह से ठीक होने में करीब दो साल का समय लगने का अनुमान लगाया जा रहा था, लेकिन चेतन ने एक साल में ही खुद को पूरी तरह से मजबूत कर लिया है।
कोबरा बटालियन में शामिल होना चाहते हैं चेतन
पिछले साल चीता जिस बटालियन से आंतकियों से लोहा लेते हुए घायल हुए थे उसी में वे फिर से शामिल होना चाहते हैं। उनके इस जज्बे का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनमें कितना साहस है। बता दें कि सीआरपीएफ की कोबरा बटालियन नक्सली ऑपरेशंस में लोहा लेती है और चेतन चीता उसी में बटालियन के कमाडेंट थे। अधिकारियों व डाक्टरों ने कहा था कि घायल अधिकारी को पहले की तरह सामान्य होने में अब भी एक से दो साल लग सकता है, लेकिन देश सेवा का उनका जज्बा युवाओं को प्रभावित करने वाला है। अर्धसैनिक बलों और सेना में भर्ती होने की इच्छा रखने वाले युवाओं को उनसे सीखना चाहिए।
डेढ़ माह बाद कोमा से बाहर आए थे चेतन
पिछले साल 14 फरवरी को कश्मीर के बांदीपुरा में आतंकियों के साथ मुठभेड़ में चीता घायल हुए थे। इसके बाद उन्हें इलाज के लिए एम्स में भर्ती कराया गया था। जहां पर करीब दो माह के बाद उन्हें होश में आए थे। जब चीता को घायल अवस्था में अस्पताल लाया गया था तो उनके सिर पर गोलियों के घाव थे। उस समय उनके सिर में गंभीर चोटें थीं, शरीर का ऊपरी भाग बुरी तरह क्षतिग्रस्त था और दाईं आंख फूट गई थी। एक गोली चेतन के सिर में लगी, जो सिर की हड्डी को चीरकर दाई आंख से बाहर निकल गई थी। गोली ब्रेन को छूकर निकल गयी, जिससे ब्रेन का एक हिस्सा डैमेज हो गया। एक गोली दाएं हाथ में, एक बाएं हाथ में, एक दाएं पैर में और दो गोलियां कमर के निचले हिस्से में लगीं। कुल 9 बुलेट चेतन के शरीर में लगे थे।
इसके बावजूद चेतन ने आतंकवादियों से लड़ते हुए 16 राउंड फायर किए। चेतन ने आतंकी को ढेर कर दिया। जब उन्हें इस अवस्था में पाया गया था तो उनके बचने की उम्मीद काफी कम थी। डॉक्टर भी इसे कुदरत का करिश्मा ही मान रहे हैं। उस समय चीता को प्राथमिक इलाज के लिए श्रीनगर स्थित सेना के 92 बेस हॉस्पिटल में लाया गया था। जहां से एयरलिफ्ट करके उन्हें दिल्ली स्थित एम्स अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उनकी तुलना उस समय लोगों ने मौत को मात देने वाले सेना के वीर जवान चेतन कुमार चीता की तुलना सियाचिन में तैनात हनुमंथप्पा से की थी। हनुमंथप्पा वही बहादुर सैनिक हैं, जो सिचाचिन में अपने मोर्चे पर तैनाती के दौरान एक हिमस्खलन में बर्फ के नीचे छह दिनों तक दबे रहे। उन्हें मलबे से जीवित बाहर निकाला गया। हालांकि बाद में उनकी मौत हो गई थी।
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