छत्तीसगढ़ में महिलाओं ने दिखाया कमाल का हुनर, धान से बनाती हैं आभूषण

सोने-चांदी के जेवर महिलाओं को बहुत पसंद होते हैं, लेकिन आज हम आपको ऐसे जेवरों के बारे में बताने जा रहे हैं जो सोना और चांदी के बजाय धान से बनाए जा रहे हैं। धान के जेवरों की लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि इनकी डिमांड दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। छत्तीसगढ़ में महिलाओं का एक समूह धान से नौलखा हार, ईयर रिंग, टॉप्स समेत तरह-तरह के खूबसूरत जेवर बना रही हैं।
50 रुपये से पांच हजार रुपये तक कीमत
छत्तीसगढ़ के बालोद जिले के गुंडरदेही ब्लॉक अंतर्गत पैरी गांव की कई महिलाएं व युवतियां आज इसी हुनर की बदौलत अपने पैरों पर खड़ी हैं। इनके बनाए जेवरों की मांग गांव के साप्ताहिक बाजार से लेकर दूसरे जिलों के साथ-साथ मॉल तक है। इसकी कीमत 50 रुपये से शुरू होकर पांच हजार रुपये तक जाती है।

आत्मनिर्भर बन रहीं महिलाएं
छत्तीसगढ़ के बालोद की युवतियां और महिलाएं धान के आभूषणों का निर्माण कर आत्मनिर्भर बन रही हैं। चौका-चूल्हा व खेती-बाड़ी में हाथ बंटाने वाली महिलाएं व कॉलेज में पढ़ने वाली युवतियां इस कला की बदौलत आज अच्छी खासी आमदनी कर रही हैं। ये महिलाएं आसपास के गांवों की महिलाओं को भी प्रेरित कर रही हैं। पैरी गांव की महिलाओं ने धनधान्य लक्ष्मी स्वयं सहायता समूह बनाया है। देशीला साहू इसकी अध्यक्ष हैं। समूह में कॉलेज में पढ़ने वाली युवतियां भी हैं। देशीला बताती हैं कि छत्तीसगढ़ हस्तशिल्प विभाग की ओर से गांव की 20 महिलाओं को धान के दानों से आभूषण तैयार करने का प्रशिक्षण दिया गया था और आज वो अपने पैरों पर खड़ी हैं।

झुमका, टॉप्स, मंगलसूत्र, माला, चूड़ियां आदि बनते हैं जेवर
धान से जेवर बनाने का कार्य 11 ग्रामीण महिलाएं कर रही हैं। ये सभी धान के दानों से झुमका, टॉप्स, मंगलसूत्र, ब्रेसलेट, माला, चूड़ियां, कंगन, मोतीहार, देवरानी हार, राखी, मूर्तियां, साड़ी पिन आदि तैयार करती हैं। आभूषण बनाने के लिए पेंड्रा रोड से खास किस्म का धान मंगाया जाता है। इसमें कई वेराइटी होती है। बारीक और मोटे, सभी प्रकार के धान से जेवर तैयार किए जाते हैं। इसमें धान की भूसी व प्राकृतिक रंगों का भी इस्तेमाल किया जाता है।

कई राज्यों से मिलते हैं ऑर्डर, शादी-ब्याह और त्योहारों पर अधिक मांग
धनधान्य लक्ष्मी स्वयं सहायता समूह की महिलाओं ने आपस में चंदा करके धन एकत्रित किया फिर धान के जेवर बनाने का कार्य शुरू किया। समूह की अध्यक्ष देशीला साहू बताती हैं कि पहले कमाई न के बराबर थी, लेकिन समय के साथ ज्यों-ज्यों हाथ सधते गए, जेवरों की खूबसूरती बढ़ती गई। इसी के साथ मांग भी बढ़ती गई। कभी रोजाना प्रति महिला 50 रुपये ही कमाई हो पाती थी, लेकिन आज 500 रुपये से ज्यादा कमाई हो रही है। वह भी घर की पूरी जिम्मेदारियां निभाते हुए। गांव के बाजार ही नहीं, रायपुर के मैग्नेटो व अंबुजा मॉल समेत पड़ोसी राज्यों से भी ऑर्डर मिलते हैं। यहां इन गहनों के शोरूम हैं। देशीला साहू बताती हैं कि कि शादी-ब्याह, रक्षाबंधन व भैया दूज आदि पर्व के मौकों पर उनके बनाए गहनों की मांग अधिक रहती है। इन्हें पहनने के साथ ही घर की सजावट के रूप में भी उपयोग किया जाता है।
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