इच्छाशक्ति की अनोखी मिसाल, दोनों हाथ नहीं फिर भी बनाया विश्व रिकॉर्ड

पता नहीं आप भगवान को मानते हैं या नहीं! लेकिन जो भी है... जो ये दुनिया चला रहा है, भगवान या प्रकृति... उसने कुछ नियम तय किए हैं जिसको मानव जाति को मानना ही पड़ता है! उसी नियम के मुताबिक हाथों का इस्तेमाल आपको अपनी जरूरी चीजें करने, कानों को सुनने के लिए... पैरों को चलने के लिए बनाया गया है। लेकिन उनका क्या जिनके हाथ ही नहीं, या शरीर को कोई महत्वपूर्ण अंग उनकी जन्म से नहीं होता! हम उसे दिव्यांग मानते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं इन दिव्यांगों के पास एक ऐसी ताकत होती है जो इन सभी कमियों को पूरा कर देती है। वो है इच्छाशक्ति! हम आपको आज एक ऐसी ही कहानी से रूबरू कराने जा रहे हैं जो इच्छाशक्ति का बेहतरीन उदाहरण है।
रायपुर की रहने वाली 19 साल की दामिनी सेन के जन्म से ही दोनों हाथ नहीं है, ये अलग बात है उनके नाम इस समय दो विश्व रिकॉर्ड है। ये दोनों विश्व रिकॉर्ड पेंटिंग में मिले हैं, दामिनी ने एक घंटे के अदर अपने पैरों से 38 चित्र बनाकर यह रिकॉर्ड अपने नाम किया है। आत्मविश्वास और अपनी मजबूत इच्छाशक्ति की बदौलत दामिनी अपने पैरों का इस्तेमाल ऐसे करती है जैसा कोई अपने हाथ से न कर पाए।
मां का मिला पूरा सहयोग
कहते हैं ना, मां से बड़ी कोई चीज इस दुनिया में नहीं है। दामिनी के साथ भी ऐसा है, उनकी मां दामिनी को कोई काम कैसे करना है पहले वो अपने पैरों से करके उन्हें बताती हैं फिर दामिनी उसे आसानी से सीख जाती है। इसके लिए उनकी मां पहले अपने पैरों से उस काम को पूरी लगन से सीखती हैं फिर अपनी बेटी को बताती हैं। दामिनी की मां और उनके पिता ने अपनी बेटी के हुनर को जल्द ही पहचान लिया। दामिनी को पेंटिंग और चित्रकारी का शौक था जिसको उनके मां-बाप ने सही समय पर पहचानते हुए अपनी बेटी के लिए सभी सुविधाएं मुहैया कराई। दामिनी के पिता एक स्कूल में चपरासी का काम करते हैं।
खाना भी बना लेती है दामिनी
अपने जरूरत की सभी काम करने के अलावा दामिनी अपने पैरों की बदौलत ही खाना भी बना लेती हैं। दामिनी की इस इच्छाशक्ति का लोहा मानते हुए उसके स्कूल ने 'दामिनी मोटिवेशन ग्रुप' बनाया। जिसके बाद दामिनी ने 10 और छात्रों के साथ मिलकर 100 स्कूलों और 2 विश्वविद्यालय में मोटिवेशन क्लास ली। 10 और 12वीं में 80 फीसदी से ज्यादा अंक लाने वाली दामिनी अभी बीएसएसी प्रथम वर्ष की छात्रा हैं, भविष्य में वो तैयारी कर आईएएस बनना चाहती हैं।

क्या कहती है दामिनी
दामिनी का कहना है कि उनकी मां ने उन्हें कभी ये महसूस नहीं होने दिया कि उसके हाथ नहीं हैं। वो मुझे दुनिया में आत्मनिर्भर बनाने के लिए हर वो काम करती है जो वो कर सकती है। दामिनी का मानना है किसी भी शारीरिक अक्षमता के होने से निराश होने की जरूरत नहीं है, अगर आत्मविश्वास है तो कुछ भी किया जा सकता है।
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