आज आईआईटीएन को देते हैं श्रीकांत नौकरी, कभी नहीं मिला था इन्हें प्रवेश पत्र

पूर्व राष्ट्रपति भारत रत्न स्व. एपीजे अब्दुल कलाम के साथ लीड इंडिया तक का रोल करने वाले श्रीकांत ‘बोलंट इंडस्ट्रीज प्राइवेट लिमिटेड’ कम्पनी के मालिक है। हैदराबाद में स्थित उनकी कम्पनी ईको फ्रेंडली चीजें बनाती है। यह एक ऐसी कंपनी है, जिसका मुख्य उद्देश्य अशिक्षित और अपंग लोगों को रोजगार देना, उपभोक्तोओं को पर्यावरण के अनुकूल पैकिंग समाधान प्रदान करना हैं।
संघर्ष से ही शुरु हुआ था श्रीकांत का जीवन
श्रीकांत का जन्म होते ही संघर्ष शुरु हो गया था जैसे ही श्रीकांत बोला ने जन्म लिया था उसके बाद उसके गांव वाले माता-पिता से कहते थे कि ‘यह बिना आँखों का एक बेकार बच्चा हैं। जो आगे चलकर आप पर ही बोझ बनेगा।’ लेकिन परिवार ने श्रीकांत को आगे बढ़ाने का काम किया। श्रीकांत बोला का जन्म आंध प्रदेश में एक निर्धन किसान परिवार में हुआ था। जिसकी वार्षिक आय 20000 रुपये (54 प्रति दिन) से भी कम थी। इसका मतलब यह है कि परिवार के सदस्यों को यह भी नहीं मालूम था कि उनको शाम का खाना नसीब होगा भी या नहीं। जब श्रीकांत बड़े होने लगे, तो उनके किसान पिता उनको अपने साथ खेत में हाथ बटाने के लिए ले जाने लगे। लेकिन वे उनकी खेत में कोई मदद नहीं कर पाते। फिर उनके पिता ने सोचा शायद ये पढ़ाई में अच्छा करें। इसलिए उन्होंने उनका नामांकन गांव के ही स्कूल जो कि उनके घर से लगभग पांच किमी दूर था, उसमें करवा दिया। अब वे रोज स्कूल जाने लगे। ज्यादातर स्कूल का सफर उन्हें रोज पैदल ही तय करना पड़ता था। वे ऐसे दो सालों तक स्कूल जाते रहे। एक साक्षात्कार में उन्होंने स्वयं कहा था कि ‘स्कूल में कोई भी मेरी मौजूदगी को स्वीकार नहीं करता था। मुझे हमेशा कक्षा के अंतिम बेंच पर बिठाया जाता था। मुझे पीटी की कक्षा में शामिल होने की मनाही थी। मेरे जीवन में वह एक ऐसा क्षण था, जब मैं यह सोचता था कि दुनिया का सबसे गरीब बच्चा मैं ही हूं, और वो सिर्फ इसलिए नहीं कि मेरे पास पैसे की कमी थी, बल्कि इसलिए की मैं अकेला था।’
विशेष स्कूल में प्रवेश से मिलने से सपनों को लगे पंख
श्रीकांत की समस्या ऐसी थी कि वह सामान्य स्कूल में पढ़ाई नहीं कर पा रहे थे। अंतत उनके पिता जी ने हैदराबाद के ही दिव्यांग बच्चों के विशेष विद्यालय में भर्ती कर दिया। वहां श्रीकांत कुछ ही महीनों के अंदर अच्छा प्रदर्शन करने लगे। वे वहां सिर्फ चेस और क्रिकेट खेलना ही नहीं सीख गए बल्कि वे इन खेलों में निपुण भी हो गये। कक्षा में उन्होंने प्रथम स्थान प्राप्त किया। उतना ही नहीं कक्षा में उनके सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के चलते उन्हें एक बार भारत के पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के साथ लीड इंडिया प्रोजेक्ट में काम करने का भी अवसर प्राप्त हुआ। श्रीकांत ने भी खुद को साबित किया, वह शुरू से ही पढ़ाई में होनहार थे। 10वीं में उनके 90 प्रतिशत आये इसके बावजूद उन्हें स्कूल ने विज्ञान की पढाई करने से रोक दिया था। अंतत उन्होंने बोर्ड के द्वारा विज्ञान विषय को चुनने कि स्वीकृति न दिये जाने पर उन्होंने निश्चिय किया कि वे इसका विरोध करेंगे। और केस कर दिया। अंततः वह जीत गए। सिर्फ जीते ही नहीं बल्कि 12वीं में 98 प्रतिशत लाकर उनके मुंह पर के करारा तमाचा भी जड़ दिया।
आईआईटी परीक्षा देने के लिए नहीं मिला प्रवेश पत्र
इंटर में अद्भूत सफलता मिलने के बाद भी उन्हें आईआईटी की परीक्षा का प्रवेश पत्र तक नहीं दिया गया। उन्होंने आवेदन फार्म भर तो दिया था लेकिन श्रीकांत को यह कहकर लौटा दिया कि ‘आप दृष्टिहीन है। इसलिए आप पीटी की प्रतियोगी परीक्षा में नहीं बैठ सकते।’ उसके बाद श्रीकांत ने आगे के रास्ते को बड़े ध्यान पूर्वक चुना और इंटरनेट के माध्यम से यह पता लगाने का प्रयास करने लगे कि क्या उनके जैसे लड़कों के लिए कोई इंजीनियरिंग प्रोग्राम उपलब्ध है? इसी क्रम में उन्होंने अमेरीका के कुछ प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग कॉलेजों में आवेदन किया। उन्हें यूएस के 4 टॉप स्कूलों एमआईटी, स्टैनफॉर्ड, बेर्कली और कार्निज मेलन में स्कॉलरशिप पर पढाई के लिए चुन लिया गया। उन्हें पहले अंतर्राष्ट्रीय ब्लाइंड स्टूडेंट का तमगा भी हासिल हुआ है। यह भारतीय इतिहास के लिए बड़े ही गौरव का पल था।
भारत में आकर दिव्यांगों व अक्षम लोगों को दिया रोजगार
गरीबी को सहकर आगे बढे़ श्रीकांत ने अपना पूरा जीवन गरीबों के प्रति ही समर्पित कर दिया। और अक्षम लोगों को आगे बढ़ाने के लिए लग गए। आईआईटी में इंजीनियर की पढ़ाई न करने वाले श्रीकांत अमेरिका में पढ़ाई करने के लिए गए और वही पर पढ़ाई पूरी की। जब उनकी स्नातक की पढ़ाई पूरी हो गई तो वे अमेरीका में अपने सुनहरे भविष्य को छोड़, भारत लौट आये। उन्होंने दिव्यांगों के लिए एनजीओ शरू किया, ब्रायल साक्षरता पर जोर दिया, डिजिटल लाइब्रेरी भी बनाई और ब्रायल प्रिंटिंग प्रेस भी शुरू की। इसकी सहायता से आज तक 3000 बच्चों को साक्षर बनाया जा चुका है। इसके बाद श्रीकांत ने बोलंट इंडस्ट्रीज प्राइवेट लि. कंपनी को शुरू किया जिसमें इको-फ्रेंडली चीजें बनायी गयीं साथ ही खास दिव्यांगों को नौकरी दी गयी। उन्हें इन्वेस्टर रवि मंथा का साथ तो मिला ही साथ ही रतन टाटा ने भी उनके प्रयास से प्रभावित होकर एक खास रकम उन्हें दी।
उनकी कंपनी में आज भी कई आईआईटी से इंजीनियरिंग करने वालों के एप्लीकेशंस आते हैं जो श्रीकांत के साथ काम करना चाहते हैं। दिव्यांगों को रोजगार देने के उद्देश्य से बोलंट इंडस्ट्रीज की स्थापना कि जो अभी लगभग 200 से ज्यादा दिव्यांग लोगों को रोजगार प्रदान कर उन्हें भी सम्मान से जीवन जीने का अवसर दे रही हैं। हर इंसान को जीवन में विपरीत परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। वह सपने देखता है, और उसे धरातल पर उतारने के लिए परिश्रम का सहारा लेता है। हालांकि यह दूसरी बात है कि बस कुछ ही इंसान सफलता की उस लकीर को पार कर पाते हैंए जिसके बाद दुनिया उनको सम्मान की दृष्टि से देखती हैए और श्रीकांत भी उन्हीं लकीर पार करने वालों में से एक है। आज उनके पास कंपनी की चार उत्पादन ईकाइयां है। एक हुबली (कर्नाटक), दूसरी निजामाबाद (तेलंगना) तीसरी भी तेलंगना के हैदराबाद में ही और चैथी, जो कि सौ प्रतिशत सौर ऊर्जा द्वारा संचालित होती हैं, आंध प्रदेश के श्री सीटी में है जो कि चेन्नई से 55 किमी. दूर है। वह कहते हैं कि ‘लोगों के प्रति सहानुभूति दिखाओ जिससे वे प्रोत्साहित हो, समृद्ध हो सके। अपने जीवन में लोगों को शामिल कर अकेलेपन और उदासीनता को समाप्त करो और अंतिम, कुछ अच्छा करो, वह फिर तुम्हारे पास ही लौटकर आएगा।’
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