बिश्नोई समुदाय के इस प्रकृति प्रेमी ने अब तक लगाए हैं 27 हजार पेड़, पढ़िए पूरी कहानी
हमारे आस-पास कई लोग ऐसे हैं जो प्रकृति प्रेमी हैं, वो पर्यावरण को बचाने के लिए खुद भी मेहनत कर रहे हैं और दूसरों को भी जागरुक करते हैं। इनमें बिश्नोई समुदाय का नाम भी है, जो अपने पर्यावरण प्रेम के लिए जानी जाती है।
बिश्नोई समुदाय ने ही सबसे पहले पेड़ों को बचाने के लिए 'चिपको आंदोलन' चलाया था। इसी समाज की अमृता देवी के बलिदान को कौन भूल सकता है, जिन्होंने प्रकृति को बचाने के लिए 1730 में 363 पुरुषों, अपनी जान तक दे दी। इन्हीं महान लोगों की लिस्ट में एक नाम और जुड़ रहा है और वो है, जोधपुर के राणाराम बिश्नोई का। ये एक ऐसी शख्सियत हैं जो 75 साल की उम्र में जो अपने प्रकृति प्रेम और लगन से किसी में भी उत्साह भर दें।
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तीन किलोमीटर रेतीली जमीन पर चलकर लाते हैं पौधों के लिए पानी
राणाराम बिश्नोई जोधपुर से करीब 100 किमी दूर बंजर जमीन पर बसे एक गांव में रहते हैं। वह पिछले 50 सालों से रेत के टीलों पर हरियाली ला रहे हैं और अब तक करीब 27 हजार पेड़ लगा चुके हैं। वह ना सिर्फ पेड़ लगाते हैं, बल्कि उन्हें पानी भी देते हैं और उनकी देखभाल करते हैं जिससे वो सूखे न। हर दूसरे दिन बिश्नोई 3 किमी दूर रेत पर पदल चलकर अपने दोस्त के ट्यूबल से पानी लेते हैं और उसे पौधों को देते हैं। अब तक उन्होंने नीम, खेजड़ी, बबूल, रोहिडा, कनकेरी के हजारों पेड़ लगाए हैं।
जगह-जगह से इकट्ठा करते हैं बीज
राणाराम गर्मियों में जगह-जगह से बीज जुटाते हैं और बारिश में उन बीजों को रेतीले थार में बिखेरने के लिए कोसों दूर तक निकल जाते हैं। वो आज लोगों को छांव ही नहीं दे रहे, बल्कि पशु पक्षियों के जीवन को आगे भी बढ़ा रहे हैं। अपने हिंदू बिजनेस लाइन में दिए गए एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि इन पेड़ों की सेवा करना मेरे लिए बहुत अच्छा है, मुझे ये करके खुशी होती है। कई बार मैं गाँव की लड़कियों की मदद लेता हूं पौधों को पानी देने के लिए , इसके लिए मैं उन्हें अपनी जेब से 2 रुपए भी देता हूं।
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कहां से मिली ये प्रेरणा
राणाराम बताते हैं कि मुझे इस नेक काम करने की प्रेरणा बीकानेर के एक सामुदायिक कार्यक्रम मुकाम से मिली, जो आज से लगभग 50 साल पहले हुई थी। इसमें उन्होंने स्पीकर्स को ये बताते हुए सुना कि कैसे बिश्नोई समुदाय के लोगोंका जीवन पर्यावरण के इर्द-गिर्द ही रहा है। ये उनकी जिम्मेदारी है। उसी दिन ने मेरा ह्दय परिवर्तन कर दिया। मैं उसी दिन कई पौधे खरीदकर लाया और गाँव में लगा दिए।
अगर एक अकेला इंसान बंजर रेगिस्तान को हरा-भरा बनाने का जज्बा रखता है तो हम सब मिलकर क्या नहीं कर सकते हैं।
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