86 साल के इस शख्स ने चलाई 4 लाख किमी साइकिल, 62 की उम्र में हुई थी बड़ी बीमारी
हम कितनी बार अपनी कार, रिक्शा या टैक्सी को छोड़कर साइकिल से कहीं जाते हैं? या कभी छुट्टियों में पहाड़ चढ़ते और फुल मैराथन में हिस्सा लेते हैं? अगर आप हर दिन 12 घंटे की डेस्क जॉब करते हैं तब तो इसकी संभावना न के बराबर है, लेकिन बंगलुरू के रहने वाले 86 साल के एक शख्स ने साइकिल से 4 लाख किलोमीटर का सफर तय किया है और आपको ये जानकर आश्चर्य होगा कि इन्हें मिरगी के दौरे पड़ते थे और डॉक्टर्स ने कह दिया था कि उन्हें जिंदगी भर दवाओं के सहारे ही जीना पड़ेगा।
बायलहल्ली रघुनाथ जनार्दन को 1995 में मिरगी के दौरे पड़ना शुरू हुए। डॉक्टर ने उनसे कह दिया कि अब दवाओं के सहारे ही उनकी जिंदगी कटेगी, लेकिन 64 साल की उम्र में उन्होंने साइकिल चलाना शुरू किया। और पिछले 23 साल में वह 4 लाख किलोमीटर साइकिल चला चुके हैं। यही नहीं 68 साल की उम्र में उन्होंने पहाड़ पर चढ़ाई की और वह 20 बार हिमालय पर चढ़ाई कर चुके हैं, जिसमें माउंट कैलाश भी शामिल है। 72 साल की उम्र में उन्होंने दौड़ना शुरू किया और वह 16 फुल मैराथन, 64 हाफ मैराथन और 10 किलोमीटर की 60 दौड़ों में हिस्सा ले चुके हैं।
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बेटर इंडिया से बात करते हुए जर्नादन ने अपनी बीमारी, जैविक बागवानी को लेकर अपने पैशन, रनिंग, साइकलिंग और पहाड़ की चोटियों पर चढ़ाई से जुड़ी कई बातें बताईं। जर्नादन ने उत्तर प्रदेश के मुगलसराय में 34 साल रेलवे में नौकरी की। इस बीच वह आधा एकड़ खेत में जैविक विधि से बागवानी भी करते थे। एक वक्त था जब वह जमीन बंजर पड़ी थी, लेकिन जर्नादन के रिटायरमेंट के वक्त उसी जमीन पर लगे पेड़ों में 1000 से ज्यादा फल लगे थे। उनसे प्रेरणा लेकर कई दूसरे रेलवे कॉलोनियों में भी इस तरह के बगीचे लगाए गए। इस बगीचे में वह प्याज, आलू, मूली, गाजर जैसी सब्जियां और पपीता, बेर, आम, अमरूद जैसे फल लगाते थे, वह भी बिना केमिकल्स के इस्तेमाल के।
उनके रिटायरमेंट के 4 साल बाद यानि 1995 में जनार्दन अपनी पत्नी और कुछ रिश्तेदारों के साथ अपनी बेटी के रिश्ते की बात करने दुबई जा रहे थे और वहीं कार में अचानक वह बेहोश हो गए। उन्होंने तुरंत अस्पताल ले जाया गया, जहां पता चला कि उन्हें मिरगी का दौरा पड़ा है। डॉक्टर ने उनसे कहा कि उन्हें अब हर वक्त किसी की देखरेख में रहना होगा और ताउम्र दवाएं खानी होंगी, लेकिन जनार्दन ने ऐसा करने से मना कर दिया। वह कहते हैं कि मेरी मां 103 साल तक जिंदा रही थीं। जब मुझसे कहा कि मुझे रोज दवा खानी होगी, मुझे घर पर कभी अकेले नहीं छोड़ना होगा और मैं खुद भी अकेले कहीं नहीं जा सकता, मैं एकदम टूट गया। परिवार के प्रेशर में आकर उन्हें ये सब करना पड़ा, लेकिन इसका साइड इफेक्ट यह हुआ कि उनकी एनर्जी धीरे-धीरे कम होने लगी।
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जनार्दन बताते हैं कि मैं हर वक्त थका हुआ महसूस करता था। मुझे बहुत अजीब लगता था क्योंकि मैं बहुत एक्टिव लाइफ जीने का आदी था। हमने कई स्पेशलिस्ट से बात की, लेकिन सबका वही कहना था। मैं किसी पर बोझ नहीं बनना चाहता था और अंदर ही अंदर मैं खुद को भरोसा दिला रहा था कि मुझे एपिलेप्सी नहीं है। जब सब लोग सो रहे होते थे तब मैं सुबह 4.30 बजे उठकर टहलने जाया करता था। जैसे-जैसे वक्त बीता मैं सुबह 20 किलोमीटर टहलने लगा वह भी एपिलेप्सी के डर के बिना, कहीं न कहीं मुझे लग रहा था कि ये नई जिंदगी की शुरुआत है।
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वह याद करते हुए बताते हैं कि उस दिन मेरा बेटा अशोक, जो एक सितारवादक है, को उसकी यूनिवर्सिटी की तरफ से केम्पेगौड़ा एयरपोर्ट पर एक कल्चरल प्रोग्राम के लिए सलेक्ट किया गया। इस प्रोग्राम में 17 यूनिवर्सिटी हिस्सा ले रही थीं। यह हमारे घर से लगभग 30 किलोमीटर दूर है। मैंने तय किया कि मैं अपने बेटे का प्रोग्राम देखने जाऊंगा और उस दिन जर्नादन ने 40 साल बाद साइकिल से सफर करने के बारे में सोचा। जिस साल वह रिटायर हुए थे उन्होंने अपने बेटे के लिए हीरो जेट 2000 साइकिल खरीदी थी। वह 30 किलोमीटर साइकिल चलाकर वहां पहुंचे और जब वह वापस आए तब तक 7 7 किलोमीटर साइकिल चला चुके थे। एक हफ्ते बाद उन्होंने फिर 72 किलोमीटर साइकिल चलाई और इसके बाद बिना किसी को बताए साइकिल से 132 किलोमीटर अपने गांव बायलाहल्ली गए।
जनार्दन बताते हैं कि मेरा बड़ा भाई जो मेरे और मेरी पत्नी के लिए पिता के समान था, उसे बहुत गुस्सा आया। उसे लग रहा था कि मैं अपनी सेहत के साथ खिलवाड़ कर रहा हूं, लेकिन फिर उसे समझ आ गया कि लगातार कुछ न कुछ करते रहने की मेरी आदत ही मुझे खुश रख सकती है। इन 23 साल में जनार्दन की दवाएं छूट चुकी हैं। हालांकि इस पूरी यात्रा में कई बार उनका एक्सीडेंट हुआ, कई मुश्किलें आईं, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। वह कहते हैं कि मैं किसी भी हाल में, किसी के भी लिए साइकिल चलाना नहीं छोड़ सकता। वह बताते हैं कि मैं एक दिन में 15 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से 48 किलोमीटर साइकिल चला सकता हूं और कम से 14 साल यही करते हुए और जिंदा रहूंगा।
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