नशा छुड़ाने के लिए 5,70,000 KM चल चुका है 81 साल का यह बुजुर्ग

प्रधानमंत्री मोदी के ड्रीम प्रॉजेक्ट महामना एक्सप्रेस की हालत के बारे में इंटरनेट पर पढ़ा और पढ़ते ही जो पहला ख्याल ज़ेहन में आया वह था, ‘इस देश का कुछ नहीं हो सकता’। आस पास बैठे सह कर्मचारियों से बात की, चार गालियाँ लोगों के नाम निकालीं और लग पड़े फिर अपने काम में।
कुछ देर बाद वापस अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर एक खबर ने मेरा ध्यान खींचा। यह खबर थी 81 वर्ष के बुज़ुर्ग बगीचा सिंह के बारे में, जो पिछले 23 साल से लगातार चलते जा रहे हैं। उनका लक्ष्य देश भ्रमण नहीं है, न ही वह कहीं पहुँचने के लिए सफ़र कर रहे हैं। उनका मकसद इस देश को एक बेहतर जगह बनाना। उसी देश को, जिसके लिए हम हर दूसरे वाक्य में कहते हैं, ´इस देश का कुछ नहीं हो सकता।´
जिंदगी के चंद साल देखकर और शायद कुछ गिनी-चुनी मायूसियों का सामना करके हार मान कर हम पीछे हट जाते हैं और बिना किसी हिचक के कह देते हैं की हमारी कोशिशें बेकार हैं। ऐसे में मेहनत कर निराश होने का क्या फायदा। वहीं, एक ओर बगीचा सिंह उम्र की उस देहलीज़ पर हैं जहां लोग अपने घरों के आंगन में बैठ कर बच्चों को खेलते देखना चाहते हैं, और वह देश के कोने कोने में घूम कर लोगों को नशीले पदार्थों, तम्बाकू और शराब जैसी बुराइयों के खिलाफ जागरुकता फ़ैलाने के लिए प्रयासरत हैं।
पानीपत के रहने वाले बगीचा सिंह ने सन 1993 से अपने अनंत सफ़र का आगाज़ किया और तब से आज तक वह वापस अपने घर नहीं लौटे। वह आज तक तकरीबन 21 बार कन्याकुमारी से कश्मीर तक देश के हर कोने का भ्रमण कर चुके हैं और अपने इस सफ़र में उनका प्रयास देश में नशीले पदार्थों व अन्य कई सामाजिक बुराइयों के खिलाफ लोगों में जागरूकता पैदा करना। अपने इस सफ़र में उन्होंने कई दिल को दहलाने वाले अनुभ का भी सामना किया जिसमे कभी उन्हें नागा जनजाति के आदिवासियों का सामना किया तो कभी हाथियों के झुण्ड को केले खिला कर जंगल के बीच से रास्ता प्राप्त किया।
अब तक 5,70,000 किलोमीटर का सफ़र कर चुके बगीचा सिंह हमेशा ही देश की सेवा करने चाहते थे। इस कारण उन्होंने बारहवीं कक्षा के बाद ही शादी न करने का फैसला घर वालों को सुना दिया। आज 81 वर्ष की उम्र में बगीचा सिंह अपनी पीठ पर 90 किलो का भार व भारत के झंडे लेकर चलते हैं। वह हर रोज़ सुबह 5 बजे से सफ़र शुरू करते हैं और 12 बजे तक चकते हैं फिर एक घंटे के आराम के बाद फिर शाम के सात बजे तक चलते हैं।
इस बीच वह लोगों से मिलते हैं, उनसे बात करते हैं तथा उन्हें एक बेहतर भारतीय बनने के लिए प्रेरित करते हैं।
यूं तो हमें आज तक बगीचा सिंह नामक इस जीती जागती प्रेरणा से मिलने का मौका नहीं मिला है पर शायद उनकी कहानी, उनका सफ़र ही हमे अपने देश का एक बेहतर नागरिक बनने की शिक्षा दे जाए और हम यह न कहने पाएं कि इस देश का कुछ नहीं हो सकता।
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