हादसे में मां और दोनों पैर गंवाने वाली शीला आज हैं देश की मशहूर फुट पेंटर

हादसे इंसान को तोड़ते ही हैं, कम ही ऐसा होता है जब इंसान हादसे के बाद अपनी इच्छाशक्ति की बदौलत फिर खड़ा हो पाता है। लेकिन आज हम जिसके बारे में बताने जा रहे हैं, उसने न सिर्फ हादसे के बाद अपने आप को संभाला इस समय वो दुनिया में अपने हुनर की बदौलत नाम भी कमा रही हैं।
रेल हादसे में मां और दोनों हाथ गंवाने के बाद बनी पेंटर
यह कहानी है, शीला शर्मा की। चार साल की उम्र में शीला का एक रेल हादसे में उनकी मां, दोनों हाथ और पैर की तीन अंगुलियां उनका साथ छोड़कर चली गईं। उसके बाद भी शीला ने हार न मानते हुए अपने पैरों को ही अपने जीवन की सभी जरूरतों का आधार बनाया। आज वो अपने पैरों से बेहतरीन पेंटिंग करती हैं। पेंटिग ऐसी कि लोग हाथों से भी वैसी पेंटिंग नहीं बना सकते।
क्या है शीला की पूरी कहानी
मूलत: उत्तर प्रदेश में गोरखपुर की रहने वाली शीला वर्तमान में लखनऊ में रहकर अपनी इस प्रतिभा का लोहा मनवा रही हैं। उनकी जिंदगी में तब भूचाल आया जब वो महज 4 साल की थीं। उस समय शीला एक रेल हादसे में अपनी मां और अपने दोनों हाथ खो दिये थे। ये ऐसा रेल हादसा था जिसमें उनके दोनों हाथों के साथ-साथ पैर की तीन अंगुलिया भी कट गयीं। हालांकि शीला ने इसके बाद भी हिम्मत नहीं हारी और अपने उन्हीं हौसलों को आकार देने के लिए उन्होंने रंगों और कूचियों से खेलना शुरू कर दिया।
पैरों के साथ मुंह से भी पेंटिंग करती हैं शीला
आगे चलकर शीला ने लखनऊ यूनिवर्सिटी से आर्ट्स में स्नातक किया और पैरों से पेंटिंग बनानी शुरू कर दी। शीला पेंटिंग करते समय अपने पैरों और मुंह दोनों का इस्तेमाल करती हैं। शीला कुछ दिन दिल्ली में भी रहीं और वहां के रहन-सहन और कलाकारों की प्रतिभा देखकर प्रभावित हुईं। लेकिन फिर भी दिल्ली में मन नहीं लगा और वो अपने शहर लखनऊ वापिस लौट गईं। यहां आकर उनकी मुलाकात सुधीर से हुई और सुधीर-शीला की शादी हो गई। शीला शादी के बाद भी अपने रंगों से दूर नहीं हुईं साथ ही सुधीर के उत्साहवर्धन और साथ ने उनकी कलाकारी को निखारने का काम किया। वो रंगों और कूचियों को अपनी अंगुलियों में दबाये आगे बढ़ती रहीं।
देशभर में लगा चुकी हैं प्रदर्शनी
अपनी प्रतिभा के प्रदर्शन के लिए शीला देश के कई शहरों में अपनी कला प्रदर्शनियां लगा चुकी हैं, जिनमें लखनऊ, दिल्ली, मुंबई और बैंगलोर जैसे महानगर भी शामिल हैं। शीला एक बहादुर महिला हैं और परिस्थितियों से किस तरह लड़ना है ये उन्हें बहुत अच्छे से आता है। अपनी इसी ज़िद के चलते शीला ने कभी किसी भी सरकारी भत्ते का सहारा नहीं लिया। उनके लिए अपंगता न ही कोई अभिशाप है और न ही ऐसी कोई कमी कि उसकी आड़ लेकर अपनी ज़रूरतों को आसानी से पूरा किया जा सके। शीला दो बच्चों की मां हैं। बच्चों को भी उनकी तरह पेंटिंग का शौक है। शीला अपने परिवार और काम में सामंजस्य बनाकर चलती हैं। उनके लिए उनकी कला पूजा है और परिवार उनकी ज़िंदगी। दोनों के बिना रह पाना मुश्किल है और साथ लेकर चलना आसाना।
अपने जैसे बच्चों को सिखाना चाहती हैं पेंटिंग
शीला का सपना है, कि वो ऐसे बच्चों को पेंटिंग सिखायें, जो उनकी ही तरह किसी न किसी हादसे के चलते अपने हाथ या पैर गंवा चुके हैं। लेकिन ये काम वो पैसों और किसी एनजीओ के तहत नहीं करना चाहतीं। शीला का मानना है, कि कुछ भी असंभव नहीं है। हर काम किया जा सकता है। उसके लिए हाथ पैर और ताकत की जरूरत नहीं है बस दिमाग और सकारात्मक सोच का होना ज़रूरी है। शायद इसीलिए किसी ने सच ही कहा है, कि कला कभी शरीर के अंगों की मोहताज नहीं होती।
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