पत्नी की याद में बनवा दिया 'ताजमहल', अब बगल में दफ्न होना है अंतिम इच्छा

आगरा के ताजमहल को पूरी दुनिया में मोहब्बत की सबसे बड़ी निशानी के रूप में जाना जाता है। आज वैलेंटाइन डे के मौके पर हम आपको ऐसी ही एक कहानी बताने जा रहे हैं, जो इस मोहब्बत की निशानी से जुड़ी हुई है।
पत्नी की याद में बनवा दिया 'ताजमहल'
आपने अब तक सुना होगा आगरा में शाहजहां ने 1631 में अपनी बेगम मुमताज महल की याद में ताजमहल का निर्माण कराया था। ठीक उसी तरह 2012 में बुलंदशहर के रहने वाले एक रिटायर्ड पोस्टमोस्टर में अपनी पत्नी तज्जमुली बेगम की याद में हूबहू ताजमहल का निर्माण अपनी दिवंगत पत्नी के लिए कराया है।
क्या है पूरी कहानी?
यह कहानी है उत्तर प्रदेश में बुलंदशहर के एक रिटायर्ड पोस्टमास्टर फैजल हसन कादरी की, इन्होंने 2011 में अपनी पत्नी के निधन के बाद ने 17 वीं शताब्दी में निर्मित ताजमहल की प्रतिकृति के निर्माण का काम शुरू किया। उनकी पत्नी का गले के कैंसर के कारण निधन हो गया था। सेवानिवृत्त इस क्लर्क ने अपनी पत्नी की याद में कासर कलां गांव में स्मारक के निर्माण में अपनी सारी बचत खर्च कर दी।
पत्नी से किया वादा पूरा किया
दोनों की कोई संतान नहीं थी, इसलिए तज्जमुली बेगम ने अपने पति से कहा कि हमें कोई ऐसी इमारत बनवानी चाहिए जिससे कि मरने के बाद भी लोग हमें याद करें। तब फैजल ने अपनी बीवी से वादा किया कि वो हूबहू ताजमहल बनवाएगा। दिसंबर 2011 में उनकी पत्नी निधन हो गया और फैजल ने फरवरी 2012 में अपने वादे के अनुसार अपनी घर के खाली प्लाट पर मिनी ताजमहल का काम शुरू करवा दिया।
कारीगरों को ताजमहल घुमाने ले गए फैसल
इसके लिए वो पहले कारीगरों को ताजमहल घुमा कर लाए ताकि वो डिजाइन को अच्छी तरह समझ सकें। फैजुल हसन कादरी के पास कुछ रुपए तो बचत और प्रोविडेंट फंड के थे, लेकिन बाकी रकम का इंतजाम उन्होंने जमीन और अपनी मरहूम बीवी के गहने बेचकर किया। कुल मिलाकर 13 लाख रुपए इकट्ठे हुए जिनसे 18 महीनो में एक ढांचा खड़ा हो गया। हालांकि फिर पैसे खत्म होने के कारण काम बंद करना पड़ा।

बेगम के बगल में दफ्न होने की इच्छा
फैजुल हसन कादरी ने अपनी बेगम की कब्र ताजमहल में बनवा दी है और लोगों को कह रखा है कि उनके मरने के बाद उन्हें भी अपनी बेगम के बगल में दफना दिया जाए।
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