अपने ही घर में किराएदार बनकर रहने आया लापता राजू, मां ने ऐसे पहचाना...

आपने फिल्मों में ऐसी कहानियां देखी होगी, एक बच्चा बचपन में मेले में खो गया और बड़ा होने पर अपने परिवार से मिल जाता है। वह एक फिल्म होती है, जिसका डायरेक्ट यह फैसला करता है कि कैसे बच्चे को अपने मां-बाप से मिलना है। लेकिन हम आपको एक ऐसी कहानी बताने जा रहे हैं जिसके डायरेक्टर खुद भगवान को आप मान सकते हैं! यह एक ऐसी कहानी है, जब बेटा अपनी मां के घर में किराएदार की तरह रह रहा है! और दोनों एक दूसरे को पहचान नहीं पा रहे हैं।
फ्लैशबैक
2009 में लापता हुआ था शबाना का बेटा
यह कहानी है, बिहार के बेगुसराय जिले के फुलबड़िया थाना के गंज टोले की, शबाना परवीन और उसके बेटे राजू की बिछड़ने व मिलने की कहानी पूरी फिल्मी है। जून 2009 में राजू अपने पड़ोसी के एक बच्चे के मुंडन संस्कार में गया था, जहां से वह अचानक लापता हो गया। काफी खोजबीन के बाद भी उसका पता नही चला, तब जाकर फलवड़िया थान में गुमशुदगी का मामला दर्ज कराया गया। राजू की तलाश करती रही उसकी मां अजमेर से मुबंई के हाजी दरगाह समेत कई मंदिर-मस्जिद में मन्नतें मांगती रही, लेकिन वो नहीं मिला। फिर एक दिन पता चलता है कि पिछले बीस दिनों से उसके घर में रह रहा उसका किराएदार ही उसी का बच्चा राजू है।
ट्विस्ट
बेटे ने मां को नहीं पहचाना
वैसे तो 8 साल का वक्त कुछ ज्यादा नहीं होता है, लेकिन राजू को अपनी मां से बिछड़े बीते 8 सालों के बाद वक्त ने दोनों की सूरत बदल दी थी। परवीन के किराएदार ऑटो चालक मोहम्मद अरमान को राजू बरौनी में भटकते मिला और उसे काम देने की मांग की थी। काम मिलने के बाद वह उसके साथ उसके घर में रहने लगा, अचानक एक दिन परवीन ने चाय पीने के दौरान राजू को देखा तो वह उसे पहचान गई, लेकिन राजू अपनी मां को पहचान नहीं पाया। परवीन ने उसे फोटो एलबम दिखाया और बचपन के दोस्तों को दिखाया तब जाकर उसे याद आया और उसने अपनी मां को पहचान लिया।
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क्या है बिछड़ने और मिलने की बीच की कहानी
अपनी मां को पहचानने के बाद राजू ने अपनी कहानी बताई, जो काफी दुखदायी है। राजू बताता है कि उसे मुंडन के दौरान कुछ लोग जबरन उठाकर ले गए और उसे सुई व दवा देकर रखा जाता था। अपहरण करने वाला उसे अपना बेटा बताता था। राजू धीरे धीरे सबकुछ भूल गया और उसी दंपत्ति को अपना मां-बाप मान लिया। चार साल के बाद जब बाहर खेल रहा था तभी उसे एक दोस्त ने बताया कि उसके मां-बाप झूठ बोलते हैं, उसे कहीं से लाया गया है। इसके बाद राजू वहां से भाग गया। उसे सिर्फ इतना याद था कि उसका घर रेलवे स्टेशन के पास है। तीन साल से वह रेलवे स्टेशन के आस पास गांव को खोजता रहा। घर की तलाश के क्रम में राजू बनारस, इलाहाबाद, भटनी, देवरिया सहित कई स्टेशनों पर रात गुजारी पर घर नहीं मिल रहा था।
पेट की आग बुझाने के लिए काम करने लगा
इस दौरान जब उसे पेट की आग बुझानी होती तो किसी होटल या चाय की दुकान में काम पकड़ लेता और कुछ दिन काम करने के बाद फिर वह घर की तलाश में निकल जाता। एक दिन वह बरौनी पहुंचा और अरमान से मिला और उसके यहां 50 रुपये के रोज पर काम करने लगा। राजू अपने मां के घर ही किराएदार के यहां रह रहा था, लेकिन वहां घर और मोहल्ले की बनावट बदल जाने से पहचान नहीं पा रहा था। मिलने के बाद जब परवीन ने उसे दो दिनों तक फोटो एलबम से दिखाकर उसे याद दिलाया। अब दोनो मिलकर काफी खुश हैं। अपने ही घर में किराएदार बनकर रह रहा 8 वर्ष से लापता बेटे को आखिर मां ने पहचाना।
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