68 साल में 6 पासपोर्ट की मदद से नाप दिए 65 देश, ये है सुधा माहालिंगम की कहानी
महाबलिपुरम से हुई सफर की शुरुआत
सुधा बताती हैं कि जब मैं पहली बार अपने परिवार के साथ महाबलिपुरम गई तो वहां जिप्सियों की गाड़ी में विभिन्न देशों के झंडे देखे। वह झंडे देखकर उन सभी देशों में घूमने की इच्छा जागी और वहीं से यह सफर शुरू हुआ। मैं तो बस इतना चाहती थी कि किसी ग्रुप के साथ जुड़ जाऊं, जिनके साथ मैं अपनी एडवेंचरस लाइफ जी सकूं। जब मैं पत्रकार थी तब अपने ब्यूरोक्रेट पति के साथ यूरोप के कई देशों में घूमी थी लेकिन यह वो सपना नहीं था, जो मैंने बचपन में देखा था। अकेले घूमने का, अकेले जगहों को एक्सप्लोर करने का। पति के साथ होने वाली ये ट्रिप बेहद फॉर्मल होती थी, जहां फाइव स्टार होटल में बुकिंग होती थी, सभी प्लान पहले ही बन जाते थे, ड्राइवर हमेशा कहीं ले जाने के लिए तैयार रहता था और रातें एक आरामदायक कमरे में कट जाती थीं। लेकिन मैं तो प्रकृति की उस अनछुई खूबसूरती को महसूस करना चाहती थी, जिसमें कोई प्लान नहीं होता और कुछ भी पहले से निर्धारित नहीं होता।
मेरे जीवन में अकेले घूमने का मौका पत्रकारिता छोड़ने के बाद लगभग 45 साल की उम्र के आसपास आया। पत्रकारिता छोड़ने के बाद मैंने ऊर्जा विभाग में इंस्टिट्यूट फॉर डिफेंस स्टडीज एंड एनालसिस विभाग के लिए काम करना शुरू किया। इस दौरान मुझे काम के सिलसिले में अकेले अलग-अलग जगहों पर ट्रैवल करने का मौका मिला। यहीं से मेरा ट्रैवलिंग का सफर शुरू हुआ। बिना किसी बुकिंग के, सुदूर इलाकों में, सीमित बजट में हॉस्टल में रहते हुए एडवेंचरस जगहों को खोजने का मजा ही कुछ और है। ट्रैवलिंग किस तरह एक महिला को आत्मनिर्भर बनाता है? इसपर सुधा कहती हैं कि जीवनभर आपको बताया जाता है कि आपको क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए। कैसे कुछ जगहें आपके लिए सुरक्षित हैं और कुछ जगह असुरक्षित हैं। ट्रैवलिंग आपको यही सब रूढ़िवादी सोच और विचारों को तोड़ने में मदद करती है। यह न सिर्फ एक महिला को खुद को खोजने का मौका देती है बल्कि ऐसी यात्राओं उसके अंदर आत्मविश्वास और साहस पैदा करती है। यात्राएं आपको सिखाती हैं कि कैसे मुश्किल की घड़ी में अकेले आपको निपटना है।
कैलाश मानसरोवर यात्रा ने बहुत कुछ सिखाया
1996 में मेरी एक कैलाश मानसरोवर की सोलो ट्रिप थी। यह यात्रा 32 दिनों की थी। मुझे आज भी याद है कि कैसे इस यात्रा के दौरान मेरा 5 साल का छोटा बेटा साड़ी लपेटकर सोता था। इस अनुभव ने मुझे बहुत कुछ सिखाया है। इसने मुझे अकेले कोई भी करने के लिए सीखने में बहुत मदद की है। इस दौरान मैंने अहसास किया कि अब मैं किसी चीज ने नहीं डरती। रात में किसी अजनबी के साथ चलता हो, कश्मीर में फायरिंग करते आतंकवादी, मैंने इन सबका सामना किया है। हांलांकि, मैं ऑस्ट्रेलिया की ग्रेट बैरियल रीफ का अनुभव कभी नहीं भूल सकती जब एक वक्त के लिए लगा कि यह आखिरी यात्रा है। दरअसल, मैं लेडी इलियट आईलैंड पर पर डाइविंग के लिए गई थी। सर्टिफाइड होने के बावजूद मैं कोई प्रफेशनल और अनुभवी डाइवर नहीं थी लेकिन मैं जिन फोटोग्राफर्स के साथ समुद्र की यात्रा कर रही थी वह सभी लंबे समय से यह काम करते आ रहे थे। इंस्ट्रक्टर में बताया कि समुद्रतल 40 फीट गहरा है और तुम्हारे सिलेंडर में 50 मिनट तक के लिए ऑक्सीजन है। इसके खत्म होने से पहले तुम्हें वापस आना होगा। हालांकि, इन सबके दौरान मैंने यह नहीं नोटिस किया कि मेरे बाकी साथियों के पास दो ऑक्सीजन सिलेंडर है मतलब वे 100 मिनट तक समुद्र में रह सकते थे। ऐसे में जब मैं पानी की सरफेस पर आई तो देखा कि आसमान में काले बादल हैं और लहरों का प्रवाह बहुत तेज है। मुझे तैरते रहने में दिक्कत हो रही थी। लगभग एक घंटे तक किसी तरह पानी के अंदर बाहर डुबकी लगाती रही और काफी सारा खारी पानी मुंह में चला गया। इस दौरान मुझे अहसास हुआ कि यह मेरी आखिरी यात्रा है, अब बचने की कोई उम्मीद नहीं है। मैं डूबने वाली हूं। तभी एक नाव आई तब जाकर मेरी जान बची। वह पहला मौका था जब मैं जरा सा डरी थी।
खतरनाक फंगस और जोंक के बीच चलना कमाल का अनुभव था
एक ऐसा ही अनुभव इंडोनेशनिया और मलयेशिया में बीच फैले बोर्नेयो के जंगलों में हुआ था। 2012 में मुझे बोर्नेयो वर्षावन जाने का मौका मिला। इस दौरान जहरीले फंगस, घातक जोंक और जानलेववा चीटियों के बीच होकर गुजरना बेहद डरावना था। इन सबके बावजूद मैं कहूंगी कि वहां का अनुभव कमाल का था। उस जंगल की खूबसूरती आपको अलग ही दुनिया का अहसास कराती है। मैं जहां भी जाती उस जगह के नोट्स जरूर बनाती थी ताकि बाद किसी मैग्जीन या फिर अखबार के लिए लिखा जा सके। कई बार मैंने लिखकर ही अपनी नई ट्रिप के पैसे इकट्ठा किए हैं। मैं अपने साथ कभी चाय-कॉफी या खाना लेकर नहीं जाती क्योंकि मैं हर जगह की लोकल कुजीन टेस्ट करना पसंद करती हूं। लगभग दो दशक तक पर्वत, पहाड़, नदी, समुद्र और ट्रैकिंग हिल्स घूमने के बाद देश विदेश में मेरे बहुत से दोस्त बन गए हैं। इन लोगों के साथ जीने के नए तरीके सीखे हैं। दुनिया की खूबसूरती को महसूस किया है। अब तो बच्चे भी मेरी घूमने की इस आदत के साथ अडजस्ट कर चुके हैं। असल में यही मेरी सबसे बड़ी ताकत है। शुरू में तो मेरे पति को भी थोड़ी परेशानी हुई थी लेकिन जब उन्हें समझ में आया कि घूमना-फिरना ही मेरा पैशन है तो उन्होंने खुद ही मुझे नई-नई जगहों के सुझाव देने शुरू कर दिए। सभी की मदद से ही यह मुमकिन हो पाता है कि मैं साल में 5-6 जगहों पर घूम पाती हूं। मेरी घूमने की लिस्ट में अगली जगह मेडागास्कर है और उसके बाद पेटागोनिया। जो महिलाएं ट्रैवल करना चाहती हैं उन्हें मैं यही संदेश देना चाहती हूं कि हम अपनी सीमाएं खुद बनाते हैं। अगर आप सपने बड़े देखोगे तो उन सभी जगहों पर जा सकते हो जहां जाना चाहते हो। कई बार इसमें आप असफल भी होगी लेकिन अंदर की आग जलती रहनी चाहिए। हार मत मानो और न ही कभी रुको।
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