74 साल की उम्र में ये दादी मां जगा रही हैं शिक्षा की अलख

आमतौर पर 60 वर्ष पार करने वाले इन्सान को चाहे वह पुरुष हो या महिला रिटायर मान लिया जाता है। लेकिन 74 बरस की स्नेहलता हूडा गरीब बच्चों को शिक्षा से जोड़ने के लिए स्कूल चला रही हैं।
ये काम वह पिछले एक दशक से कर रही हैं। स्नेहलता दिल्ली के सरकारी स्कूल में शिक्षक थीं, जहां उन्होंने तकरीबन 40 साल तक अपनी सेवा दी थी। स्नेहलता जिन्हें लोग प्यार से गौरव मां कहते हैं, वह कहती हैं कि सामाजिक कार्य करना उनके डीएनए में है।

200 बच्चे पढ़ते हैं गौरव मां के स्कूल में
गुरुग्राम के सेक्टर 43 में गौरव मां का स्कूल है। जहां दिहाड़ी मजदूर, कूड़ा ढोने वाले, घरेलू काम करने वाले और समाज के अन्य पिछड़े लोगों के बच्चे पढ़ने आते हैं। साल 2005 में स्थापित हुए इस स्कूल में शुरू में 20 बच्चे थे, लेकिन अब ये संख्या 200 के करीब है।
गौरव माँ कहती हैं कि शुरू में बच्चों के माता-पिता के पास खुद जाकर उन्हें स्कूल भेजने को कहती थी। जो बेहद कठिन काम था, क्योंकि लोग बच्चों को स्कूल भेजने से साफ़ मना कर देते थे। क्योंकि उन्हें ये समय की बर्बादी लगता था। लेकिन जैसे-जैसे समय बीता चीजें बदलने लगीं। लोग अब खुद अपने बच्चों को स्कूल भेज रहे हैं।"

पिता से मिली गौरव मां को प्रेरणा
गौरव मां कहती हैं कि उनके समय में लड़कियों की शिक्षा इतनी आसान नहीं थी। लड़कियों को अपने सिर पर पल्लू रखना पड़ता था, साथ ही पुरुषों के सामने बोलने की मनाही हुआ करती थी। वह आगे कहती हैं, “मैं खुद को भाग्यशाली मानती हूँ कि मेरे माता-पिता नई सोच वाले थे।
जिन्होंने मुझे स्कूल भेजा। इसलिए मैं शिक्षक बनी और आज सामाजिक कार्य भी कर रही हूँ।” “जब देश में अंग्रेजों की हुकूमत थी, तो मेरे पिता गरीब और पिछड़े लोगों को घंटों पढ़ाया करते थे। उन्हीं के काम को आज मैं भी आगे लेकर चल रहीं हूँ।”
पेंशन और चंदे से चल रहा है स्कूल
गौरव मां की पेंशन और उनके शुभचिंतकों के पैसे उनका स्कूल चल रहा है। इसके अलावा समय-समय पर बहुत से लोग बच्चों के लिए किताबें और अन्य स्टेशनरी भी दे जाते हैं।
स्कूल चलाने के लिए वित्तीय जरूरतें कैसी पूरी होती हैं, इस सवाल पर वह मुस्कुराते हुए जवाब देती हैं। “सच्ची नियत पर्वत को भी डिगा सकती है। मेरा सच्चा विश्वास है कि इन बच्चों का बेहतर भविष्य ही जवाब है।
जिसे सार्थक बनाना हमारी जिम्मेदारी है।” शिक्षा के अलावा इस स्कूल में बच्चों को ड्रेस, कलम-किताबें और खाना भी मिलता है। गौरव माँ बताती हैं, “ हम स्कूल में बच्चों को ताईक्वांडो, सिलाई और पेंटिंग जैसे अन्य क्रियाकलाप भी कराते हैं। जिससे उन्हें ज्यादा से ज्यादा सीखने को मिलता है। ऐसे मौके हर जगह नहीं मिलते हैं।”
उज्ज्वल भविष्य के इंग्लिश की देती हैं शिक्षा
गौरव माँ बताती हैं कि बच्चों का भविष्य सुनहरा हो इसलिए हम अंग्रेजी माध्यम में उन्हें पढ़ाते हैं। जिससे भविष्य में उन्हें ज्यादा से ज्यादा मौके मिले हैं।
साथ ही उच्च शिक्षा के लिए वह बड़ी परीक्षाओं में अच्छा कर सकें। इसके अलावा गौरव माँ उन शिक्षकों का अपने स्कूल में स्वागत करती हैं, जो बतौर वालंटियर अपना सहयोग इन गरीब बच्चों के भविष्य को बेहतर बनाने में दे सकते हैं।
स्कूल में बच्चों को जीवन के अनुशासन की भी शिक्षा दी जाती है, जिसमें हाथ मिलाने के तरीके से लेकर खाना खाने और समूह में बात करने तक के तौर तरीके भी सिखाये जाते हैं। गौरव माँ इस नेक काम को करने के लिए रबिन्द्रनाथ टैगोर के शांतिनिकेतन स्कूल से प्रेरणा लेती है। साथ ही उन्हें आशा है कि गौरव निकेतन से पढ़कर निकलने वाले बच्चे भविष्य में देश के नामी विश्वविद्यालय और कॉलेज में पढ़ेंगे।
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