नागा साधु, यह नाम सुनते ही आपके दिमाग में एक ऐसे व्यक्ति की छवि उभरती है, जो निर्वस्त्र है, पूरे शरीर पर भभूत लगी, शिखर सी लंबी जटाएं और पूरे शरीर पर कराल-कपाल के साथ अलग-अलग मालाएं लिपटी हैं। प्राय: यह स्वरूप अधिकतम लोगों को डराने के लिए काफी है, लेकिन हम इस स्वरूप के पीछे के कारण को नहीं समझ पाते हैं। आइयें, समझते हैं नागाओं का रहस्यमयी जीवन…
नागा साधु कौन होते हैं
नागाओं का इतिहास काफी पुराना है. नागा साधु हिंदू धर्म के सन्यासी संप्रदाय के ऐसे साधु हैं, जो कठोर तपस्या और संयम का पालन करते हैं। ये साधु विशेष रूप से भगवान शिव के उपासक होते हैं और अपने जीवन को सांसारिक सुखों और मोह-माया से दूर रखते हैं।
क्या है नागा बनने की प्रक्रिया
दीक्षा ग्रहण, सन्यास धारण एवं कठोर ब्रह्मचर्य का पालन करना नागा बनने की प्रक्रिया के कुछ अंश मात्र हैं। नागा साधु कुंभ जैसे बड़े आयोजनों में एकजुट होते हैं और ऐसे बड़े आयोजन में ही नए विरक्त नागा बनने की कठोर प्रक्रिया को अपनाते हैं।
क्या है बिजवान
नागा साधुओं का जीवन कठोर परिश्रमों से भरा होता है। नागा बनने के क्रम में एक वैरागी को जीवित रहते अपना (पिंडदान) बिजवान स्वयं करना होता है। एक नागा ऐसा समाज के सभी रीति-रिवाज और जीवन मृत्यु के मोह से मुक्ति के लिए करता है।
नागाओं का शाही स्नान
आपने अक्सर सुना होगा कि कुंभ की शुरुआत शाही स्नान के साथ होती है, इस बार के महाकुंभ का शाही स्नान 14 जनवरी को होना तय है। शाही स्नान हिंदू धर्म के सबसे बड़े धार्मिक आयोजनों में से एक पवित्र अनुष्ठान है। इसे अत्यंत शुभ माना जाता है और इसमें बड़ी संख्या में साधु-संत, विशेषकर नागा साधु और श्रद्धालु पवित्र नदी में स्नान करते हैं। कई बार शाही स्नान को लेकर अलग-अलग अखाड़ों में विरोधाभास की स्थिति भी बनी रहती है।