कुम्भ मेला: कहाँ-कहाँ और कब-कब लगता है?

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कुम्भ मेला भारत का सबसे बड़ा धार्मिक और सांस्कृतिक पर्व है। यह न केवल आस्था और विश्वास का प्रतीक है, बल्कि विश्वभर में भारत की आध्यात्मिक धरोहर का अद्भुत उदाहरण भी है। कुम्भ मेला हर 12 साल में चार पवित्र स्थानों पर आयोजित होता है, जो हिंदू धर्म के प्रमुख तीर्थ स्थल हैं। इस आयोजन में लाखों-करोड़ों श्रद्धालु और साधु-संत शामिल होते हैं। आइए, जानते हैं कि कुम्भ मेला कहाँ-कहाँ और कब-कब लगता है, साथ ही इसके आयोजन का महत्व।

कुम्भ मेला के चार प्रमुख स्थान

कुम्भ मेले का आयोजन चार अलग-अलग स्थानों पर होता है। इन स्थानों को हिंदू धर्म में विशेष पवित्र माना गया है।

  1. प्रयागराज (उत्तर प्रदेश)
    प्रयागराज को तीर्थराज कहा जाता है। यहाँ गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती नदियों का संगम होता है, जिसे त्रिवेणी संगम कहा जाता है। मान्यता है कि यहाँ स्नान करने से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
  2. हरिद्वार (उत्तराखंड)
    हरिद्वार में गंगा नदी हिमालय से मैदानों में उतरती है। यहाँ हर की पौड़ी पर कुम्भ मेले का आयोजन होता है। हरिद्वार को गंगा का द्वार कहा जाता है, जहाँ हजारों श्रद्धालु गंगा स्नान के लिए जुटते हैं।
  3. उज्जैन (मध्य प्रदेश)
    उज्जैन क्षिप्रा नदी के किनारे स्थित है। यह महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का शहर है। यहाँ सिंह राशि में गुरु के प्रवेश के समय सिंहस्थ कुम्भ मेला आयोजित होता है। इसे मोक्षदायिनी नगरी भी कहा जाता है।
  4. नाशिक (महाराष्ट्र)
    नाशिक गोदावरी नदी के किनारे स्थित है। यह भगवान राम के वनवास काल से जुड़ा हुआ स्थान है। यहाँ हर 12 साल में कुम्भ मेले का आयोजन होता है।

2025 का महाकुम्भ: अगला महाकुम्भ मेला 2025 में प्रयागराज में लगेगा। लाखों श्रद्धालु यहाँ पवित्र स्नान और पूजा करने आएंगे।

कुम्भ मेले का आयोजन: खगोलीय गणना

कुम्भ मेला खगोलीय गणनाओं के आधार पर आयोजित किया जाता है।

  • जब सूर्य और चंद्रमा मकर राशि में होते हैं और बृहस्पति कुम्भ राशि में होता है, तब कुम्भ मेले का आयोजन होता है।
  • इन खगोलीय घटनाओं का निर्धारण वैदिक ज्योतिषियों द्वारा किया जाता है।
  • हर 12 साल में एक बार चारों स्थानों पर बारी-बारी से कुम्भ मेला लगता है।
  • कुम्भ मेले का चक्र और आयोजन तिथियाँ

कुम्भ मेले का आयोजन चारों स्थानों पर निम्न प्रकार से होता है:

प्रयागराज

  • हर 12 साल में “कुम्भ” मेला।
  • हर 6 साल में “अर्धकुम्भ” मेला।
  • सबसे बड़ा आयोजन “महाकुम्भ” हर 144 साल में होता है।
  • अगला महाकुम्भ 2025 में होगा।

हरिद्वार

  • हर 12 साल में गंगा नदी के किनारे कुम्भ मेले का आयोजन।
  • यहाँ का अगला कुम्भ 2030 में होगा।

उज्जैन

  • जब गुरु सिंह राशि में प्रवेश करता है, तब यहाँ सिंहस्थ कुम्भ होता है।
  • अगला सिंहस्थ कुम्भ 2028 में होगा।

नाशिक

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  • जब गुरु सिंह राशि में होता है, तब गोदावरी नदी के किनारे कुम्भ मेला लगता है।
  • अगला आयोजन 2033 में होगा।
  • कुम्भ मेला का धार्मिक महत्व
  • कुम्भ मेला का उल्लेख हिंदू धर्म के प्राचीन ग्रंथों में मिलता है। यह आयोजन समुद्र मंथन से जुड़ा है। कथा के अनुसार, जब देवताओं और असुरों ने अमृत कलश के लिए समुद्र मंथन किया, तब अमृत की कुछ बूंदें इन चार स्थानों पर गिरी थीं। इसलिए इन स्थानों को विशेष पवित्र माना गया।

कुम्भ मेले में पवित्र स्नान का महत्व है। मान्यता है कि कुम्भ मेले में स्नान करने से पापों का नाश होता है और व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

कुम्भ मेले की विशेषताएँ

  • धार्मिक अनुष्ठान: मेले के दौरान विभिन्न धार्मिक क्रियाएँ की जाती हैं।
  • साधु-संतों का जमावड़ा: देशभर से नागा साधु, अखाड़े और अन्य संत यहाँ एकत्रित होते हैं।
  • संस्कृति का उत्सव: मेले में विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम और आध्यात्मिक प्रवचन भी होते हैं।
  • स्नान पर्व: मेले के दौरान कई विशेष स्नान पर्व होते हैं, जिनमें लाखों श्रद्धालु हिस्सा लेते हैं।

कुम्भ मेला और UNESCO

कुम्भ मेले को 2017 में यूनेस्को ने “मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर” की सूची में शामिल किया। यह भारत की सांस्कृतिक विविधता और धार्मिक सहिष्णुता का प्रतीक है।

कुम्भ मेला केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, यह भारत की आध्यात्मिकता और संस्कृति का महापर्व है। यह विश्वभर के लोगों को भारतीय सभ्यता और परंपराओं से जोड़ता है। श्रद्धालु इसे आस्था, मोक्ष और आत्मिक शांति का अवसर मानते हैं। अगली बार कुम्भ मेला जरूर देखें और इसकी भव्यता का अनुभव करें।

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