
महाकुंभ में होने वाला शाही स्नान हिंदुओं के सबसे बड़े धार्मिक आयोजनों में से एक पवित्र अनुष्ठान है। इसे अत्यंत शुभ माना जाता है और इसमें बड़ी संख्या में साधु-संत, विशेषकर नागा साधु और श्रद्धालु पवित्र संगम में डुबकी लगाते हैं। कुंभ के इस शुभ मुहूर्त में स्नान करने को लेकर साधुओं में कई वर्षों से विवाद की स्थिति बनी रही है। बात उस वक्त की जब शाही स्नान को लेकर सैकड़ों साधु और पुलिसकर्मी हताहत हो गए थे और कई लोगों की जान भी चली गई थी।
1998 के कुंभ का सच

साल 1998 हरिद्वार में कुंभ का आयोजन हुआ था। हरिद्वार के कुंभ में शुभ मुहूर्त में स्नान करने को लेकर भड़की हिंसा में जनमानस का भारी नुकसान हुआ। स्नान के दौरान दो प्रमुख अखाड़े निरंजनी अखाड़ा और जूना अखाड़ा, इन दोनों की पालकियां आपस में टकरा गईं थी, जिसके बाद इस विवाद ने तूल पकड़ ली थी। घाट पर खूनी संघर्ष इस कदर बढ़ गया था की सैकड़ों साधु-महात्मा और पुलिसकर्मी इस भगदड़ में घायल हो गए थे। वहीं अखाड़ों के लिए बनाई गई सैकड़ों छावनियों को आग के हवाले कर दिया गया। पूरे आयोजन में लूट खसोट मच गई, जिससे की लाखों की क्षति पहुंची।
लगानी पड़ी थी पैरामिलिट्री फोर्स
Haridwar के कुंभ में निरंजनी और जूना अखाड़ा के भारी बल के बीच हिंसा इस कदर भड़क गई थी, जिसके बाद मेले में स्थानीय प्रशासन होने के बावजूद भी शांति व्यवस्था कायम करने के लिए पैरामिलिट्री फोर्स लगानी पड़ गई थी। दोनों छावनियों का सामान अलग-अलग लोगों द्वारा लूट लिया गया। काफी मशक्कत के बाद इस भगदड़ को शांत किया जा सका था।
Mahakumbh-2025 में भी बना हुआ है विरोधाभास

देश का सबसे बड़ा अखाड़ा निरंजनी अखाड़ा प्रयागराज और हरिद्वार के कुंभ में प्रथम शाही स्नान करता आया है। बावजूद इन जगहों पर पूर्व में आयोजन होने पर पहले शाही स्नान करने के लिए अखाड़ों में विरोधाभास की स्थिति बनी रही है। इस बार के महाकुंभ में भी पहले स्नान करने के लिए अखाड़ों में सुगबुगाहट चल रही है। अखाड़ों का मानना है कि यदि निरंजनी अखाड़ा स्नान करने के लिए जाता है, तो कोई दूसरा अखाड़ा या उसका साधु उस वक्त स्नान नहीं कर सकता है। ऐसे में आपसी वार्तालाप से यह तय होगा कि प्रयागराज के शाही स्नान के दौरान प्रथम स्नान कौन सा अखाड़ा कर रहा है।