
कुंभ मेला दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन माना जाता है, जहां करोड़ों श्रद्धालु पवित्र स्नान के लिए एकत्र होते हैं। लेकिन यह आयोजन कई बार दर्दनाक हादसों का गवाह भी बना है। 1954 से लेकर 2025 तक कुंभ मेले में कई बार भगदड़ मची, जिसमें हजारों लोगों की जान गई।
1954: आज़ादी के बाद का सबसे बड़ा हादसा

1954 में आज़ादी के बाद पहला कुंभ मेला प्रयागराज (तब इलाहाबाद) में आयोजित हुआ। 3 फरवरी को मौनी अमावस्या स्नान के दौरान भीड़ बेकाबू हो गई और भगदड़ मच गई। इस हादसे में करीब 800 श्रद्धालु कुचले गए या नदी में डूबकर मारे गए।
1986: हरिद्वार में 200 श्रद्धालुओं की मौत

1986 के हरिद्वार कुंभ मेले में भीषण भगदड़ हुई, जिसमें कम से कम 200 लोगों की जान चली गई। घटना तब हुई जब यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह और कई अन्य नेता पहुंचे, जिससे सुरक्षा कड़ी कर दी गई। आम श्रद्धालु नदी तक नहीं पहुंच पाए और भीड़ बेकाबू हो गई।
2003: नासिक में 39 श्रद्धालु मरे

2003 में नासिक कुंभ मेले में गोदावरी नदी में स्नान के दौरान 39 लोगों की मौत हो गई और 100 से अधिक घायल हो गए।
2013: इलाहाबाद रेलवे स्टेशन पर भगदड़

10 फरवरी 2013 को प्रयागराज रेलवे स्टेशन पर भारी भीड़ के कारण एक फुटब्रिज ढह गया, जिससे अफरा-तफरी मच गई। इस हादसे में 42 लोगों की मौत हो गई और 45 अन्य घायल हो गए।
2025: प्रयागराज महाकुंभ में फिर मची भगदड़

28 जनवरी 2025 को मौनी अमावस्या स्नान के दौरान प्रयागराज के संगम तट पर रात 2 बजे भगदड़ मच गई, जिसमें कम से कम 17 श्रद्धालु मारे गए और कई घायल हो गए।
ऐसे हादसों को रोकने के लिए क्या किया जाए?
इन घटनाओं से सबक लेते हुए प्रशासन को और कड़े सुरक्षा उपाय करने चाहिए, जैसे—
- भीड़ नियंत्रण के लिए बेहतर मैनेजमेंट
- हेल्पलाइन और इमरजेंसी मेडिकल सुविधाएं
- श्रद्धालुओं को अन्य घाटों पर स्नान के लिए प्रेरित करना
कुंभ मेले में लाखों लोगों की आस्था जुड़ी होती है, लेकिन सुरक्षा चूक से बार-बार जानलेवा हादसे होते रहे हैं। क्या इस बार सबक लिया जाएगा?