जानिए आखिर क्यों बेगूसराय सीट से नहीं लड़ना चाहते गिरिराज सिंह

पहले और दूसरे चरण के नामांकन प्रक्रिया पूरा होने के बाद इस समय चुनावी प्रचार उफान पर पहुंच गया है। देश में इस समय सबसे चर्चित सीटों में बिहार की बेगूसराय लोकसभा सीट है। बिहार का लेनिनग्राद कहीं जाने वाली इस सीट पर इस समय सियासी संग्राम बेहद दिलचस्प हो गया है। अपने बड़बोलेपन की वजह से मशहूर और बात-बात में पाकिस्तान भेजने की बात कहने वाले बीजेपी के फायरब्रांड नेता गिरिराज सिंह को उतारने जा रही है, तो वहीं सीपीआई ने जेएनयू के अध्यक्ष रहे कन्हैया कुमार को टिकट देकर मैदान में उतारा है।
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वहीं, महागठबंधन ने इस बार आरजेडी के तनवीर हसन को दोबारा टिकट दिया है। इस सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला होता देख बीजेपी उम्मीदवार गिरिराज सिंह ने सीट से चुनाव न लड़ने का आग्रह किया है। वह पिछले कई दिनों से दिल्ली में ही डेरा डाले हुए हैं और मीडिया से बार-बार वह यही कह रहे हैं कि उनके स्वाभिमान के साथ खिलवाड़ किया है। खबर यह आ रही है कि वह कन्हैया कुमार के सामने चुनाव नहीं लड़ना चाहते हैं। इसकी जगह वह पार्टी नेतृत्व से नवादा या अररिया से टिकट दिए जाने की मांग रहे हैं। गिरिराज सिंह इस समय नवादा से सांसद भी है। इस बार यह सीट लोजपा के हिस्से में चली गई है। इसके बाद अब गिरिराज सिंह अचानक नाराज हो गए है।
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बेगूसराय का यह है जातीय समीकरण
देशभर में चर्चा का विषय बनी बेगूसराय लोकसभा सीट पर भूमिहार मतदाताओं की संख्या काफी है। यहां पर करीब पौने पांच लाख भूमिहार मतदाता है। पिछले लोकसभा चुनाव में इसका फायदा भोला सिंह को मिला था। भूमिहार मतदाताओं की संख्या अधिक होता देख पिछली बार गिरिराज सिंह इस सीट से टिकट मांग रहे थे, लेकिन पार्टी ने उन्हें नवादा से टिकट दिया था। इस बार उन्हें बेगूसराय से टिकट दिया गया है, लेकिन इस बार यहां के समीकरण दूसरे हैं। यहां पर एक नहीं बल्कि दो भूमिहार नेता आमने-सामने हैं इसमें एक तरफ गिरिराज सिंह और दूसरी तरफ कन्हैया कुमार है। अब वोट का बंटवारा होता देख गिरिराज सिंह इस सीट को बदलना चाह रहे हैं। इस सीट पर करीब पौने लाख भूमिहार मतदाताओं के अलावा यहां पर 2.5 लाख मुसलमान, कुशवाहा और कुर्मी के करीब दो लाख और यादव मतदाताओं की संख्या करीब 1.5 लाख है। ऐसे में कुछ वोट भूमिहार के युवा नेता कन्हैया कुमार को जाएगा और अन्य जातियों का भी वोट उन्हें मिलेगा। ऐसे में यहां के बदलते समीकरणों को देकर गिरिराज सिंह दूर भाग रहे हैं। जातीय समीकरण के लिहाज से देखें तो भूमिहार, ब्राह्मण, कायस्थ और कुर्मी वोटों के बल पर गिरिराज सिंह की स्थिति इस सीट पर मजबूत है। लेकिन, कन्हैया कुमार की वजह से उन्हें लालगढ़ में कमल मुरझाने का डर लग रहा है।
बेगूसराय का यह रहा है समीकरण
कभी बेगूसराय जिले में दो लोकसभा सीट हुआ करती थी - बेगूसराय व बलिया। नए परिसीमन के बाद बलिया लोकसभा क्षेत्र को समाप्त कर दिया गया। बलिया में शुरू से कम्युनिस्टों का दबदबा था। यह धरती वामपंथियों के लिए उर्वर रही है। इसे पूरे वामपंथी आंदोलन के कर्ताधर्ता लोगों में भूमिहार जाति के नेता सबसे आगे थे। लंबे समय तक भूमिहारों ने सीपीआई का समर्थन किया है। यहां से भूमिहारों के बड़े नेता में सूरजनंदन सिंह, शत्रुध्न प्रसाद सिंह जैसे वामपंथी नेता सांसद रहे हैं। वहीं, अगर बात बेगूसराय की जाए तो यहां से पहले सांसद 1952 में कांग्रेस के मथुरा मिश्र बने थे। यहां से श्यामनंदन मिश्र दो बार और कृष्णा शाही तीन बार सांसद रहीं। 1967 के आम चुनाव में सीपीआई के योगेंद्र शर्मा ने जीत दर्ज की थी। वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव में एनडीए की ओर से जेडी(यू) के राजीव रंजन सिंह, वर्ष 2009 में डॉक्टर मोनजीर हसन और वर्ष 2014 में बीजेपी के भोला सिंह ने जीत दर्ज की थी। राजीव रंजन और भोला सिंह दोनों ही भूमिहार थे। वर्ष 1991 में पूरे राज्य से कांग्रेस का सफाया हो गया, लेकिन बेगूसराय से कृष्णा शाही एकमात्र कांग्रेसी सांसद रही। वर्ष 1989 के कांग्रेसी विरोधी लहर में लिलत विजय सिंह जनता दल से सांसद चुने गए। वर्ष 1996 के चुनाव में सीपीआई के रमेन्द्र कुमार चुनाव जीते। वर्ष 1998 व 1999 में राजद के सहयोग से राजो सिंह कांग्रेस पार्टी से चुनाव लड़े व सांसद चुने गए। बेगूसराय जिले में ही एक गांव पड़ता है बिहट जो कि वामपंथियों का गढ़ रहा है। इस गांव से चंद्रशेखर सिंह, सीताराम सिंह जैसे कम्युनिस्ट नेता निकले। कांग्रेस नेता रामचरितर सिंह व कम्युनिस्ट नेता चंद्रशेखर सिंह रिश्ते में पिता-पुत्र थे।
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वोट के साथ नोट मांग रहे कन्हैया कुमार
सीपीआई से उम्मीदवार बने कन्हैया कुमार बेगूसराय की जनता से वोट मांगने के साथ ही साथ नोट मांग रहे हैं। कन्हैया कुमार का यह अपने आप में अद्भूत तरीके का प्रचार-प्रसार है। वह जनता से समर्थन मांगने के साथ ही साथ नोट भी मांग रहे हैं ताकि चुनाव-प्रचार बेहतर तरीके से किया जा सकें। बीजेपी उम्मीदवार गिरिराज सिंह के सामने होने की वजह से वह चुनाव-प्रचार को बेहतर ढ़ंग से करने के लिए जनता से मदद मांग रहे हैं। उन्होंने 70 लाख रुपये का टारगेट रखा है ताकि इतने पैसे से बेहतर ढ़ंग से प्रचार किया जा सकें। कन्हैया कुमार अपने भाषणों में लोगों से अपील भी कर रहे हैं कि इस बार झूठ और लूट की सरकार को हराना है, उनकी लड़ाई शोषित और वंचितों के लिए है और इस लड़ाई में उनको सब का साथ चाहिए। वह जनता से फेसबुक और ट्विटर के माध्यम से भी धनराशि इकठ्ठा करने में जुटे हुए हैं। पिछले दिनों ट्वीट कर जनता से कहा, "जैसे एक-एक बूँद से घड़ा भरता है, एक-एक ईंट से घर बनता है, वैसे ही आपके एक-एक रुपये के सहयोग से शोषित और वंचित जनता की आवाज संसद तक पहुँचाने की इस साझी लड़ाई को लड़ा जाएगा। देश की जनता जीतेगी,लूट और झूठ का गठजोड़ हारेगा। सहयोग करने के लिए यह लिंक देखें।" बताया जा रहा है कि अभी तक कन्हैया कुमार की मदद के तौर पर 5,00,000 से अधिक सहायता राशि मिल चुकी है।
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