संभल लोकसभा सीट: सपा का गढ़ मानी जाती है यह सीट

यूपी की आठवीं लोकसभा सीट संभल समाजवादी पार्टी का गढ़ मानी जाती है। 1977 से आस्तित्व में आई सीट पर यूपी की सभी बड़ी पार्टियों का कब्जा रहा है। लेकिन इस सीट पर सबसे ज्यादा समय तक सपा का कब्जा रहा है। सपा के संरक्षक मुलायम सिंह यादव यहां से सांसद रहे हैं। मुलायम सिंह यादव के अलावा इस सीट से राम गोपाल यादव भी विजयी रहे हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में इस सीट से सपा प्रत्याशी बहुत ही कम अंतर से हारे थे। महज 5 हजार वोटों से बीजेपी के सत्यपाल सिंह सैनी जीते थे।
मिशन 2019 में इस सीट से सपा एक बार फिर से अपने कब्जे में लेने का प्रयास करेंगी। मुस्लिम बाहुल्य इस लोकसभा सीट पर उनके ही वोट प्रत्याशी का भविष्य तय करते हैं। इनके वोटों के गणित से यहां पर बार दिग्गज प्रत्याशियों के समीकरण बदल गए हैं। इसका अंदाजा 16वीं लोकसभा के नतीजों से लगाया जा सकता है। कांटे की टक्कर में यहां से सत्यपाल सिंह सैनी बाजी मार ले गए। मुस्लिम मतदाताओं का वोट बंटने की वजह से बाजी बीजेपी के हिस्से में आ गई। समाजवादी पार्टी के शफीक उर रहमान बर्क दूसरे और बहुजन समाज पार्टी के अकील उर रहमान खान तीसरे नंबर पर रहे। राजनीतिक विशेषज्ञों की माने तो सपा और बसपा में यहां मुस्लिम वोट बंट गए थे जिसका फायदा बीजेपी को मिला था।
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संभल लोकसभा सीट का इतिहास
पांच विधानसभा वाली यह सीट 1977 में अस्तित्व में आई थी। इस सीट पर पहली बार लोकसभा चुनाव इमजरजेंसी के बाद हुआ था। यहां से पहली बार में चौधरी चरण सिंह की पार्टी के प्रत्याशी जीतकर लोकसभा पहुंचें थे। इसके बाद हुए लोकसभा चुनाव में इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा हो गया। 1984 में इंदिरा गांधी की मौत के बाद आई कांग्रेस की लहर में यहां पार्टी के प्रत्याशी जीतकर संसद पहुंचें। इसके बाद 1989, 1991 में इस सीट पर जनता दल का कब्जा रहा। 1996 में यहां से बाहुबली डीपी यादव ने बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीतकर संसद पहुंचें। डीपी यादव के बाद इस सीट से चुनाव लड़ने के लिए समाजवादी पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव चुनाव लड़ने के लिए आ गए। इसके बाद संभल लोकसभा सीट वीवीआईपी सीटों में गिनी जाने लगी। इस सीट से मुलायम सिंह यादव ने 1998 में चुनाव जीता। इसके बाद वे यहां से 1999 के लोकसभा चुनाव में भी जीतकर संसद पहुंचें। मुलायम सिंह यादव के यह सीट छोड़ने के बाद उनके भाई राम गोपाल यादव 2004 के लोकसभा चुनाव में इस सीट से चुनाव लड़ने के लिए आ गए। वे यहां से जीतकर संसद भी पहुंचें। 2009 के लोकसभा चुनाव में यहां से बहुजन समाज पार्टी के प्रत्यााशी जीत हासिल की। 2014 के लोकसभा चुनाव में इस सीट से भाजपा प्रत्याशी सत्यपाल सिंह सैनी जीतें। उन्होंने समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी को महज 5000 वोटों से हराकर चुनाव जीता।
सीट का समीकरण
यूपी की आठवीं लोकसभा सीट की गिनती मुस्लिम बाहुल्य वाली लोकसभा सीटों में होती है। यह लोकसभा सीट रामपुर, अमरोहा और मुरादाबाद जैसी लोकसभा सीटों से सटी हुई। मुस्लिम मतदाताओं की संख्या अधिक होने के कारण यह सीट भाजपा प्रत्याशियों के लिए बहुत ही कठिन मानी जाती है। इस लोकसभा सीट पर 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान कुल 16 लाख से अधिक वोटर थे। इनमें से करीब नौ लाख पुरुष और 7 लाख महिला थी। करीब 62.4 फीसदी मतदाताओं ने प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला किया। इस सीट पर करीब 40 फीसदी हिंदू और 50 फीसदी से अधिक मुस्लिम आबादी है।
इस लोकसभा सीट में 5 विधानसभा सीटें आती हैं, इनमें कुन्दरकी, बिलारी, चंदौसी, असमोली और संभल की सीटें शामिल हैं। यहां पर सपा के वर्चस्व का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 2017 के विधानसभा चुनाव में मोदी लहर होने के बाद भी सिर्फ चंदौसी विधानसभा ही भारतीय जनता पार्टी के खाते में गई थी। इसके अलावा अन्य सभी सीटों पर समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी विजयी रहे थे।
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सांसद सत्यपाल सैनी का लेखा-जोखा
संभल लोकसभा सीट से सांसद सत्यपाल सिंह सैनी बीजेपी में 2004 के लोकसभा चुनाव के दौरान बीजेपी में शामिल हुए थे। सत्यपाल सिंह सैनी पिछड़े वर्ग के बड़े नेता माने जाते हैं। वे अपने यहां के सैनी समाज में काफी लोकप्रिय है। 2014 के चुनाव में वह अगड़े-पिछड़ी जातियों को साथ लाने में कामयाब हुए थे, यही कारण रहा कि मुस्लिम बहुल इलाके में भी जीत कर आए। पहली बार सांसद चुने गए सत्यपाल सिंह ने 16वीं लोकसभा में कुल 67 बहसों में भाग लिया। पांच सालों में उन्होंने कुल 179 सवाल पूछे। सत्यपाल सिंह सैनी ने सरकार की तरफ से कुल तीन बिल पेश किए और 3 प्राइवेट मेंबर बिल भी संसद में रखे।
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ये बहू संभालेंगी ससुर की विरासत
सपा की विरासत वाली लोकसभा सीटों में संभल की भी सीट आती है। कन्नौज, फिरोजाबाद, एटा, मैनपुरी, बदायूं की तरह ही यह भी सीट मानी जाती है। इस सीट पर अब तक सबसे ज्यादा बार समाजवादी पार्टी ही जीती है। समाजवादी पार्टी इस बार यहां से अपर्णा यादव को लड़ाने की तैयारी कर रही है ताकि यह सीट आसानी से जीती जा सके। गठबंधन के बाद सपा के हिस्से में सीट आने के बाद अखिलेश यादव की अपर्णा यादव से नजदीकी बढ़ने लगी है। सपा की पारंपरिक सीट रही सीट से मुलायम सिंह यादव दो बार सांसद रह चुके हैं। मुलायम सिंह यादव ने 1998 और 1999 में यहां से चुनाव जीता था। सपा में नंबर 2 की हैसियत रखने वाले रामगोपाल यादव भी यहां से सांसद रह चुके हैं। ऐसे में यह उम्मीद जताई जा रही इस बार पार्टी अपने घर के किसी व्यक्ति को इस सीट से उतार सकती है। मोदी लहर होने के बाद भी पिछले लोकसभा चुनाव में यहां से भाजपा प्रत्याशी को जीतने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा था। इस सीट से वर्तमान बीजेपी सांसद सत्यपाल सिंह सैनी को 3 लाख 60 हजार वोट मिले जबकि उनके निकटतम सपा प्रतयाशी को 3 लाख 55 हजार मत मिले थे। जीत-हार का अंतर मात्र महज 5 हजार वोटों का रहा था। दूसरे नंबर पर सपा के शफीकियूर रहमान रहे सपा के कद्दावर नेता आजम खां के बहुत ही करीबी नेता माने जाते हैं। आजम खां ने ही उन्हें पिछले लोकसभा चुनाव में उतारा था। अब सपा-बसपा के बीच में गठबंधन होने के बाद इस सीट पर सपा प्रत्याशी के जीतने की संभावना अधिक बढ़ गई हैं। ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि अगर सपा के परिवार का कोई सदस्य नहीं उतरता है, तो एक बार फिर से इस लोकसभा सीट से आजम खां अपने खास को टिकट दिलाने की पूरी कोशिश करेंगे।
2014 लोकसभा चुनाव के नतीजे
सत्यपाल सैनी, भारतीय जनता पार्टी, कुल वोट मिले 360,242, 34.1%
शफीक उर रहमान बर्क, समाजवादी पार्टी, कुल वोट मिले 355,068, 33.6%
अकील उर रहमान खान, बहुजन समाज पार्टी, कुल वोट मिले 252,640, 23.9%
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