लोकसभा चुनाव 2019: सहारनपुर सीट पर होगा कड़ा मुकाबला, आसान नहीं होगी किसी की राह

लोकसभा चुनाव 2019 की भले ही अभी रणभेरी न बजी हो, लेकिन राजनीतिक पार्टियों ने मिशन 2019 शुरू कर दिया है। मिशन 2019 में सभी पार्टियों के लिए सबसे अहम उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटें हैं क्योंकि सत्ता का रास्ता यूपी से ही होकर गुजरता है। ऐसे में सभी पार्टियों की नजर यूपी में अधिक से अधिक सीटों को जीतने की है। यहां का रण जीतने के लिए सभी पार्टियों ने बिसात भी बिछा दी गई है। सत्ताधारी बीजेपी पार्टी जहां फिर अपनी पुरानी लय को पाने के लिए प्रयासरत है, तो वहीं सपा और बसपा ने जीत के लिए गठबंधन कर लिया है।
कांग्रेस पार्टी ने भी यूपी को फतेह करने के लिए दो बड़े नेताओं को यहां की कमान सौंप दी है। प्रियंका गांधी को पूर्वी यूपी की तो राहुल गांधी के खास ज्योतिरादित्य सिंधिया को पश्चिमी यूपी फतेह करने के लिए प्रभारी बनाया है। यूपी में आखिर ऐसा क्या खास है, जो यूपी को सभी जीतना चाहते हैं? आखिरकार इस बार यहां की हवा किस और चल रही है? यहां पर अब तक लोकसभा चुनावों में किन पार्टियों का सबसे अधिक दबदबा रहा, इन सभी सवालों का जवाब आपको इंडिया वेव की विशेष सीरीज में पढ़ने को मिलेगा। इसी कड़ी में आज हम आपको ले चलते हैं यूपी की नंबर वन लोकसभा सीट सहारनपुर।
सहारनपुर लोकसभा सीट का गणित
इस्लाम के सबसे बड़े शिक्षा केंद्रों में से एक देवबन्द दारूल उलूम से लेकर मां शाकुम्बरी देवी के स्थल के रूप में सहारनपुर की पहचान है। देवबंदी की भूमि, गंगा-जमुनी तहजीब को संवारे सहारनपुर का इलाका काष्ठ कला के लिए विश्व में प्रसिद्ध है। 2017 में दंगों को लेकर देशभर में एक बार फिर से चर्चा में आने वाला सहरानपुर राजनीतिक रूप से हमेशा ही चर्चा में रहता है। हरियाणा, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश की सीमाओं से सटा यूपी का पश्चिमी जिला सहारनपुर की गणित अलग ही है। सहारनपुर लोकसभा सीट के नतीजे, राजनीतिक समीकरण और जातीय समीकरण बिल्कुल ही अलग रहते हैं। यहां पर पिछली बार बीजेपी से राघव लखनपाल शर्मा सांसद बनें। इस सीट पर सुन्दर लाल से लेकर रशीद मसूद तक का दबदबा रहा है। ये दोनों ही अब तक पांच-पांच बार लोकसभा पहुंचे हैं। यहां पर पहली बार 1996 में निकिल सिंह बीजेपी से सांसद बनें। इसके बाद फिर से 1998 में वे सांसद बनें। जातीय और राजनीतिक समीकरण के आधार पर देखा जाए तो यहां पर बसपा व कांग्रेस का दबदबा रहा है। मायावती यहां से विधायक चुनकर गईं और मुख्यमंत्री तक बनीं हैं। अक्तूबर 1996 में हरौड़ा (अब सहारनपुर देहात ) विधानसभा सीट से विधायक बनीं। यहां से 1996 में पहली बार मायावती जीतकर विधानसभा गईं और छह महीने बाद उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं। इसके बाद 2002 के विधानसभा चुनाव में वे यहां से फिर विधायक बनीं। ऐसे में बीजेपी के साथ ही इस बार यहां पर महागठबंधन को कम नहीं आंका जाना चाहिए।
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कमलनाथ के भतीजे हैं लखनपाल शर्मा
पिता निर्भयपाल शर्मा की विरासत को संभालने वाले राघव लखनपाल शर्मा सहारनपुर नगर से तीन बार विधायक रहे हैं। उनके लगातार विधायक चुनें जाने का उन्हें फायदा मिला और बीजेपी ने 2014 के लोकसभा चुनाव में उतारा। मोदी लहर का उन्हें फायदा मिला और वे कांग्रेस प्रत्याशी इमरान मसूद को 65 हजार से अधिक वोटों से मात दी। लखनपाल शर्मा मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ शर्मा के भतीजे हैं। उन्होंने देहरादून के दून कॉलेज से अपनी प्रारंभिक शिक्षा ली। अगर उनके रिपोर्ट कार्ड की बात की जाए, तो लोकसभा में उनकी उपस्थिति 80 प्रतिशत रही। उन्होंने लोकसभा की 57 बहसों में हिस्सा लिया। 350 बार उन्होंने सहारनपुर से लेकर अन्य कई मुद्दों को लेकर संसद में प्रश्न भी पूछे। यहीं नहीं उन्होंने लोकसभा में 5 प्राइवेट बिल भी पेश किए। अगर उनकी सांसद निधि की बात की जाए, तो उन्होंने अपनी निधि का 90 प्रतिशत भाग विकास कार्यों पर लगाया है। यहीं 2017 में सहारनपुर में हुए दंगों के दौरान उनकी गिरफ्तारी भी की गई। उन पर हिंसा को भड़काने का आरोप लगा। ऐसे में इस बार उनके लिए यहां की राह आसान नहीं रहने वाली है।
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क्या रहा विधानसभा चुनाव में समीकरण
2017 के विधानसभा में यहां के समीकरण बिल्कुल ही अलग रहे। बीजेपी की लहर होने के बाद भी यहां पर उनके प्रत्याशियों को हार का सामना करना पड़ा। यहां पर बसपा और कांग्रेस पार्टी जीतने में कामयाब रही। ऐसे में इस बार यहां पर राघव लखनपाल शर्मा के लिए दुबारा चुनकर जाना आसान नहीं होगा। सहारनपुर लोकसभा सीटों में आने वाले पांच विधानसभा बेहट, सहारनपुर नगर, सहारनपुर देहात, देवबंद और रामपुरमनिहारान में से दो सीटें बीजेपी के हिस्से में आई थी। यहां पर बेहट से कांग्रेस प्रत्याशी नरेश सैनी, सहारनपुर नगर से सपा प्रत्याशी संजय गर्ग, सहारनपुर देहात से कांग्रेस प्रत्याशी मसूद अख्तर, देवबंद से बीजेपी प्रत्याशी बृजेश कुमार, रामपुरमनिहारान से बीजेपी प्रत्याशी देवेंद्र कुमार निम विजयी होकर विधानसभा पहुंचें। जातीय समीकरण के आधार पर और पिछले विधानसभा चुनावों और 2017 के दंगों के देकर कहा जा सकता है कि इस बार यहां से बीजेपी के लिए राह आसान नहीं रहने वाली है। पिछले साल कैराना में हुए उपचुनाव में इसका असर देखने को भी मिला है।
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वोटों का ये हैं समीकरण
सहारनपुर पश्चिमी उत्तर प्रदेश की बड़ी लोकसभा सीटों में से एक है। पिछली बार यहा पर कुल 16,08,833 वोटर थे, इस बार बढ़कर 1722580 हो गए हैं। यहां पर बेहट में 350900, सहारनपुर नगर में 404409 और सहारनपुर देहात 329141, देवबंद में 334136 और रामपुर मनिहारान में 304004 मतदाताओं की संख्या है। 2014 में इस सीट पर कुल 74.2 फीसदी वोट पड़े थे। 2011 की जनगणना के आधार पर सहारनपुर में कुल 56.74 फीसदी हिंदू, 41.95 फीसदी मुस्लिम जनसंख्या है। जातीय समीकरण यहां की सियासत में बहुत ही महत्व रखते हैं।
2014 लोकसभा चुनाव का परिणाम
राघव लखनपाल, भारतीय जनता पार्टी, कुल वोट मिले 472,999, 39.6 फीसदी
इमरान मसूद, कांग्रेस, कुल वोट मिले 407,909, 34.2 फीसदी
जगदीश सिंह राणा, बसपा, कुल वोट मिले 235,033, 19.7 फीसदी
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