रामपुर लोकसभा सीट: जहां की सियासत पर हावी रहे हैं नवाब और आजम खान

पुरानी हिन्दी फिल्मों में रामपुरी चाकू के बारे में आप लोगों ने बहुत सुना होगा। जी हां, चाकू की धार की वजह से देश और दुनिया में प्रसिद्धी पाने वाले रामपुर की सियासत भी धारदार रही है। 50-50 प्रतिशत हिन्दू और मुस्लिम की आबादी होने के कारण इस लोकसभा सीट पर मुकाबला हर बार रोचक रहा है, लेकिन सियासी बाजी मारने में मुस्लिम नेता आगे निकल जाते हैं। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को छोड़कर अन्य पार्टियों ने मुस्लिम प्रत्याशी ही मैदान में उतारे थे, लेकिन बाजी बीजेपी के नेपाल सिंह मार ले गए। अब तक 16 बार हुए लोकसभा चुनाव में पांच बार हिन्दू प्रत्याशी ही संसद तक पहुंचें है।
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11 लोकसभा चुनावों में मुस्लिम प्रत्याशी विजयी रहे है। इसमें सबसे ज्यादा बार रामपुर रियासत के लोग ही सांसद रहे हैं। इसमें सबसे ज्यादा बार यहां से सांसद रहे नवाब सैय्यद जुल्फिकार अली खां का नाम प्रमुख है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की इस लोकसभा सीट से पहली बार मौलाना अब्दुल कलाम आजाद जीतकर संसद पहुंचें और देश के पहले शिक्षा मंत्री बनें। नवाब परिवार के कांग्रेस में होने के कारण यह सीट कांग्रेस का गढ़ मानी जाती रही है। हालांकि पिछले तीन लोकसभा चुनावों में यह सीट कांग्रेस के कब्जे में नहीं रही है। इस सीट पर समाजवादी पार्टी का कब्जा रहा। सपा के दिग्गज नेता आजम खान का गढ़ होने के कारण इस सीट से 2004 और 2009 के लोकसभा चुनाव में जयाप्रदा विजयी रही।
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2014 के लोकसभा चुनाव में इस सीट से सपा प्रत्याशी रहे नजीर अहमद खान को 23,435 वोटों से हराकर बीजेपी उम्मीदवार नेपाल सिंह संसद पहुंचें। मोदी लहर होने के बाद भी नेपाल सिंह काफी अंतर से सपा के गढ़ में जीत पाएं। पिछले पांच सालों में रामपुर लोकसभा सीट पर हिन्दू-मुस्लिम बनाने की बहुत कोशिश की गई। रामपुर धर्म परिवर्तन से लेकर अन्य मुद्दों तक में काफी चर्चा का विषय रहा है। विधानसभा चुनावों से पहले यहां पर वाल्मीकि की पूरी बस्ती ने धर्म परिवर्तन कर लिया था। जिसके बाद विश्व हिन्दू परिषद की नेता साध्वी प्राची से लेकर सांसद नेपाल सिंह और संजीव बालियान तक रामपुर में डेरा डाल दिया। इस मुद्दे को लेकर भले ही रामपुर सुर्खियों में रहा, लेकिन इसके बाद विधानसभा चुनावों में सपा का तीन सीटों पर कब्जा रहा।
इसी साल होने वाले 17वें लोकसभा चुनाव में यह सीट महागठबंधन के हुए बंटवारे में सपा के पास ही आई है। ऐसे में यहां पर एक बार फिर से रोचक मुकाबला होने की पूरी उम्मीद है। बीजेपी के अलावा यहां पर आजम खान और नवाब खानदान की भी प्रतिष्ठा जुड़ी रहेंगी। नवाब खानदान को संसद पहुंचने का पिछले 15 सालों से इंतजार है। वैसे, रामपुर कभी दिल्ली का भाग हुआ करता था। यह बदौन और संभल में बंटा हुआ था। रामपुर किले की 1775 में नवाब फैज़ुल्लाह खान ने नींव रखी थी और उन्होंने रामपुर नगर का बसाया। रामपुर चाकू के अलावा अन्य कई तरह के उद्योग के लिए भी जाना जाता है। यहां पर रामपुर राजा पुस्तकालय में 12,000 से ज्यादा दुर्लभ मनुस्मृतिया और मुगल लघु चित्रों का संग्रहालय भी है।
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रामपुर लोकसभा सीट का इतिहास
रामपुर लोकसभा सीट का अतीत काफी सुनहरा रहा। इस लोकसभा सीट की गिनती शुरू से ही मुस्लिम बाहुल्य सीटों में होती रही है। 1952 में पहली हुए लोकसभा चुनाव में यहां से कांग्रेस प्रत्याशी डॉ. अबुल कलाम आजाद जीतकर पहुंचें। यह सीट 1952 से लेकर 1971 तक कांग्रेस के पास ही रही और हर बार मुस्लिम उम्मीदवार ही यहां से जीतें। पहली 1977 में यहां से भारतीय लोकदल के प्रत्याशी रहे राजेंद्र कुमार शर्मा जीतें, लेकिन तीन साल बाद हुए चुनाव में यह सीट फिर से कांग्रेस प्रत्याशी रहे नवाब जुल्फिकार अली खां के पास पहुंच गई। वे यहां से लगातार तीन बार सांसद रहे। सांसद जुल्फिकार इससे पहले 1967 और 1971 के चुनाव में लोकसभा पहुंचें। 1991 और 1998 में इस सीट पर राजेंद्र कुमार शर्मा ने एक बार फिर से जीत हासिल की और भारतीय जनता पार्टी से सांसद बनें। 1998 में यहां से बीजेपी से ही मुख्तार अब्बास नकवी जीते। इसके बाद फिर इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा हुआ। 2004 और 2009 के लोकसभा चुनावों में इस सीट से समाजवादी पार्टी की तरफ से बॉलीवुड अभिनेत्री जयाप्रदा सांसद चुनी गई थीं। यह सीट कांग्रेस का गढ़ इसलिए कहीं जाती है क्योंकि इस सीट पर अब तक हुए कुल 16 चुनाव में से 10 बार कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशी संसद पहुंचें।
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रामपुर लोकसभा सीट का समीकरण
रामपुर लोकसभा क्षेत्र में 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान करीब 16 लाख से अधिक मतदाता थे। इनमें 872084 पुरुष और 744900 महिला वोटर थी। 2014 में यहां कुल 59.2 फीसदी वोट पड़े थे। पांच विधानसभाओं वाली रामपुर की लोकसभा सीट पर 2011 की जनगणना के अनुसार कुल 50.57 % मुस्लिम आबादी है, जबकि 45.97 % हिंदू जनसंख्या है। इस सीट पर मुस्लिम मतदाता ही प्रत्याशियों का भाग्य तय करते हैं। यहां की पांच विधानसभा सीटों में इनमें सुआर, चमरौआ और रामपुर की सीटें सपा के पास है। सुआर से आजम खान के बेटे और रामपुर सीट से खुद आजम खान चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचें। चमरौआ से नजीर अहमद खान जो कि सपा से लोकसभा प्रत्याशी भी थे, वे जीतकर विधानसभा पहुंचें। दो सीटें बिलासपुर और मिलाक पर भाजपा का कब्जा रहा। बिलासपुर से विधायक बलदेव सिंह औलख योगी सरकार में मंत्री हैं। आरक्षित विधानसभा मिलाक से राजबाला बीजेपी से विधायक है।
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सांसद नेपाल सिंह का प्रोफाइल
रामपुर से सांसद बने पांच बार से विधायक रहे डॉ. नेपाल सिंह ने 2014 के चुनाव में समाजवादी पार्टी प्रत्याशी नसीर खान को हराया था। नेपाल सिंह और सपा नेता नसीर खान के बीच में जीत अंतर कोई ज्यादा नहीं रहा। उन्होंने महज दो प्रतिशत वोटों से ही जीत हासिल की थी। डॉ नेपाल सिंह माध्यमिक शिक्षा मंत्री भी रहे हैं और अभी वो पिछड़ा वर्ग कल्याण समिति के सदस्य हैं। पांच सालों में लोकसभा में उनकी उपस्थिति 89 प्रतिशत रही और उन्होंने संसद सत्र में मात्र 38 सवाल पूछे हैं और 20 डिबेट में हिस्सा लिया है। राजनीति का लंबा अनुभव रखने वाले विधायक सेना के जवानों को लेकर दिए गए बयान के कारण काफी विवादों में थे। उन्होंने कहा था कि अगर सेना के जवान हैं तो जान तो जाएगी ही। नेपाल सिंह ह्यूमन रिसोर्स डेवलेपमेंट की स्टैंडिंग कमेटी, रूल्स कमेटी, आईटी मंत्रालय की कमेटी में भी शामिल रहे।
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रामपुर की सीट पर रहा नवाबों का कब्जा
रामपुर रियासत के नवाब सैय्यद जुल्फिकार अली खां का यहां पर कई वर्षों तक सिक्का चला। वे रामपुर लोकसभा सीट से पांच बार सांसद रहे। रामपुर लोकसभा सीट पर उनका मुकाबला राजेंद्र कुमार शर्मा से रहा। इस बार के सियासी परिणाम में कुछ अंतर होगा या फिर नहीं। लेकिन रामपुर लोकसभा सीट पर अभी तक नवाब सैय्यद जुल्फिकार अली खां का रिकॉर्ड कोई तोड़ नहीं पाया है। इस लोकसभा सीट पर वे पांच बार सांसद रहे। वे करीब 21 साल तक रामपुर लोकसभा सीट से संसद में प्रतिनिधित्व करते रहे। सैय्यद जुल्फिकार अली खां यहां से पांच बार कांग्रेस से सांसद रहे। वे साल 1967, 1971, 1980, 1984 और 1989 में सांसद रहे हैं। लोकसभा चुनावों को लेकर रामपुर की तस्वीर भी काफी रोचक रही है। इस सीट पर नवाब खानदान से कोई न कोई सदस्य लोकसभा की कुर्सी पर काबिज रहा है। इस सीट पर पहली बार 1977 में राजेंद्र कुमार शर्मा हिन्दू सांसद के रूप में चुने गए। वे यहां से 1991 में एक बार फिर से सांसद के रूप में चुने गए।
इसके अलावा यहां से सांसद के रूप में जया प्रदा दो बार यहां से लगातार चुनीं गईं। इस सीट से अब तक सबसे कम समय के लिए सांसद भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता मुख्तार अब्बास नकवी रहे हैं। मुख्तार अब्बास नकवी 1998 में यहां से सांसद चुने गए और केंद्र सरकार में सूचना एवं प्रसारण मंत्री भी रहे। 13 माह बाद एक बार फिर से जब 1999 में चुनाव हुआ, तो उस समय इस सीट पर कांग्रेस ने जीत हासिल की और नवाब परिवार की बेगम नूरबानो संसद पहुंचीं। बेगम नूरबानो के बाद नवाब खानदान का कोई भी व्यक्ति लोकसभा नहीं पहुंच पाया है। जबकि तीन लोकसभा चुनाव हो चुके हैं। 2004 के लोकसभा चुनाव में जया प्रदा ने नूर बानो को परास्त किया था। नवाब घराने की बेगम नूरबानो को हराने के लिए रामपुर में आजम खान ने 2004 में पूरा जोर लगा दिया था। उन्होंने रामपुर में मुलायम, अखिलेश और लालू यादव समेत संजय दत्त, डिंपल कपाड़िया, जया बच्चन और मनोज तिवारी को प्रचार में उतारा था। मुकाबला काफी कठिन होने की वजह से 2004 के चुनाव में सोनिया गांधी ने खुद आकर नूरबानो के लिए वोट मांगा था, लेकिन बॉलीवुड के आगे वे हार गईं।
2014 लोकसभा चुनाव के नतीजे
नेपाल सिंह, भारतीय जनता पार्टी, कुल वोट मिले 358,616, 37.5%
नसीर अहमद खान, समाजवादी पार्टी, कुल वोट मिले 335,181, 35.0%
नवाब खान, कांग्रेस, कुल वोट मिले 156,466, 16.4%
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