रायबरेली लोकसभा : ऐसे ही कांग्रेस का गढ़ नहीं कही जाती है यह सीट

देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में हमेशा ही चर्चा में रहने वाली रायबरेली सीट पर इस बार पांचवें चरण में चुनाव होगा। जैसे ही जैसे चुनाव के दिन नजदीक आ रहे हैं, वैसे ही वैसे इस सीट पर पूरे देश की नजर में आ गई है। आखिर नजर हो भी क्यों न यह सीट गांधी-नेहरू परिवार का पूरा खाका सामने आ जाता है। यहां के ही लोगों ने भारतीय राजनीति की ‘दुर्गा’ और कांग्रेस में अपराजेय मानी जानेवाली तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को भी 1977 में हराया है।
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रायबरेली लोकसभा सीट 1957 में आस्तित्व में आई। पहली बार इस लोकसभा सीट पर हुए चुनाव में इंदिरा गांधी के पति फिरोज गांधी ने जीत हासिल की। 8 सितम्बर 1960 को फिरोज गांधी का हार्ट अटैक से निधन हो गया। इसके बाद इस सीट पर हुए उपचुनाव में कांग्रेस के आरपी सिंह चुने गए। अगले लोकसभा के चुनाव में 1962 यह सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित कर दी गई और उस समय कांग्रेस के टिकट पर बैजनाथ कुरील जीतकर संसद पहुंचें। अगले ही चुनाव में यह सीट 1967 में सामान्य कर दी गई। इस सीट ने उस समय सुर्खियां बटोरी जब प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु की पुत्री और देश की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी यहां से मैदान में उतरीं। इंदिरा गांधी यहां से 1967 में जीतकर संसद पहुंची और उन्होंने लगातार दो चुनावों में जीत हासिल की। इसके बाद 1977 में इमरजेंसी के दौरान उनके विपरीत लहर होने के कारण रायबरेली की जनता ने उन्हें सबक सिखाया और उन्हें हार का सामना करना पड़ा।
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भारतीय लोकदल के प्रत्याशी राज नारायण की जीत पूरे देश में चर्चा का विषय बनी। इसके बाद फिर 1980 में हुए लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी उतरीं और उन्होंने रिकॉर्ड मतों के साथ यहां से जीत हासिल की। इसके बाद 1981 के उपचुनाव और 1984 में इस सीट से इंदिरा गांधी के चचरे भाई अरुण कुमार नेहरु सांसद बनें। इसके बाद इस सीट से 1989 में कांग्रेस ने शीला कौल को मैदान में उतारा और उन्होंने यहां जीत हासिल की। इसके बाद 1991 के लोकसभा चुनाव में भी वह जीतकर संसद तक पहुंचीं। 1996 के चुनाव में राम मंदिर की लहर का असर इस सीट पर भी दिखा और भाजपा ने जिले के कद्दावर नेता माने जाने वाले अशोक सिंह को टिकट दिया। अशोक सिंह ने जीत हासिल करके कांग्रेस के गढ़ में बीजेपी का खाता खोला। इसके बाद 1998 के चुनाव में फिर अशोक सिंह ने जीत हासिल की। रायबरेली की खराब होती स्थिति देख इस सीट से चुनाव लड़ने के लिए कांग्रेस ने यहां पर गांधी परिवार के खास सतीश शर्मा को भेजा और उन्होंने अरुण नेहरु को हराया। 2004 के लोकसभा चुनाव में इस सीट से कांग्रेस अध्यक्ष स्वयं मैदान में आई और उन्होंने जीत हासिल की। तब से वह यहां से सांसद है।
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