नगीना लोकसभा सीट: जहां से मायावती लड़ सकती हैं चुनाव

सियासी पार्टियों के लिए अहम यूपी की सभी सीटों में से पांचवीं लोकसभा सीट पर इस बार सभी पार्टियों की नजर रहेगी। आरक्षित लोकसभा सीटों में से एक उत्तर प्रदेश की सीट पर इस बार यूपी की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती भी उतर सकती हैं। मायावती के अलावा अन्य बड़े दलित चेहरों के यहां से चुनाव लड़ने के संकेत मिल रहे हैं। हालांकि बदलते समीकरणों के आधार पर अभी यह तय नहीं हो पाया है कि नगीना लोकसभा क्षेत्र से कौन उतरेगा। फिलहाल अभी यह लोकसभा सीट बीजेपी के पास है।
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2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी की लहर का फायदा यहां से प्रत्याशी रहे यशवंत सिंह को मिला। उन्होंने सपा सांसद रहे यशवीर सिंह को मात दी। वैसे, नए परिसीमन के बाद नगीना लोकसभा सीट 2009 के लोकसभा चुनाव के दौरान आस्तित्व में आई थी। इस सीट से पहली बार सपा से प्रत्याशी रहे यशवीर सिंह संसद पहुंचे थे। कभी बिजनौर लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत रहने वाली इस सीट पर विधानसभा चुनाव के दौरान रोचक मुकाबला रहा है। दो आरक्षित विधानसभा वाली इस लोकसभा सीट पर 21 प्रतिशत दलितों का वोट है, तो 50 प्रतिशत मुस्लिमों का वोट भी है। यहां पर यह जातीय समीकरण होने के कारण इस सीट से मायावती के उतरने के बाद रोचक मुकाबला होने की पूरी संभावना है। अगर मायावती या फिर कोई बड़ा दलित चेहरा इस लोकसभा सीट से उतरता है, तो फिर भाजपा के लिए इस सीट पर राह आसान नहीं रहेंगी।
वैसे, 2014 के लोकसभा चुनाव में इस सीट पर यशवंत सिंह विजयी रहे थे। दूसरे नंबर पर यशवीर सिंह और तीसरे नंबर पर बसपा के उम्मीदवार गिरीश चंद्र थे। इस सीट से कांग्रेस ने अपना कोई प्रत्याशी ही नहीं उतारा था, लेकिन इस बार यूपी से अधिक से अधिक सीट जीतने की कोशिश में कांग्रेस लगी हुई है। सूत्रों की माने तो बिजनौर लोकसभा सीट से कई बार जीतने वाली कांग्रेस इस यहां से लड़ने की तैयारी कर रही है। इस सीट के लिए प्रियंका गांधी छोटे दलों के नेताओं से समझौता कर भी सकती है। अभी यह नहीं कि इस सीट से मायावती या कोई बड़ा दलित चेहरा चुनाव लड़ेगा। लेकिन अगर दोनों में से कोई भी एक प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतरता है, तो फिर इस सीट पर बीजेपी के लिए राह आसान नहीं रहने वाली है। बता दें इसी लोकसभा सीट क्षेत्र में आने वाली नूरपुर विधानसभा सीट पर सपा ने पिछले साल हुए उपचुनाव में जीत हासिल की थी। ऐसे में महागठबंधन यहां पर हावी रह सकता है।

2014 के लोकसभा चुनाव पर नजर
2009 के लोकसभा चुनाव से पहले नए परिसीमन के बाद आस्तित्व में आई इस सीट पर अब तक 15वीं व 16वीं लोकसभा के चुनाव हुए हैं। 15वीं लोकसभा के चुनाव में यहां से सपा प्रत्याशी रहे यशवीर सिंह विजयी रहे थे। 16वीं लोकसभा के चुनाव में बीजेपी लहर का फायदा दो बार के विधायक रहे यशवंत सिंह को मिला। 14 लाख 93 हजार 419 मतदाताओं वाली इस लोकसभा सीट पर 14 चुनावी प्रत्याशी मैदान में उतरे थे। इसमें बीजेपी के उम्मीदवार यशवंत सिंह ने सभी को पछाड़ते हुए 3 लाख 67 हजार 825 वोट पाक जीत दर्ज की। सपा प्रत्याशी यशवीर सिंह को 2 लाख 75 हजार 435 वोट मिले और बसपा के प्रत्याशी गिरीश चंद्र को 2 लाख 45 हजार 685 से संतुष्ट करना पड़ा। इस लोकसभा सीट से 2014 के दौरान बीजेपी को सबसे अधिक 39.02 प्रतिशत वोट मिले, सपा को 29.22 फीसदी और बसपा को 26.06 प्रतिशत मत मिले थे। महागठबंधन होने के बाद इस लोकसभा सीट पर अगर दोनों ही पार्टियों का वोट मिला लिया जाए, तो महागठबंधन के प्रत्याशी की जीत लगभग तय दिख रही है।
नगीना लोकसभा सीट का इतिहास
मुस्लिम और दलित मतदाताओं के बाहुल्य वाली नगीना लोकसभा सीट का चुनावी इतिहास ज्यादा पुराना नहीं है। इस लोकसभा सीट का 60 प्रतिशत हिस्सा पहले बिजनौर लोकसभा क्षेत्र में आता था। 2008 में हुए परिसीमन के दौरान इसे अलग क्षेत्र बनाने की मांग शुरू हुई, तो बिजनौर से कुछ विधानसभा सीटों को काटकर एक नई लोकसभा सीट बनाई गई। 15वीं लोकसभा का चुनाव नगीना लोकसभा सीट से लड़ा गया। इस लोकसभा सीट में नजीबाबाद, नगीना, धामपुर, नहटौर और नूरपुर विधानसभा सीटें आती हैं।
नूरपुर पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की जन्मभूमि भी है। ऐसे में इस सीट पर रालोद काफी अहम रही है, लेकिन पिछले कुछ चुनाव में यहां से शानदार प्रदर्शन नहीं कर पाई है। इस सीट से 2009 के लोकसभा चुनाव में सपा प्रत्याशी रहे यशवीर सिंह पहली बार जीतकर दिल्ली पहुंचें। 2014 के लोकसभा चुनाव में उन्हें बीजेपी से मुंह की खानी पड़ी। 2014 में चली बीजेपी की आंधी का असर इस लोकसभा क्षेत्र में भी दिखा। मुस्लिम बाहुल्य सीट होने के बाद भी इस सीट पर बीजेपी पार्टी को फायदा मिला और यशवंत सिंह ने बड़े अंतर से सीट दर्ज की। हालांकि नूरपुर के विधानसभा चुनाव में सपा से प्रत्याशी रहे नईम-उल-हसन ने जीत दर्ज की है।
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सांसद यशवंत सिंह
यहां का जातीय समीकरण
अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित इस लोकसभा सीट पर इस बार मायावती के लड़ने की चर्चा जोर है। इस सीट पर करीब 21 फीसदी एससी वोटर है और 50 प्रतिशत से अधिक मुस्लिम वोटर है। सभी विधानसभा सीटों का हिसाब लगाया जाए, तो करीब 50 फीसदी से अधिक मुस्लिम वोटर यहां पर है। इस सीट को राजनीतिक लिहाज से ये सीट काफी अहम है। यहां पर कुल 14,93,411 मतदाता हैं। इनमें 7,95,554 पुरुष और 6,97,857 महिला वोटर हैं। 2014 में इस सीट पर 63.1 फीसदी वोट डाले गए थे। पांच विधानसभा वाली इस सीट पर 2017 के चुनाव में तीन सीटें भारतीय जनता पार्टी और दो सीटें समाजवादी पार्टी के पास गई थीं। 2018 के उपचुनाव में नूरपुर विधानसभा सीट पर सपा के मुस्लिम प्रत्याशी नईम-उल-हसन का ही कब्जा रहा है।
इस वजह से चर्चा में रहे सांसद
नगीना लोकसभा सीट से जीतकर जाने वाले यशवंत सिंह 'दलितों का मसीहा' बनने के लिए बीजेपी के ही खिलाफ मोर्चा खोल दिया। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खत लिखकर कहा था कि केंद्र सरकार ने अपने कार्यकाल में दलितों के लिए कोई काम नहीं किया है। दलितों के हितो में बाद करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से कहा कि सरकार जल्द ही दलितों के लिए आरक्षण बिल पास करें। हालांकि 16वीं लोकसभा सदन भी समाप्त हो गई, लेकिन इस दौरान चली सदन में यह बिल पास नहीं हुआ।
यशवंत सिंह को नगीना की जनता का प्यार मिलता रहा है। वे यहां से सांसद बनने से पहले दो बार विधायक भी रहे हैं। 2002 के विधानसभा चुनाव में पहली बार लोकदल से विधायक चुने गए और 2007 के विधानसभा चुनाव में बसपा से जीते। यशवंत सिंह मायावती की सरकार में मंत्री भी रहे। 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले वे बीजेपी में शामिल हो गए और 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा से प्रत्याशी बने। 16वीं लोकसभा में यशवंत सिंह ने कुल 34 बहस में हिस्सा लिया। हालांकि उन्होंने इस दौरान कोई भी सवाल नहीं पूछा, लेकिन जिस तरीके से प्रधानमंत्री को खत लिखा, उससे वह चर्चा में आ गए। उन्होंने पांच सालों में सरकार की ओर से तीन बिल पेश किए। 2014 में उन्हें ग्रामीण विकास से जुड़ी संसद की स्टैंडिंग कमेटी का हिस्सा बनाया गया। यशवंत सिंह रेल मंत्रालय की कमेटी का भी हिस्सा रहे।
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2014 लोकसभा चुनाव के नतीजे
यशवंत सिंह, भारतीय जनता पार्टी, कुल वोट मिले 367,825, 39 फीसदी
यशवीर सिंह, समाजवादी पार्टी, कुल वोट मिले 275,435, 29.2 फीसदी
गिरीश चंद्रा, बहुजन समाज पार्टी, कुल वोट मिले 245,685, 26.1 फीसदी
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