मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट: जहां पर हर बार बदल जाता है सियासी समीकरण

2013 में हुए दंगों के बाद देशभर की मीडिया में सुर्खियां बनने वाला मुजफ्फरनगर उत्तर प्रदेश में 'जाटलैंड' के नाम से मशहूर है। 'चौधरी साहेब' की इस धरती का सियासी समीकरण पिछले चार लोकसभा चुनावों में हर बार बदल गया है। यहां की जनता ने किसी एक पार्टी को पिछले कई चुनावों से लगातार नहीं चुना है। यूपी में तीसरे नंबर की इस लोकसभा सीट पर 2014 के चुनाव में 16 साल के बाद फिर से कमल खिला। दंगों व भाजपा लहर की वजह से संजीव बालियान यहां से सांसद बने। मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट में सरधना भी आती है, जहां से विधायक ठाकुर संगीत सोम अपने बयानों को लेकर हमेशा ही चर्चा में रहते हैं। भारत में 'चीनी का कटोरा' कहे जाने वाले इस जिले में गन्ना किसानों की हमेशा ही सरकार से नाराजगी रहती है और यही हर बार इस सीट के परिणाम बदल देते हैं। वैसे, मुजफ्फरनगर के नाम के बारे में कहा जाता है कि शाहजहां ने सरवट नाम के परगना को अपने एक सरदार सैयद मुजफ्फर खान को जागीर में दिया था। उन्होंने और उनके बेटे मुनव्वर लश्कर ने 1633 में मुजफ्फरनगर नाम से शहर बसाया था।
यहां का यह है जातीय समीकरण
राजधानी नई दिल्ली से सटे 'चीनी का कटोरा' कहे जाने वाला मुजफ्फरनगर यूपी एक विकसित और समृद्ध शहर है। अगर यहां पर जातीय आधार पर देखा जाए तो 51 प्रतिशत आबादी हिंदू और 41 प्रतिशत आबादी मुस्लिम है। इस लोकसभा क्षेत्र में 2014 के चुनाव समय 15,88,475 लोगों ने मतदान किया था। यहां पुरुष पर लगभग पुरुष वोटर 875186 और 713297 महिला वोटर है। पिछले चुनाव में भाजपा ने बसपा को 36 प्रतिशत वोटों से हराया था। इस बार सपा-बसपा गठबंधन के होने की वजह से इस सीट पर मुकाबला दिलचस्प हो गया है।
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मुजफ्फरनगर सीट का इतिहास
पश्चिमी यूपी की इस लोकसभा सीट में बुढ़ाना, चरथावल, मुजफ्फरनगर, खतौली और सरधना की विधानसभा सीटें है। इस समय पांचों ही सीटों पर बीजेपी विधायक है। इन सीटों का जातीय समीकरण बिल्कुल ही अलग है। 1952 से आस्तित्व में रही इस लोकसभा सीट पर शुरुआत में कांग्रेस का वर्चस्व रहा। इस सीट पर 1952 के पहले लोकसभा चुनाव से लेकर 1962 तक कांग्रेस का कब्जा रहा। 1952 में हिरा वल्लभ त्रिपाठी, सुन्दर लाल, और अजित प्रसाद पहले सांसद रहें। इसके बाद लगातार दो चुनाव कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया के प्रत्याशी ने जीता। चौथे लोकसभा चुनाव में लताफत अली खान और अगले चुनाव में विजयपाल सिंह इस पार्टी से सांसद बने। 1977 से 1991 तक ये सीट जनता दल, कांग्रेस के खाते में रही। पूरे देश में जब राम मंदिर का मुद्दा छाया उस समय यहां पर पहली बार कमल खिला। इस सीट से लगातार 1991, 1996 और 1998 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने जीत दर्ज की। 1991 नरेश कुमार बालियान सांसद बने। इसे बाद सोहन वीर सिंह दो बार बीजेपी से सांसद रहे। 1999 में जब फिर से चुनाव हुए तो कांग्रेस की जीत हुई। इसके बाद इस सीट से 2004 में सपा और 2009 में बसपा के प्रत्याशी विजय रहे।

मुजफ्फरनगर सीट का सियासी समीकरण
'जाटलैंड' के नाम से मशहूर इस सीट का सियासी समीकरण बिल्कुल ही अलग रहा है। आरएलडी का वोट कहे जाने वाले जाट वोट बैंक पर कई लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने सेंधमारी कर ली है। 2013 में हुए दंगों के बाद एक बार फिर से इस सीट पर सियासी समीकरण बदल गया। 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के साथ ही साथ दंगों का फायदा बीजेपी को मिला। 2014 के लोकसभा चुनाव में संजीव बालियान ने करीब 4 लाख वोटों से जीत दर्ज की। इससे पहले 1992 में राम मंदिर आंदोलन के दौरान इस सीट से तीन बार बीजेपी ने जीत दर्ज की। इस सीट पर 41 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता है। कांग्रेस ने 1999 में, 2004 में सपा और 2009 में बसपा ने जीत दर्ज की थी। यह सीट काफी अहम है और ऐसा कहा जा रहा है कि आने वाले दिनों में चौधरी अजित सिंह खुद ही चुनाव लड़ेंगे। यहां से चुनाव जीतने के लिए अजीत सिंह इस बार खूब मेहनत कर रहे हैं। यही नहीं बीजेपी फिर से इस सीट पर संजीव बालियान को उतार सकती है। वहीं, महागठबंधन इस सीट को पाने का पूरा प्रयास करेगा। ऐसे में उसके लिए यहां की राह आसान नहीं रहने वाली है।
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सांसद संजीव बालियान हमेशा ही रहे चर्चा में
लोकसभा चुनाव से पहले 2013 में हुए दंगों की वजह से सांसद संजीव बालियान ने राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां बटोरीं थीं। उन पर यह आरोप था कि उन्होंने भड़काऊ भाषण दिया था, जिसकी वजह से मुजफ्फरनगर में दंगे हुए। उनपर आरोप था कि सितंबर 2013 में उन्होंने एक महापंचायत की थी, जिसके कारण इलाके में माहौल बिगड़ा था। 2014 में सांसद बनने के बाद भाजपा सरकार ने उन्हें तोहफा भी दिया। वे 2014 से 2017 तक केंद्र सरकार में जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय में राज्य मंत्री रहे। इस समय वह सिर्फ सांसद है। 2017 में हुए विधानसभा चुनाव से पहले उन्होंने नाराज जाटों को मनाने में बड़ी भूमिका निभाई थी। पिछले पांच सालों में संसद में उनकी उपस्थिति 89 प्रतिशत रहीं। इस दौरान उन्होंने लोकसभा की चार डिबेट में हिस्सा लिया और 9 प्रश्न पूछे।
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2014 के लोकसभा चुनाव का रिजल्ट
संजीव बालियान, भारतीय जनता पार्टी, कुल वोट मिले 653391, 59 फीसदी
कादिर राणा, बहुजन समाज पार्टी, कुल वोट मिले 252241, 22.8 फीसदी
वीरेंद्र सिंह, समाजवादी पार्टी, कुल वोट मिले 160810, 14.5 फीसदी
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