जौनपुर: सपा के गढ़ में इस बार बीजेपी का जीतना नहीं होगा आसान

यूपी की राजधानी से होकर गुजरने वाली गोमती नदी यूपी के एक और ऐतिहासिक शहर से होकर गुजरती है और यह चर्चित शहर है जौनपुर। जौनपुर जिले का अपना अलग इतिहास रहा है। प्रशासनिक सेवाओं सबसे ज्यादा अधिकारी देने वाला शहर पढ़ाई के अलावा क्षेत्र में भी प्रसिद्ध है। जौनपुर शहर अपने चमेली के तेल, तंबाकू की पत्तियों, इमरती और मिठाइयों के लिए लिए प्रसिद्ध है। दो संसदीय क्षेत्र वाले जौनपुर जिले में 9 विधानसभा सीटें आती है। इस जिले में जौनपुर के अलावा मछलीशहर संसदीय सीट आती है। यूपी की 73वें नंबर की लोकसभा सीट पर पिछले चुनाव में बीजेपी ने अपना परचम लहराया था। बीजेपी के उम्मीदवार कृष्ण प्रताप सिंह उर्फ केपी ने बसपा से उम्मीदवार सुभाष पांडेय को हराया था। इस बार यहां पर बहुत ही रोचक मुकाबला होने की उम्मीद है, एक तरफ गठबंधन के उम्मीदवार तो दूसरी तरफ बीजेपी के उम्मीदवार अपनी दावेदारी कर रहे हैं। इस जिले में मैनपुरी के सांसद तेज प्रताप यादव का नाम भी जुड़ा था, लेकिन बसपा के हिस्से में सीट होने के कारण बात नहीं बन पाई।
जौनपुर का यह है इतिहास
उत्तर प्रदेश के ऐतिहासिक शहरों में से एक जौनपुर जिला है। इतिहासकारों के अनुसार गुप्त काल के दौरान यहां पर बौद्ध धर्म का प्रभाव रहा और चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के काल में यह शहर 'मनइच' तक जुड़ा रहा। मुस्लिम आक्रमणकारियों के आक्रमण से पहले यहां भार, कोइरी गुज्जर, प्रतिहार और गहरवारों का आधिपत्य बना रहा। इस शहर की महत्ता सल्तनत काल में तुगलक शासनकाल में काफी बढ़ गई थी। शहर की स्थापना 14वीं शताब्दी में फिरोज शाह तुगलक ने अपने चचेरे भाई सुल्तान मुहम्मद की याद में की थी। सुल्तान मुहम्मद का असली नाम जौना खां था। उन्हीं के नाम पर इस शहर का नाम जौनपुर रखा गया। 14वीं सदी के अंत में मलिक सरवर शर्की ने जौनपुर को शर्की साम्राज्य में शामिल किया और उसे अपने साम्राज्य की राजधानी बनाई। आखिरकार डेढ़ सदी तक मुगल सल्तनत का अंग रहने के बाद 1722 ई में जौनपुर अवध के नवाब के हिस्से में आ गया। पहली बार 1818 में जौनपुर पहली बार डिप्टी कलेक्टरशिप बना और बाद में इसे अलग जिला बना दिया गया। 1820 में आजमगढ़ को जौनपुर जिले के अधीन लाया गया, लेकिन पहले 1822 में आजमगढ़ के कुछ हिस्से को अलग कर दिया गया, बाद में 1830 में इसे जौनपुर से पूरी तरह से अलग कर दिया गया।
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जौनपुर सीट का यह रहा है समीकरण
1957 में आस्तित्व में आई इस सीट पर अब तक 15 बार चुनाव हुए हैं। जौनपुर संसदीय क्षेत्र में 5 विधानसभा क्षेत्र (बादलपुर, शाहगंज, जौनपुर, मल्हानी और मुंगरा बादशाहपुर) आते हैं। 2014 में इस सीट से भारतीय जनता पार्टी के कृष्णा प्रताप सिंह उर्फ केपी भईया सांसद चुने गए। उन्होंने बहुजन समाज पार्टी के सुभाष पांडे से चुनौती से पार पाते हुए जीत हासिल की थी। कृष्णा ने 1,46,310 मतों के अंतर से जीत हासिल की थी। कृष्णा को 3,67,149 (36.45%) मत मिले जबकि सुभाष को 2,20,839 (21.93%) मत मिले। चुनाव में सपा तीसरे और आम आदमी पार्टी पांचवें स्थान पर रही थी। बीजेपी ने 2014 में 15 साल बाद यह सीट अपने नाम किया था। 15वें लोकसभा चुनाव यानि 2009 में बसपा के धनंजय सिंह ने सपा के पारसनाथ को हराया था। सबसे बड़ी बात यह है कि इस सीट पर शुरुआत में इस सीट से कांग्रेस ने जीत की शुरुआत की थी, लेकिन 1984 के बाद यहां से कांग्रेस एक भी चुनाव नहीं जीती। 1962 में जनसंघ के ब्रह्मजीत भी विजयी रहे हैं। बीजेपी ने 1989 में राजा यघुवेंद्र दत्ता के रूप में यहां से पहली बार जीत हासिल की थी। इसके बाद 1991 में जनता दल ने बीजेपी से यह सीट छीन ली थी। 1991 में अर्जुन सिंह यादव विजयी रहे। 1996 में बीजेपी ने फिर से इस सीट पर कब्जा जमाया। 1996 से लेकर यहां की लड़ाई द्वीपक्षीय रही है और 4 चुनावों में एक बार बीजेपी तो एक बार सपा ने यह सीट जीता। 2009 में यह सिलसिला बसपा की जीत के बाद टूट गया। बसपा के उम्मीदवार धनंजय सिंह ने जीत दर्ज की थी। 2014 में बीजेपी ने यह सीट फिर से अपने नाम की।
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जौनपुर संसदीय क्षेत्र में अब तक रहे सांसद
1951:गणपत राम और बीरबल सिंह
1957: गणपत राम और बीरबल सिंह
1962: ब्रह्मजीत
1967: आर देव
1971: राजदेव सिंह
1977: यादवेंद्र दत्त दुबे
1980: अजीजुल्ला
1984: कमला प्रसाद सिंह
1989: राजा यादवेंद्र दत्त
1991: अर्जुन सिंह यादव
1996: राज शेखर
1998: पारस नाथ यादव
1999: चिन्मयानंद
2004: पारसनाथ यादव
2009:धनंजय सिंह
2014: कृष्ण प्रताप उर्फ केपी
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