लोकसभा चुनाव में गुजरात की यह तिकड़ी हुई अलग, दिख नहीं रहा असर

गुजरात में विधानसभा चुनाव के दौरान जिस तिकड़ी की चर्चा हर जगह होती थी, उसकी लोकसभा चुनाव में कहीं पर चर्चा नहीं हो रही है। इस तिकड़ी का शोर इस लोकसभा चुनाव में नहीं नजर आ रहा है। 2017 के चुनाव में गुजरात में कांग्रेस को मजबूती देने में अलग-अलग समाज से आने वाले युवाओं का बहुत बड़ा हाथ था। मोदी सरकार और राज्य सरकार की नीतियों पर जमकर हमला बोलकर इन नेताओं ने गुजरात में अलग बयार ला दी थी। उनकी नीतियों की वजह से ही प्रदेश में भाजपा को जीतने में काफी मसकत का सामना करना पड़ा। अलग-अलग जाति पाटीदार, ओबीसी और दलित समुदायों से आने वाले युवा नेता कुछ अलग तरह से ही यहां पर राजनीति कर रहे थे। यह नेता थे पाटीदार नेता हार्दिक पटेल, दलित नेता जिग्नेश मेवाणी और ओबीसी नेता अल्पेश ठाकुर। इन बड़े चेहरों का लोकसभा चुनाव में कहीं पर कभी शोर नहीं दिखाई दे रहा है। सभी अब अलग-अलग रास्ते पर चल रहे हैं। जिग्नेश इस बार कन्हैया कुमार का प्रचार कर रहे हैं, तो हार्दिक पटेल को चुनाव लड़ने की अनुमति न मिलने की वजह से वह शांत है। वहीं अल्पेश ठाकुर ने कांग्रेस से इस्तीफा देकर अब भाजपा मय होने की कोशिश कर रहे हैं। विधानसभा चुनाव होने के 18 महीने बाद ही गुजरात की राजनीति में स्थितियां पूरी तरह से बदल गई हैं।
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हार्दिक पटेल
गुजरात में पाटीदारों की संख्या अधिक होने के कारण हार्दिक पटेल ने गोलबंदी की और आखिरकार बड़े नेता के रूप में उभरे। साल 2015 में पाटीदार आरक्षण की मांग के बाद सबसे तेजी से हार्दिक पटेल का नाम उभरकर सामने आया। आरक्षण की मांग को पाटीदारों की तरफ से किए गए आंदोलन ने ही हार्दिक पटेल को पहचान दी। हार्दिक पटेल गुजरात की राजनीति में अचानक एक बड़े नाम के रूप में उभरे। अपनी जाति में उनकी लोकप्रियता काफी बढ़ गई। बता दें गुजरात की कुल आाबदी में करीब 12 फीसदी आबादी पाटीदार समाज की है। इस बार वह जामनगर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ना चाह रहे थे, लेकिन मेहसाणा दंगा केस में उन्हें सजा होने के कारण वह चुनाव नहीं लड़ पाएं। हार्दिक पटेल ने सुप्रीम कोर्ट में मेहसाणा दंगा केस में मिली सजा पर रोक लगाने के लिए याचिका दायर की थी, जिससे कोर्ट ने खारिज कर दिया। हालांकि अब वह पूरी तरह से कांग्रेस में शामिल हो गए और गुजरात में पार्टी के लिए प्रचार भी शुरू कर दिया है।
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अल्पेश ठाकोर
जिस समय हार्दिक पटेल आरक्षण की मांग को लेकर राष्ट्रीय पर उभरे, ठीक उसी समय ओबीसी की मांगों को लेकर सड़क पर गुजरात के एक और नेता अल्पेश ठाकोर भी उभरे थे। ओबीसी नेता के तौर पर उभरे अल्पेश ठाकोर पाटीदारों को आरक्षण देने का विरोध कर रहे थे। इसके अलावा देशी शराब की बंदी को लेकर भी उन्होंने कैंपन चलाया। अल्पेश ने ठाकोर सेना बनाई और शराबबंदी के बाद भी गुजरात में अरबों रुपये के हो रहे शराब कारोबार के खिलाफ आवाज उठाई। उनके इस कैंपेन ने ठाकोर सेना को रातोंरात गुजरात में चर्चित बना दिया। इसके अलावा ओबीसी, एससी और एसटी एकता मंच के संयोजक भी अल्पेश ठाकुर रहे हैं। यहां पर नाम मिलने के बाद अल्पेश कांग्रेस में शामिल हो गए और 2017 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने जीत भी दर्ज की। अब अल्पेश कांग्रेस का साथ छोड़ चुके हैं।
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जिग्नेश मेवाणी
राष्ट्रीय दलित अधिकार मंच के संयोजक जिग्नेश मेवाणी राज्य में काफी लम्बे समय से दलितों के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं। गुजरात में युवा दलित नेता के तौर पर उभरे जिग्नेश पेशे से वकील और सामाजिक कार्यकर्ता हैं। उन्हें प्रसिद्धी ऊना में गोरक्षा के नाम पर दलितों की पिटाई के बाद उनके लंबे संघर्ष के बाद बनी। जिग्नेश ने 'आजादी कूच आंदोलन' में जिग्नेश ने 20 हजार दलितों को एक साथ मरे जानवर न उठाने और मैला न ढोने की शपथ दिलाई थी। जिग्नेश के आंदोलन से दलित मुस्लिम एकता भी दिखाई दी थी। बता दें कि ऊना में मरी गाय की खाल निकालने पर कुछ अराजकतत्वों ने चार दलितों की बेरहमी से पिटाई की गई थी। दलितों की पिटाई बाद जिग्नेश से लंबा आंदोलन किया।
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अब कन्हैया के प्रचार में जुटे जिग्नेश
जिग्नेश मेवाणी को राजनीति के रूप में 2017 के विधानसभा चुनाव में पहचान मिली। चुनाव में कांग्रेस ने उन्हें वडगाम सीट ऑफर थी, लेकिन उन्होंने इस सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा और जीते भी हासिल की। अब जिग्नेश राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाने में जुटे हैं। अब राष्ट्रीय स्तर पर जिग्नेश दलित नेता बनने की महत्वाकांक्षा में जुटे हुए है। यही वजह है कि वह अलग-अलग राज्यों में जाकर भी वहां अपने मुद्दों को उठा रहे हैं। जिग्नेश मेवाणी इस समय बिहार के बेगूसराय में कन्हैया कुमार के लिए प्रचार कर रहे हैं। कन्हैया कुमार के नामांकन में वह मौजूद भी रहे।
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