पढ़ें, भारतीय राजनीति में कहां से आया 'आयाराम-गयाराम' का जुमला

लोकसभा चुनाव नजदीक आते ही नेताओं ने पासा पलटना शुरू कर दिया है। पार्टियों से नाराज होकर नेताओं ने उलझ-कूद शुरू कर दी है। नेताओं के आस्था बदलने यानी आयाराम-गयाराम का खेल भी शुरू हो गया है। टिकट न मिलने की वजह से अपना हित साधने के लिए नेताओं दिल और दल दोनों बदलना शुरू कर दिया है। चुनावी शंखनाद अभी भले ही नहीं हुआ है, लेकिन सियासी संग्राम में आयाराम-गयाराम का दुख हर पार्टी को झेलना पड़ रहा है। वैसे, भारतीय राजनीति में कोई भी चुनाव आता है, तो उस दौरान 'आयाराम-गयाराम' का मुहावरा शुरू हो जाता है। टिकट न मिलने व अन्य वजहों से नाराज होकर नेता कपड़ों की तरह राजनीतिक पार्टियां बदलना शुरू कर देते हैं। चुनाव के दौरान लगभग हर पार्टी में नेता इधर से उधर होते हैं। नेताओं के इस तरह पार्टियां बदलने की वजह से भारतीय सियासत को एक जुमला मिला 'आयाराम-गयाराम।'
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भारतीय सियासत में यह कोई नया जमुला नहीं है। जब से आम चुनावों की शुरुआत हुई है, तब से पार्टियों के बदलने का क्रम चला आ रहा है। तेजी से पाला बदलने की इस प्रवृत्ति को लेकर ही आयाराम-गयाराम की कहावत बन गई। सियासत में बहुत ही प्रलचित यह कहावत हरियाणा से 1967 में आई। जब एक निर्दलीय विधायक गयालाल ने 9 घंटे के अंदर ही तीन पार्टियां बदल डाली। उन्होंने कपड़ों की तरह एक ही दिन में राजनीतिक दल बदले। भारतीय राजनीतिक में यह एक इतिहास बन गया। अब जब भी नेता पार्टियां बदलते हैं, तो उन पर यही कहावत चरितार्थ होती है। 1966 में आस्तित्व में आने के बाद हरियाणा में पहले सीएम भगवत दयाल शर्मा बने थे। उनकी सरकार गिराने के दौरान यह कहावत चरितार्थ हुई। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से टूट कर आए विधायक विशाल हरियाणा नाम की नई पार्टी बनाई और अपना मुखिया दक्षिण हरियाणा के बड़े नेता राव बिरेंद्र सिंह के बनाया। उनके नेतृत्व में हरियाणा में सरकार बनाई गई। इस दौरान सबसे ज्यादा चर्चा में रहे फरीदाबाद क्षेत्र की हसनपुर सीट के निर्दलीय विधायक गयालाल रहे। उन्होंने एक ही दिन में तीन पार्टियां बदली।
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9 घंटे में बदली तीन पार्टियां
हरियाणा के पहले मुख्यमंत्री भगवत दयाल शर्मा को पद से हटाने के लिए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से टूट कर आए विधायकों ने विशाल हरियाणा पार्टी नाम से नई पार्टी का गठन किया। इसी दौरान चर्चा में आयाराम-गयाराम का जुमला दलबदल के पर्याय के रूप में 1967 में मशहूर हो गया। गयालाल की वजह से ही यह जुमला तब से लेकर आज तक चरितार्थ हो रहा है। हरियाणा के हसनपुर (सुरक्षित) क्षेत्र से निर्दलीय विधायक गयालाल ने 1967 में 9 घंटे के अंदर तीन पार्टियां बदली थी। गयालाल सबसे पहले कांग्रेस से यूनाइटेड फ्रंट में गए, फिर वे कांग्रेस में लौटकर आ गए और फिर 9 घंटे के अंदर ही यूनाइटेड फ्रंट में शामिल हो गए। उस समय मुख्यमंत्री बने राव बिरेंद्र सिंह ने कहा था, 'गया राम, अब आया राम है।' कुछ समय बाद ही फिर से उन्होंने अपनी पार्टी बदल ली। इसी घटना ने भारतीय सियासत को एक नया मुहावरा दिया। इस घटना पर वरिष्ठ पत्रकार नवीन धमीजा बताते हैं "हरियाणा के राज्यपाल रहे जीडी तपासे ने एक बार कहा था- 'जिस तरह हम कपड़े बदलते हैं, वैसे ही यहां के विधायक दल बदलते हैं।'

कोर्स में है आयाराम-गयाराम की कहानी
वरिष्ठ पत्रकार हरिवंश ने अपनी पुस्तक 'झारखंड: सपने और यथार्थ' में इस घटना का जिक्र किया है। हरिवंश जी ने लिखा, ‘1967 के बाद हरियाणा से जिस आयाराम गयाराम की राजनीतिक संस्कृति शुरू हुई थी वह क्या थी? सुबह में जो एमएलए इधर होता था, दोपहर में दूसरे खेमे में, शाम में तीसरे खेमे में, रात में चौथे खेमे में’। राजीव रंजन की पुस्तक '1000 राजनीतिक प्रश्नोत्तरी' नामक किताब में तो इस घटना पर प्रश्नोत्तरी दी गई है। बताया गया है कि 1967 में सबसे पहले संसद में यशवंतराव चह्वाण ने आयाराम गयाराम शब्दबंध का जिक्र किया। केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की 11वीं कक्षा में राजनीति विज्ञान की पुस्तक में इस घटना का जिक्र किया गया है। उसमें कहा गया है ‘हरियाणा में आयाराम-गयाराम की राजनीति शुरू हुई।'
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बनाया गया कानून
सियासी गुणा-गणित तेज करने में ऐसे नेताओं को देखते हुए राजीव गांधी सरकार ने नियम बनाया। राजीव गांधी ने 'आयाराम-गयाराम' को रोकने के लिए 1985 में दल बदल विरोधी कानून बनाया, लेकिन वह ज्यादा कारगर साबित नहीं हुआ। नेताओं के दल बदलने के कानून को और मजबूत करने के लिए 16 दिसंबर 2003 को संसद में 91वां संविधान संशोधन विधेयक पारित किया गया। सख्त कानून बनने के बद भी राजनीतिक पार्टियां किसी न किसी तरह से अपना उल्लू सीधा कर लेती है। चुनावों के समय या फिर सरकार बनाने में बहुमत के करीब होने पर जोड़-तोड़ की राजनीति तेज हो जाती है।
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