टाइप 1 डायबिटीज़ एक ऐसी स्थिति है जो अग्नाशय में इंसुलिन बनाने वाली कोशिकाओं को नष्ट कर देती है। इस स्थिति में अग्नाशय बहुत कम या बिल्कुल भी इंसुलिन नहीं बना पाता है। आनुवंशिकी और कुछ वायरस जैसे विभिन्न कारक टाइप 1 डायबिटीज़ का कारक बन सकते हैं। हालांकि टाइप 1 डायबिटीज़ आमतौर पर बचपन या किशोरावस्थ के दौरान अधिक दिखाई देती है लेकिन यह वयस्कों में भी विकसित हो सकती है।
कई शोध के बाद भी टाइप 1 डाइबिटीज़ का इलाज अभी संभव नहीं हो पाया है। इसकी जटिलताओं को रोकने के लिए इंसुलिन आहार और जीवन शैली में बदलाव कर रक्त में शर्करा कि मात्रा को नियंत्रित किया जाता है। अगर आपके बच्चे कि आयु 4-6 वर्ष या 10-14 वर्ष है तो उसे टाइप 1 डायबिटीज़ हो सकती है। परिवार के किसी अन्य सदस्य को यह बीमारी है तो बच्चों को टाइप 1 बीमारी होने का जोखिम कई गुना बढ़ जाता है। टाइप 1 डायबिटीज़ से पीड़ित बच्चे को प्रतिदिन इंसुलिन इंसुलिन लेने कि आवश्यकता होती है।
अचानक दिखते हैं लक्षण
इसके लक्षणो में अधिक प्यास लगना, अत्यधिक पेशाब आना, उन बच्चों का बिस्तर गीला करना जिन्होने कभी रात में बिस्तर गीला नहीं किया है, अधिक भूख लगना, वजन कम होना, थकान और कमजोर महसूस करना, दृष्टि का कमजोर महसूस करना।
किसे है खतरा
कुछ बच्चों में टाइप 1 कि समस्या जन्म से ही होती है इसके लिए आनुवांशिक कारण जिम्मेदार माने जाते है। वायरल संक्रमण के कारण भी टाइप 1 डायबिटीज़ हो सकती है। इसके अलावा अग्नाशय में खराबी होने पर शरीर में इंसुलिन का निर्माण सही ढंग से नहीं हो पाता है। जिसकी वजह से शरीर में शुगर का पाचन ठीक से नहीं हो पाता है और ब्लड शुगर का स्तर बढ़ जाता है। इसके अलावा डाइट और लाइफस्टाइल में गड़बड़ी होने के कारण भी टाइप 1 डायबिटीज़ होने का ख़तरा रहता है।