केवल स्वाद ही नहीं अपने औषधीय गुणों से भरपूर है ये सब्जी

कटहल एक ऐसा फल है जिसको कच्चा हो तो कटहल की सब्जी के रूप में और पका हो तो फल के रुप में खाते हैं। कटहल के पकने पर उसका कोवा निकालकर खाया जाता है। इसमें विटामिन ए, सी, बी6, कैल्शियम, पोटैशियम, आयरन, फोलिक एसिड, मैग्नेशियम आदि होते हैं।

कटहल एक उष्णकटिबंधीय फल है जो भारतीय उपमहाद्वीप का मूल निवासी है। यह एक पेड़ पर उगने वाला सबसे बड़ा फल है और इसका एक खास स्वाद और बनावट है। भारत में कटहल की खेती का एक लंबा इतिहास रहा है और यह देश के कई राज्यों में उगाया जाता है। हमारे देश में इस समय लगभग हर्र दूसरे घर में कोई न कोई मधुमेह  ऐसे में कटहल का सेवन करने की भी सलाह दी जाती है। वजह है कटहल के अंदर डायबिटीज रोग को प्रबंधित करने की क्षमता। जैसे -जैसे लोग जागरूक हो रहे हैं कटहल के प्रोडक्ट का उपयोग डायबिटीज प्रबंधन में कर रहे हैं।

फणस यानि कटहल फल मीठा, हजम करने में मुश्किल, शक्ति प्रदान करने वाला, शुक्राणु यानि स्पर्म की संख्या बढ़ाने वाला, कफ और वातपित्त को कम करने के साथ-साथ जलन कम करने में भी फायदेमंद होता है। 

कच्चा कटहल मीठा होता है। लेकिन जैसा कि पहले ही बताया गया है कि कटहल को हजम करना मुश्किल होता है, इसलिए यह वजन कम करने में मदद करता है। कटहल का जड़ घाव को ठीक करने में सहायक होता है। कच्चा कटहल का फल मीठा होने के बावजूद इसका फूल कड़वा होता है।

कटहल उष्णकटिबंधीय जलवायु में 25 से 35°C (77-95°F) की तापमान सीमा के साथ पनपता है। इसके लिए हर साल 1500-2500 मिमी की अच्छी तरह से वितरित बारिश की ज़रूरत होती है। इसे तटीय क्षेत्रों, मैदानों और पहाड़ी क्षेत्रों सहित विविध कृषि-जलवायु क्षेत्रों में उगाया जा सकता है।

इन राज्यों में होता है कटहल का उत्पादन

केरल भारत में कटहल का सबसे बड़ा उत्पादक है, इसके बाद कर्नाटक, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश,बिहार और पश्चिम बंगाल हैं। इन राज्यों में अनुकूल जलवायु परिस्थितियाँ और कटहल की खेती के लिए उपयुक्त भूमि है। कटहल के पेड़ों को अच्छी जल निकासी वाली अच्छी कार्बनिक सामग्री के साथ मिट्टी की आवश्यकता होती है।

कटहल के फायदे

कटहल की सब्जी एक ऐसा सब्जी है, जो शाकाहारी है या मांसाहारी इसको लेकर लोगों में बहुत मतभेद है। लेकिन इसके अनगिनत पोषक तत्वों के कारण फायदे भी अनगिनत हैं।

कटहल की उन्नत किस्में कटहल एक परम्परागत फल वृक्ष होने तथा प्रमुख बीज द्वारा प्रसारित होने के कारण इसमें प्रचुर जैव विविधता है। अभी तक कटहल की कोई मानक प्रजाति का विकास नहीं हुआ था, लेकिन फल और गुणवत्ता का आधार पर अलग अलग शोध केन्द्रों द्वारा कटहल की कुछ उन्नतशील चयनित प्रजातियों में खजवा, स्वर्ण मनोहर, स्वर्ण पूर्ति (सब्जी के लिए),एन.जे.-1, एन.जे.-2, एन.जे.-15 और एन.जे.-3। शामिल हैं।

खजवा – इस किस्म के फल जल्दी पक जाते हैं, ताज़ा पके फलों के लिए एक उपयुक्त किस्म है।

स्वर्ण मनोहर – छोटे आकार के पेड़ में बड़े-बड़े और अधिक संख्या में फल देने वाली यह एक उम्दा किस्म हैं। इसके लगभग 15 वर्ष के पेड़ की ऊँचाई 5.5 मीटर, तने की मोटाई 86 सेमी., क्षत्रक फैलाव 25.4 वर्ग मीटर और पेड़ का आयतन 71.2 घन मी होता है। मध्यम घने क्षत्रक वाले इस किस्म में फरवरी के प्रथम सप्ताह में फल लग जाते हैं, जिनको छोटी अवस्था में बेचकर अच्छी आमदनी प्राप्त की जा सकती है। फल लगने के 20-25 दिन बाद इसके एक पेड़ से 45-50 किग्रा. फल सब्जी के लिए प्राप्त किया जा सकता है। इस किस्म के पूर्ण रूप से विकसित फल की लम्बाई 45.2 सें.मी., परिधि 70 सेमी. और वजन 10-25 किग्रा. होता है। इसके कोये (फलैक्स) का आकार बड़ा (6.0 x 3.9 सें.मी.), संख्या अधिक (250-350 कोये/फल) और मिठास ज्यादा (20 डि. ब्रिक्स) होता है। यह किस्म छोटानागपुर और संथाल परगना के आस-पास अधिक पाई गई है। इसकी प्रति वृक्ष औसत उपज 300-550 कि.ग्रा. (पकने के बाद) है।

स्वर्ण पूर्ति – यह सब्जी के लिए एक सही किस्म है। इसका फल छोटा (3-4 किग्रा.), रंग गहरा हरा, रेशा कम, बीज छोटा और पतले आवरण वाला और बीच का भाग मुलायम होता है। इस किस्म के फल देर से पकने के कारण लंबे समय तक सब्जी के रूप में उपयोग किये जा सकते हैं। इसके वृक्ष छोटे और मध्यम फैलावदार होते हैं जिसमें 70-90 फल प्रति वर्ष लगते हैं। फलों का आकार गोल और कोये की मात्रा अधिक होती है।


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