कोरोना से लड़ें, डरें नहीं, 80 प्रतिशत कारगर है सेल्फ नेचुरल वेंटीलेटर

कोरोना की दूसरी लहर में इस समय पूरे देश में मरीजों की संख्या में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है। मरीजों की संख्या में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है। इसकी वजह से अब स्वास्थ्य सेवाएं बुरी तरह से बदहाल हो गई है। ऐसे में जिन मरीजों को ऑक्सीजन नहीं मिल पा रहा है, उनको सलाह दी जाती है। कोरोना संक्रमण के कारण ज्यादातर मरीजों को सांस लेने में दिक्कत हो रही है। ऑक्सीजन का लेवल गिरने पर अस्पतालों में वेंटीलेटर नहीं मिल पा रहा है। अगर मरीज को तत्काल में ऑक्सीजन की आवश्यकता है तो उसको प्रोन पोजीशन ऑक्सीजनेशन तकनीक का प्रयोग करना होगा। ऑक्सीजन का लेबल गिरने पर यह तकनीक 80 प्रतिशत तक कारगर साबित हो रही है। हर चिकित्सा प्रणाली के विशेषज्ञ डॉक्टरों की तरफ से इस तकनीकी को ‘संजीवनी’ बताया गया है। खास करके यह विधि अस्पतालों में भर्ती कोरोना मरीजों के लिए बहुत ही कारगर साबित होने वाली है।
वेंटिलेटरों से उन्हें सांस लेने में मदद मिलती हैं लेकिन अगर मरीज को यह तत्काल में नहीं मिल पा रहा है तो मरीजों को पेट के बल लिटा दिया जाता है। बता दें, यह बहुत ही पुरानी तकनीक है जिसे प्रोनिंग कहते हैं, इससे सांस लेने में समस्या होने वाले मरीजो को बहुत ही फायदा होते हुए देखा गया है। इस मुद्रा में लेटने से फेफेड़ों तक ज्यादा ऑक्सीजन पहुंचती है। सांस लेने में तकलीफ होने पर इस अवस्था में 40 मिनट लेटकर आक्सीजन लेवल सुधरता है। ऐसा कहा जाता है कि पेट के बल लेटने से वेंटिलेशन परफ्यूजन इडेक्स में सुधार आता है। डॉक्टरों ने कोरोनाकाल में कोविड के सांस लेने में दिक्कत आने वाले मरीजों को इस तकनीकि का प्रयोग करने की सलाह दी है।
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ऐसे मिलता है ज्यादा ऑक्सीजन
कोविड-19 के मरीजो को प्रोन पोजिशन में कई घंटों तक लिटाया जाता है ताकि उनके फेफड़ों में जमा तरल पदार्थ आसानी से मूव कर सके। जब पदार्थ मूव करेगा तो इससे मरीजों को सांस लेने में आसानी ही होगी। इस संबंध में जॉन हॉपकिंस यूनिवर्सिटी के डॉ. गालियातस्तोस ने कहा, "जब ऐसे मरीजों को ऑक्सीजन दी जाती है तो वह भी कई बार पर्याप्त नहीं होता है। ऐसी स्थिति में हम उनको पेट के बल लिटाते हैं, चेहरा नीचे रहता है, इससे उनका फेफड़ा बढ़ता है। "
प्रोन पॉजिशन एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम में ही प्रयोग की जाती है। एआरडीएस होने से फेफड़ों के निचले हिस्से में पानी आ जाता है। यही नहीं, पीठ के बल लेटने से फेफड़ों के निचले हिस्से की एल्वियोलाई में खून तो पहुंच ही जाता है, लेकिन पानी की वजह से आक्सीजनेशन व कार्बन डाइआक्साइड को निकालने की प्रक्रिया में बहुत ही दिक्कत होती है। ऐसे में हालात में जब ठीक तरीके से ऑक्सिजिनेशन नहीं होता तो ‘प्रोन वेंटिलेशन’ दिया जाता है। मरीज को पेट के बल लिटा दिया जाता है।
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ऐसे करके रखें अपनी पोजिशन
‘प्रोन वेंटिलेशन’ की प्रक्रिया को करते समय सबसे पहले गर्दन के नीचे एक तकिया, पेट-घुटनों के नीचे दो तकिए लगाते हैं और पंजों के नीचे एक। हर 6 से 8 घंटे में 40 से 45 मिनट तक ऐसा करने से मरीज को फायदा मिलता है। इसके अलावा पेट के बल लेटकर हाथों को कमर के पास पैरलल भी रखा जाता है। जब मरीज इस अवस्था में होता है, तो फेफड़ों में खून का संचार अच्छा होने लगता है। इसकी वजह से फेफड़ों में मौजूद फ्लूड इधर-उधर हो जाता है, जिससे लंग्स में आक्सीजन बहुत ही आसानी के साथ में पहुंचती रहती है। इसकी वजह से आक्सीजन का लेवल गिरता भी नहीं है। बता दें, यह वेंटिलेशन प्रक्रिया सुरक्षित और खून में ऑक्सीजन लेवल बिगड़ने पर नियंत्रण में बहुत ही मददगार होती है। यह बीमारी के कारण से मृत्यु दर को कम करने बहुत ही सहायक है। आईसीयू में भर्ती मरीजों के बीच में इसके बहुत ही अच्छे परिणाम देखने को मिल रहे हैं।
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