तो अब घाव पर टांकों की जगह लगाया जाएगा डबल साइडेड स्टिकी टेप

किसी सर्जरी के घाव या किसी चोट की वजह से लगे कट्स को सिलने के डॉक्टर्स टांके लगाते हैं, लेकिन कई बार ये टांके पक जाते हैं और व्यक्ति को ज्यादा समस्या हो जाती है। इस परेशानी से निपटने के लिए एमआईटी के साइंटिस्ट्स ने एक नया तरीका खोज निकाला है। इस नई तकनीक को डबल साइडेड स्टिकी टेप के फॉर्म में विकसित किया गया है। साइंटिस्ट्स को ऐसी उम्मीद है कि इस नई तकनीक से टांकों से ज्यादा अच्छे रिजल्ट्स मिलेंगे। 

डेलीमेल  की खबर के मुताबिक, इस तकनीक में सर्जरी के लिए विकसित किया गया टेप कई छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर त्वचा की दोनों सतहों के बीच इस तरह लगा दिया जाएगा कि जिस जगह पर कट लगा हो वो स्पेस त्वचा से सही तरीके से जुड़ सकें। इस टेप के जरिए त्वचा की परतों को इस टेप के जरिए एक साथ दबा दिया जाएगा, जब तक कि चोट सही नहीं हो जाती और त्वचा आप में नहीं जुड़ जाती, तब तक ये टेप ऐसे ही लगा रहेगा। 

इस टेप को बनाने के लिए जिलेटिन या चिटोसन की एक पट्टी के रूप में तैयार किया गया है और ये दोनों ही एलिमेंट टूटकर आराम से बॉडी के अंदर मिक्सअप हो जाते हैं। ध्यान देने वाली बात ये भी है कि जब तक चोट पूरी तरह ठीक नहीं हो जाती और त्वचा जुड़ नहीं जाती, तब तक यह टेप नहीं टूटता है। हालांकि, जिलेटिन कुछ ही दिन में बॉडी में मिक्सअप हो जाता है और शरीर को किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचाता है जबकि चिटोसन ब्रेक होने के लिए एक महीने से लेकर एक साल तक का समय ले सकता है।

टेप बनाने में मदद करने वाले एक इंजीनियर डॉ. जुआनहे झाओ ने कहा,  ‘हर साल दुनिया भर में 230 मिलियन से अधिक प्रमुख सर्जरी होती हैं। ‘उनमें से कई में घाव को ठीक करने के लिए टांके लगाने की आवश्यकता होती है, जो वास्तव में ऊतकों पर तनाव पैदा और संक्रमण, दर्द व निशान पैदा कर सकता है। हम ऊतक को सील करने के लिए एक नया तरीका विकसित करने की कोशिश कर रहे हैं।’ 

साइंटिस्ट्स ने टेप की स्ट्रिप्स के दोनों किनारों पर पॉलीएक्रैटिक एसिड लगाया है। आम तौर पर इसका उपयोग डायपर में किया जाता है, यह शरीर के जिस हिस्से में भी अप्लाई किया जाता है, उसके दोनों सरफेस पर बनने वाले बॉडी फ्लूइड को अवशोषित कर लेता है। यह एसिड शरीर की दोनों सतहों को चिपकाते हुए उनके साथ एक हाइड्रोजन बॉन्ड बनाता है, जिससे ये दोनों परत आपस में चिपक जाती हैं और सूखी रहती हैं। यानी इनमें किसी तरह का पस पड़ने की संभावना नहीं रहती है।

खास बात यह है कि यह स्टडी मकड़ी द्वारा पैदा किए जानेवाले नैचरल ग्लू से प्रेरणा लेकर की गई थी, जिसमें पॉलीसेकेराइड होते हैं जो पानी भर जाने के दौरान मकड़ियों के जाले में फसे कीटों के शरीर से पानी सोखने का काम करता है। यह स्टडी हाल ही में journal Nature में प्रकाशित हुई है। जानकारी के अनुसार, अभी इस तरह के टेप का परीक्षण लैब में सफलतापूर्वक हो पाया है। मनुष्य के लिए इसे विकसित करने में अभी कुछ वक्त लगेगा।

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