रिपोर्ट: सरकार दो वर्षों में दोगुना करेगी जन औषधि स्टोर की संख्या, भारत में बढ़ रही जेनेरिक दवाओं की मांग

भारत में जेनेरिक दवाओं की मांग तेजी से बढ़ रही है। जबकि ब्रांडेड दवाओं की बिक्री में गिरावट देखी जा रही है। यह बात यूबीएस की एक हालिया रिपोर्ट में कही गई है। रिपोर्ट के अनुसार, यह बदलाव देशभर में जन औषधि स्टोर की बढ़ती संख्या के कारण है जो सस्ती जेनेरिक दवाएं उपलब्ध कराते हैं। जैसे-जैसे इन स्टोर का विस्तार होगा, अधिक महंगी ब्रांडेड दवाओं की बिक्री पर असर पड़ने की संभावना है।

आज के समय में अगर किसी व्यक्ति को कोई गंभीर बीमारी हो जाए, ऐसे में इलाज में तो खर्चा आता ही है। आर्थिक दृष्टि से कमजोर वर्ग महंगी दवाएं नहीं खरीद सकता है। साथ ही जब इंसान को सस्ती दवाओं से फायदा मिल रहा हो तो वह अपना आर्थिक बजट क्यों गड़बड़ करे! कई बार लोगों की आमदनी का बड़ा हिस्सा महंगी दवाइयों को खरीदने में चला जाता है। ऐसे में लोगों की समस्या को देखते हुए भारत सरकार जेनेरिक दवाओं पर जोर दे रही है। जेनेरिक दवाएं दूसरी दवाओं की तुलना में काफी सस्ती होती हैं। सस्ती होने के कारण इन्हें खरीदने पर किसी प्रकार की आर्थिक दिक्कत परेशान नहीं करती। यही एक बड़ी वजह की लोग सस्ती जेनेरिक दवाओं के प्रति जागरूक हो रहे हैं।

रिपोर्ट में कहा है कि भारत के फार्मा बाजार की वृद्धि धीमी हो रही है और बिना ब्रांड वाली जेनेरिक दवाओं की मांग में तेज वृद्धि हो रही है जो इन अधिक किफायती विकल्पों की बढ़ती लोकप्रियता की ओर इशारा करती है। जनेरिक दवाओं की मांग में वृद्धि मुख्य रूप से जन औषधि स्टोर और ट्रेड जेनेरिक दवाओं की पहुंच बढ़ाने के सरकार के प्रयासों से प्रेरित है।

बिना ब्रांड वाली जेनेरिक दवाएं शहरी बाजारों में 25 फीसदी से अधिक और गैर-शहरी बाजारों में 35 फीसदी से अधिक हैं। वर्तमान में जेनेरिक दवाइयों का बाजार में 20 फीसदी से अधिक हिस्सा है जिसमें अकेले जन औषधि स्टोर 5 फीसदी का योगदान देते हैं। सरकार अगले दो वर्षों में जन औषधि स्टोर की संख्या को दोगुना करने के लिए काम कर रही है जिसमें नए स्टोर खोलने के लिए आसान ऋण मंजूरी और पूंजीगत व्यय प्रतिपूर्ति जैसे प्रोत्साहन शामिल हैं। इन प्रयासों के कारण पिछले डेढ़ साल में जन औषधि स्टोर की संख्या में तेज वृद्धि हुई है। जन औषधि स्टोर में तेज वृद्धि, आठ फीसदी सीएजीआर के आधार पर बाजार की वार्षिक वृद्धि के 1-2 प्रतिशत को प्रभावित कर सकती है। जन औषधि योजना की विस्तार भारत में जेनेरिक दवाओं की बढ़ती पहुंच का एक प्रमुख कारक है।

क्या होती हैं जेनेरिक दवाएं

जेनेरिक दवाएं उन दवाओं को कहा जाता है, जिनका कोई ब्रांड नेम नहीं होता है। इनकी पहचान सॉल्ट नेम से की जाती है साथ ही सॉल्ट नेम से यह बेचा भी जाता है।  कई कंपनियां जो देश में जेनेरिक दवाएं बनाती हैं उन्होंने देश में अपना ब्रांड नेम भी बना लिया है। ब्रांड नेम के बावजूद भी उनके द्वारा बनाई गई जेनेरिक दवाएं काफी सस्ती होती हैं। जेनेरिक दवाएं सस्ती जरूर होती हैं लेकिन असरदार भी होती हैं।

जेनेरिक दवाओं के सस्ते होने के कारण

जेनेरिक दवाओं के सस्ते होने के पीछे एक नहीं कई कारण हैं। इन दवाओं के सस्ते होने के पीछे का सबसे बड़ा कारण यह है कि इन दवाओं को बनाने में होने वाली रिसर्च और डेवलपमेंट के लिए कंपनी को खर्च नहीं करना होता है। दवा बनाने में सबसे ज्यादा पैसा रिसर्च और डेवलपमेंट में खर्च होता है। जेनेरिक दवाओं का कोई प्रमोशन नहीं करना होता है साथ ही इन दवाओं की पैकेजिंग में ज्यादा खर्च नहीं आता है। इसके अलावा इन दवाओं का उत्पादन बड़े स्तर पर किया जाता है। मास प्रोडक्शन के कारण कीमतें काफी कम हो जाती हैं।

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