देश में इलाज पर होने वाले खर्च में आम आदमी की जेब पर पड़ने वाला बोझ लगबह 40 प्रतिशत कम हो गया है। 2013-14 लोगों को इलाज पर अपनी जेब से 64.2 प्रतिशत खर्च करना पड़ता था वहीं 2021-22 में यह खर्च घटकर 39.4 प्रतिशत रह गया है। इलाज का जेब पर बोझ कम होने के पीछे प्रमुख वजह स्वास्थ्य पर सरकारी खर्च में बढ़ोतरी होना है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी राष्ट्रीय स्वास्थ्य लेखा अनुमान के अनुसार प्रति व्यक्ति स्वास्थ्य पर सरकारी खर्च में 2014-15 के मुक़ाबले 2021-22 में तीन गुना बढ़ोतरी हुई है।
स्वास्थ्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि ताजा आंकड़ों से साफ है कि 2013-14 की तुलना में अब आम आदमी को इलाज के लिए अपनी जेब से कम खर्च करना पड़ रहा है। वहीं सरकार खर्च में 60 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है और सरकारी खर्च 2014-15 में 29 प्रतिशत के मुक़ाबले 2021-22 में 48 प्रतिशत तक पहुँच गया है। नीति आयोग के सदस्य डॉ पीके पाल के अनुसार आयुष्मान भारत योजना के तहत 55 करोड़ लोगों को सालाना 5 लाख रुपए तक का मुफ्त इलाज की सुविधा का जेब पर पड़ने वाले बोझ को कम करने में अहम योगदान रहा है। 6 साल पहले शुरू हुई इस योजना के तहत 7 करोड़ से अधिक लोगों को 1 लाख करोड़ रुपए से अधिक का मुफ्त इलाज किया जा चुका है। इसी तरह से 2015-16 मे मुफ्त डायलिसिस योजना का लाभ 25 लाख से अधिक लोग उठ चुके हैं।
आंकड़ों के मुताबिक स्वास्थ्य पर प्रति व्यक्ति सरकारी खर्च 2014-15 में 1108 रुपए था जो 2021-22 में बढ़कर 3169 रुपए हो गया। यह कुल सरकारी खर्च में स्वास्थ्य पर होने वाले खर्च की हिस्सेदारी बढ्ने की वजह से हुआ है। 2014-15 में कुल सरकारी खर्च का 3.94 प्रतिशत स्वास्थ्य पर किया गया था वहीं 2021-22 में कुल सरकारी खर्च का 6.12 प्रतिशत स्वास्थ्य पर खर्च किया गया था। स्वास्थ्य पर सरकारी खर्च में बढ़ोतरी को जीडीपी के अनुपात में भी साफ-साफ देखा जा सकता है। 2014-15 में स्वास्थ्य पर कुल सरकारी खर्च जीडीपी का 1.13 प्रतिशत था जो 2021-22 में बढ़कर 1.84 प्रतिशत हो गया। स्वास्थ्य पर सरकारी खर्च में बढ़ोतरी में कोरोना महामारी की प्रमुख वजह रही है। कोरोना काल के दौरान स्वास्थ्य पर सरकार का खर्च 2019-20 की तुलना में 2020-21 में 16.6 प्रतिशत और 2020-21 की तुलना में 2021-22 में 37 प्रतिशत बढ़ गया था।